उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में आजमगढ़ जिले की निजामाबाद सीट से इस बार निर्दलीय उम्मीदवार राजीव यादव की उम्मीदवारी चर्चा में है. उन्हें टक्कर दे रहे हैं सपा के सबसे बुजुर्ग कैंडिडेट 85 साल के आलमबदी. किसानों, अल्पसंख्यकों, मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों से लेकर आतंकी मामले में गिरफ्तार लोगों की रिहाई की लड़ाई लड़ने वाले राजीव यादव की पहचान आंदोलनकारी की है.
राजीव यादव 'रिहाई मंच' के नाम से एक संगठन चलाते हैं. रिहाई महासचिव के महासचिव राजीव यादव को निजामाबाद सीट पर कई सामाजिक संगठनों ने अपना-अपना समर्थन कर रखा है. वहीं, आतंकवाद के मामले में रिहा होने वाले जावेद कैसर और आफताब आलम अंसारी निजामाबाद इलाके की गलियों में घूम-घूमकर राजीव यादव को जिताने के लिए अपील कर रहे हैं. बता दें कि निजामाबाद सीट पर सपा से आलमबदी, बसपा से पीयूष यादव और बीजेपी से मनोज यादव मैदान में है. कांग्रेस से राजीव यादव के साथ रिहाई मंच में संघर्ष करने वाले अनिल यादव चुनाव लड़ रहे हैं.
निजामाबाद सीट का बाटला हाउस एनकाउंटर से कनेक्शन
निजामाबाद विधानसभा क्षेत्र में वो इलाके भी आते हैं, जहां के रहने वाले साजिद और आतिफ अमीन दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए थे. आज भी इस इलाके के कई युवा आतंकियों से लिंक के आरोप में देश के अलग-अलग जेल में बंद हैं. राजीव यादव ने आजमगढ़ के तारिक कासमी और जौनपुर के मडियाहूं कस्बे से मौलाना खालिद मुजाहिद के आतंकवाद मामले में गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की राह पर कदम बढ़ाया तो फिर पलटकर नहीं देखा.
IIMC से पत्रकारिता का कोर्स किया
राजीव यादव आजमगढ़ के जिन्हापुर गांव में सिंतबर 1984 को जन्म हुआ और उनके पिता का नाम इंद्रदेव यादव है. राजीव अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा आजमगढ़ से किया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक करने के दौरान ही वामपंथी संगठन आइसा से जुड़ गए थे. नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC)से पत्रकारिता किया. पढ़ाई के दौरान ही वो देश के तमाम समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे. हालांकि, राजीव यादव ने पत्रकारिता की नौकरी करने के बजाय जनता के मुद्दों पर संघर्ष करने का रास्ता चुना.
आतंकवाद से जुड़ी गिरफ्तारियों को लेकर रहे मुखर
बसपा सरकार में 31 दिसंबर 2007 की रात को होने वाली रामपुर सीआरपीएफ मामला हो या कचहरी बम धमाके या फिर लखनऊ की चिनहट में कश्मीरी युवकों का एनकाउंटर, 2008 में कांग्रेस सरकार में हुआ बटला हाउस एनकाउंटर, मुंबई में शाहिद आजमी की हत्या या फिर अखिलेश सरकार में आतंकवाद के आरोपी खालिद मुजाहिद की मौत के मुद्दे को लेकर राजीव यादव सबसे मुखर रहे. इतना ही नहीं देश आतंकी गतिविधियों में होने वाली गिरफ्तारी पर भी राजीव यादव ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे और सामाजसेवी मुहम्मद शुऐब के साथ मिलकर रिहाई के लिए आंदोलन शुरू किया.
राजीव यादव ने योगी आदित्यनाथ पर एक साल 2000 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें भगवा कपड़ा पहने एक साधू अपने भाषण लोगों को दंगे के लिए उकसा रहा है. इस डॉक्यूमेंट्री का नाम सैफरॉन वारः 'ए वार अगेंस्ट नेशन और पार्टिशन रिवीजीटेड' रखा था. सैफरॉन वार यूपी की सियासत में काफी चर्चित डॉक्यूमेंट्री है. यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री और गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने इस डॉक्यूमेंट्री पर विरोध जताते हुए और राजीव यादव और उनके साथियों को इस्लामिक फंडेड व नक्सलियों का समर्थक बताया.
