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उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में केन नदी के तट व ऋषि बामदेव की तपोभूमि पर जिला बांदा स्थित है. राजधानी लखनऊ से दूरी लगभग 200 किमी दूर भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट से महज 70 किमी पश्चिम में पर बांदा मुख्यालय बांदा है. जनपद की सबसे वीआईपी सीट सदर है क्योंकि इस विधानसभा में जिला एवं मंडल मुख्यालय बना हुआ है. बांदा सदर विधानसभा का सीट क्रमांक 235 है. यहां भाषा के लिहाज से आपको खड़ी बोली एवं क्षेत्रीय भाषा बुंदेली सुनने को मिलेगी. रेलमार्ग में झांसी प्रयागराज लाइन में मुख्य रूप से बांदा स्टेशन ही है बाकी विधानसभा रेल मार्ग से पहले की तरह वंचित ही हैं.
पर्यटक एवं दार्शनिक स्थलों में यहां बाम्बेश्वर पर्वत, प्रसिद्ध माहेश्वरी एवं विंध्यवासिनी देवी मंदिर खत्रिपहाड़ गिरवां ही है. यहां एक दो छोटे पार्क हैं जो अपने विकास का इंतज़ार कर रहे हैं. यहां की जीवनदायिनी केन नदी में पाया जाने वाला शजर पत्थर विश्व ख्याति प्राप्त है जिसकी सुंदरता खुद एक प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में जानी जाती है. बताया जाता है उस पत्थर में सूर्य की किरणों से कोई प्रतिक्रिया होने के बाद पानी के अंदर पड़े उस पत्थर में उसी प्रकार की परछाई (आकृति) ढ़ल जाती है जिसे कारीगर काट कर उसकी सुंदरता और बढ़ा देता है. कहा जाता है कि महान ऋषि बामदेव यहां निवास करते थे ,इसलिए उन्हीं के नाम पर यहां का बाम्दा नाम पड़ा था जो अब बांदा हो गया है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
बांदा सदर सीट पर आजादी के बाद से अभी तक सबसे ज्यादा कांग्रेस का दबदबा रहा है. दो बार बसपा को भी जीत मिली है. वहीं 1993 के बाद सत्ताधारी भाजपा को कई साल वनवास काटने के बाद 2017 में पहली बार जीत मिली. एक समय जमुना प्रसाद बोस का नाम लोगों की जुबान पर रहता था जिन्होंने 4 बार जीत हासिल की थी. इसके बाद लोग विवेक सिंह को अपना सहयोग देते रहें जिन्हें 3 बार विधायक बनने का मौका मिला. कहा जाता है कि जमुना प्रसाद बोस की छवि काफी अच्छी थी. कुछ वर्षों पहले तक इनका निजी घर नहीं हुआ करता था.
1951 से 1962 तक कांग्रेस ने हैट्रिक लगाई थी जिसमें पहलवान सिंह (लगातार दो बार) व बृजमोहन लाल गुप्ता ने जीत दर्ज की थी. 1967 में भारतीय जनसंघ से जीएस सराफ, पुनः 1969 में कांग्रेस से महिरजध्वज सिंह विधायक बने थे. 1974 व 1977 में जमुना प्रसाद बोस ने सामाजिक व जनता पार्टी से चुनाव जीता. 1980 में कांग्रेस से सीपी शर्मा, 1985 व 1989 में पुनः लगातार दो बार जमुना प्रसाद बोस ने जनता पार्टी व जनता दल से विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. 1991 में बसपा से नसीमुद्दीन सिद्दीकी,1993 में भाजपा से राजकुमार शिवहरे ने भाजपा का खाता खोला. फिर मतदाताओं ने 1996 में कांग्रेस से विवेक कुमार के हाथ में कमान सौंप दी लेकिन अगले चुनाव में विवेक सिंह को 2002 में बसपा के बाबूलाल कुशवाहा ने मात दे दी.
