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मिशन 2022 के लिए सियासी तैयारियों का आगाज़ हो चुका है. फिलहाल केंद्र में लखनऊ नहीं राम नगरी अयोध्या है. कभी सबसे बड़े और चर्चित अदालती मुकदमे की वजह से सुखियों में रहने वाली अयोध्या, सरकार बनाने और गिराने की ताकत रखने वाली अयोध्या एक बार फिर राजनेताओं के बयानों में और राजनीतिक दलों चुनावी तैयारियों के एजेंडे में सबसे ऊपर दिख रही है. दरअसल ये वो संजीवनी है जिसको सभी दल पाना चाहते हैं.
बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया
ये वही अयोध्या है जिसने भाजपा को शून्य से शिखर तक पहुंचाया था. अब केंद्र और यूपी में सरकार और सप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद मंदिर निर्माण शुरू होने पर भी पार्टी का पूरा फोकस अयोध्या पर है. दीपोत्सव की तैयारी शुरू हो गई है. योगी सरकार के इस कार्यकाल के आखिरी दीपोत्सव को अब तक का भव्यतम आयोजन बनाने की तैयारी है.
कहा तो ये भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके साक्षी बनने वाले हैं. हालांकि इसको लेकर अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है पर तैयारी बता रही है कि आयोजन बेहद खास होगा. 5 अगस्त को ‘अन्न महोत्सव’ में खुद यूपी के मुख्यमंत्री ने अयोध्या पहुंचकर साबित कर दिया कि भले ही मंदिर आंदोलन खत्म हो गया हो और मंदिर का निर्माण शुरू हो गया हो पर बीजेपी अयोध्या और श्रीराम से अपना ध्यान नहीं हटाने वाली.
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हाल ही में कल्याण सिंह के निधन के बाद राम मंदिर जाने वाले एक मुख्य मार्ग का नाम कल्याण सिंह के नाम पर रख कर बीजेपी ने इस बात से खुद को जोड़ा है. दरअसल बीजेपी इस बात को सामने रखकर अपनी ‘राजनीतिक प्रतिबद्धता’ को दोहराना चाहती है. साथ ही ये बताना चाहती है कि जब बहुसंख्यक हिंदुओं के आराध्य राम और उनकी जन्मभूमि अयोध्या की बात करने से अन्य सियासी दल डरते थे कि मुस्लिम वोट बैंक न चला जाए तब बीजेपी अयोध्या और राम की बात किया करती थी. इस बीच को लेकर विपक्ष ने अलग रणनीति अपनायी है.
अयोध्या में दलों की सक्रियता
कभी जिनके सम्मेलनों ने बीजेपी को रोकने के लिए ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ के नारे लगते थे उन्हीं बीएसपी सुप्रीमो के सामने प्रबुद्ध सम्मेलन के समापन पर जय श्रीराम के नारे लगे. मायावती ने त्रिशूल हाथ में लेकर ये बताने की कोशिश की कि बहुसंख्यक और खासतौर पर ब्राह्मणों के लिए भावनात्मक मुद्दा रहे राम और अयोध्या से उन्हें कोई परहेज नहीं है. इससे पहले पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने दर्शन करके संदेश दिया.
आम आदमी पार्टी भी उन पार्टियों में है जिन्होंने अयोध्या और राम मंदिर को लेकर बीजेपी की आलोचना की बल्कि मनीष सिसोदिया ने तो अपने ट्वीट के जरिए दिसंबर 2018 में फैसले से पहले ये तक कहा कि अयोध्या में मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी बननी चाहिए और उसमें सभी धर्मों के छात्रों यहां तक कि विदेशी छात्रों को भी शिक्षा मिलनी चाहिए. जबकि इस बार उन्होंने अयोध्या ने न सिर्फ तिरंगा यात्रा निकाली बल्कि सरयू किनारे फोटो ट्वीट कर रामलला और मां सरयू से आशीर्वाद लेकर यूपी के लिए संकल्प की बात कही.
समाजवादी पार्टी का अयोध्या को लेकर बयान कई बार आ चुका है. अयोध्या के विकास करने की बात अखिलेश यादव करते रहे हैं तो सपा के कई कार्यक्रम भी वहां से शुरू करने की बात स्थानीय नेताओं ने की है. कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी अयोध्या पहुंचकर स्थानीय लोगों के साथ मुलाकात बैठक की.
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं कि ‘इस सबका उद्देश्य बहुसंख्यक हिंदुओं के आराध्य राम और उनकी जन्मभूमि को प्रतीकात्मक तौर पर जोड़ना है. आने वाले दिनों में कांग्रेस भी कोई बड़ा कार्यक्रम वहां कर सकती है.’
हालांकि ओवैसी का अयोध्या से यूपी चुनाव का आगाज करना सबके रोचक रहा, जिस तरह से अपने दौरे में उन्होंने फैजाबाद कहकर अपनी सियासी मंशा साफ की उससे भी राजनीतिक तौर कर अयोध्या का इस चुनाव में महत्व कितना होगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है. यही नहीं यूपी की सियासत में कुछ करने की चाह लिए छोटे दल भी पीछे नहीं. रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' ने भी हनुमान गढ़ी में दर्शन कर इसका संकेत दे दिया.
अयोध्या में पिछले 37 साल से पत्रकारिता करने वाले और यहां की सियासत के हर रूप को देखने वाले वीएन दास (VN Das) कहते हैं कि ‘ये आगे की तैयारी है क्योंकि 2022 ही नहीं 2024 का चुनाव भी अयोध्या को पृष्ठभूमि में रख कर होगा. अयोध्या आने की वजह सबके पास है. भाजपा के पास ये बताने के लिए कि मंदिर निर्माण हमने करवाया है. और अन्य दलों के पास ये कहने के लिए कि हम राम विरोधी नहीं हैं जिससे लोग उनसे नाराज न हों.’
सियासत में अयोध्या अभी केंद्र में रहेगी
मंदिर आंदोलन के दौरान राजनीति के केंद्र में रही अयोध्या ने अहम भूमिका निभाई है पर मंदिर बनने की शुरुआत होने के बाद भी अयोध्या केंद्र में रहेगी. अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार वीएन दास कहते हैं कि ‘अयोध्या में भले ही ये बात न समझ में आए पर बाहर और खासतौर पर यूपी में आज भी अयोध्या के नाम का असर होता है. राजनीतिक दल इस बात को जानते हैं.’
सभी दलों के अयोध्या की ओर रुख करने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल (Ratan Mani Lal) इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि ‘अब राजनीतिक दल ये समझ गए हैं कि बहुसंख्यक हिंदुओं को जोड़े बिना कोई चुनाव जीतना संभव नहीं है. ऐसा उनके सेंटिमेंट्स को टच करके ही हो सकता है. राजनीतिक दलों के लिए अयोध्या बहुसंख्यक वर्ग से जुड़ने का एक जरिया है क्योंकि चाहे लोगों का राजनीतिक रुझान कुछ भी हो पर हर परिवार की आस्था का केंद्र राम और अयोध्या है.’
रतन मणि लाल जोर देकर कहते हैं कि ‘मेरी बात याद रखिएगा, बीजेपी अब इन दलों की काट के लिए ayodhya -then and now जैसी कोई बात भी कर सकती है.’