2012 में रिहाई मंच का गठन किया
एडवोकेट मुहम्मद शुऐब के साथ मिलकर राजीव यादव, शाहनवाज आलम और अनिल यादव ने रिहाई मंच का गठन 2012 में किया. यूपी में तमाम शहरों से जिन मुस्लिम युवाओं को आतंकवाद के मामले में गिरफ्तारी हुई थी, उनकी रिहाई के लिए सड़क से कोर्ट तक लड़ाई लड़ी. हालांकि, उनके साथी शाहनवाज आलम और अनिल यादव ने 2018 में सियासत में कदम रखा और कांग्रेस का दामन थाम लिया, लेकिन राजीव यादव ने रिहाई मंच के साथ ही संघर्ष जारी रखा.
राजीव यादव ने 2022 के चुनाव में आजमगढ़ की उसी निजामाबाद सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय किया, जिस इलाके के युवाओं की दिल्ली ब्लास्ट मामले में गिरफ्तारी हुई थी. संजरपुर के रहने वाले आतिफ अमीन और साजिद बटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए थे. इसके बाद आजमगढ़ काफी सुर्खियों में रहा.
निजामाबाद से क्यों लड़े चुनाव
निजामाबाद सीट से चुनाव लड़ने पर राजीव यादव कहते हैं, "इसका अहम कारण बटला हाउस एनकाउंटर में निजामाबाद के कई मासूम लड़कों को मार दिया जाना था." राजीव यादव कहते हैं कि इसके अलावा आजमगढ़ के निजामाबाद को आंतकवाद की नर्सरी का नाम दिया जाता रहा है. ये एक तरह से हमारी पहचान पर हमला था. राजीव का कहना है कि कहीं भी जाने पर लोग हमें उसी नजर से देखते थे, उसी से जुड़े सवाल करते थे. इसीलिए मैंने निजामाबाद को अपना चुनाव क्षेत्र चुना है.
राजीव यादव की कोशिशों से कई लोग रिहा हुए
राजीव यादव ने रिहाई मंच के साथ-साथ कई सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन किया. इसके चलते अदालत ने आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार कई युवाओं को बाइज्जत बरी किया, जिनमें जावेद कैसर और आफताब आलम प्रमुख नाम है. जावेद रामपुर सीआरपीएफ कैंप हमले में गिरफ्तार किया गया था और 12 साल बाद कोर्ट से रिहा हुए थे तो आफताब आलम अंसारी को होजी का मास्टर माइंड बताया गया था. यह जेल से रिहा हुई दोनों ही लोग राजीव यादव के लिए वोट मांग रहे हैं.
निजामाबाद सीट से राजीव यादव अपनी इसी पहचान से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. राजीव के प्रचार में विभिन्न राज्यों से वो लोग आ रहे हैं जो आतंकवाद मामले में किसी न किसी आरोप में उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद रहे और बाद में रिहा हुए. वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडेय भी राजीव यादव के समर्थन में चुनावी प्रचार में उतर चुके हैं. भाकपा माले, उलेमा काउंसिल, जनधिकार पार्टी सहित तमाम सामाजिकऔर मुस्लिम संगठनों ने भी उन्हें समर्थन दे रखा है.
राजीव यादव को तीन यादवों से टक्कर
राजीव यादव के चुनावी पोस्टरों पर रिहाई मंच के अध्यक्ष अधिवक्ता मोहम्मद शोएब जिन्हें आतंकवाद के निर्दोष आरोपियों का मुक़दमा लड़ने के कारण कई बार अदालत के परिसरों में भीड़ हिंसा वाली तस्वीर निजामाबाद में लगाई गई है. वहीं कुछ बैनरों पर खुद आतंकवाद के फर्जी आरोप में पहले फंसाए गए और बाद में वकील बन कर अपने जैसे निर्दोषों को छुड़वाने के कारण मार गए शाहिद आजमी की तस्वीर भी दिख रही है. राजीव डेढ़ दशक से किसानों अधिकारों, बेगुनाहों और गरीबों के लिए आवाज उठाते आए हैं. ऐसे में देखना है कि राजीव यादव निजामाबाद सीट पर क्या सियासी करिश्मा दिखा पाते हैं, जहां उनके खिलाफ तीन यादव और एक मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में है.