दिलचस्प बात यह रही है पुनः कांग्रेस से विवेक सिंह 2007 व 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को ही हराकर विधायक बने थे. जिससे यह सीट कांग्रेस की वीआईपी सीट बन गयी थी लेकिन 2017 के चुनाव में भाजपा ने यह सीट उनसे छीनकर अपने नाम की थी प्रकाश द्विवेदी विधायक बनकर लखनऊ विधानसभा पहुंचे.
सामाजिक ताना-बाना
बांदा शहर में चौराहे पर महाराणा प्रताप की प्रतिमा स्थापित है. जिससे उस चौराहे को महाराणा प्रताप चौक से जाना जाता है. दार्शनिक स्थलों में प्रसिद्ध माहेश्वरी देवी का मंदिर चौक बाजार में स्थापित है , महोबा रोड पर जिलाधिकारी कार्यालय से सटे महावीर संकट मोचन हनुमानजी का मंदिर , बाबूलाल चौराहा में काली माता मंदिर स्थित है जहां लोगों की परम आस्था का केंद्र है. धर्म विशेष में मस्जिद भी है.
शहर विधानसभा में जातियों का समन्वय बराबर की मात्रा में है और धर्म विशेष में मुस्लिम भी बड़ी संख्या में मतदाता के रूप में हैं. यह पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाने वाला क्षेत्र है, जहां लोग कृषि के साथ मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं , यहां औद्योगिक क्षेत्र की सीमा सीमित है , लोग व्यापार के तौर पर कुछ छोटी फैक्ट्री लगाकर औद्योगिक क्षेत्र का नाम बचाये हुए हैं. पूर्व में कई मिलें हुआ करती थी जो बंद हैं जिससे लोग काम की तलाश में अन्य प्रांतों में जाते हैं.
बांदा की आबादी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 21 लाख 20 हजार 998 है. जिसमें पुरुष 11 लाख 38 हजार 496 व महिला 9 लाख 82 हजार 502 हैं. यहां राजस्व गांव 761 हैं. बांदा विधानसभा में निर्वाचन कार्यालय के अनुसार कुल मतदाता 3 लाख 4 हजार 361 है जिसमें पुरुष 1 लाख 66 हजार 543 व महिला 1 लाख 37 हजार 801 व 17 अन्य मतदाता हैं.
शिक्षा क्षेत्र में इस विधानसभा में एक कृषि विश्वविद्यालय, मेडिकल कालेज, पॉलिटेक्निक व राजकीय औद्योगिक संस्थान के साथ-साथ महाविद्यालय हैं. जिसमें व्यवसाय के तौर पर ही व्यवस्था है. ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा हेतु जनपद में आना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा का अभाव है. युवाओं को भी उच्च शिक्षा के मनचाहे कोर्स करने के लिए जनपद के बाहर जाना पड़ता है.
2017 का जनादेश
17वीं विधानसभा के चुनाव में 21 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया था , लेकिन मोदी लहर के चलते जनता बदलाव के मूड में नजर आई. 2017 के चुनाव में मुकाबला बसपा और भाजपा में देखने को मिला. भाजपा से प्रकाश द्विवेदी को 83169 वोट मिले और बसपा से मधुसूदन कुशवाहा को 50341 वोट मिले. दिलचस्प बात यह रही कि 3 बार विधायक रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री विवेक सिंह कांग्रेस के गढ़ को बचाने में कामयाब नहीं हो पाए.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
विधायक प्रकाश द्विवेदी लगभग 43 साल के हैं.वो छिबांव खुरहण्ड बांदा में निवास करते हैं. इनके पिता रामयश द्विवेदी पेशे से कोटेदार रहे हैं. इनकी पत्नी सरिता द्विवेदी निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही हैं. प्रकाश द्विवेदी को मौजूदा समय की राजनीति में महारथ हासिल है. इन्होंने भी कई पार्टियों में अपना पूर्ण भाग्य आजमाया है. इस साल अगर पार्टी फिर से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाती है तो उनके सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती होगी.
(इनपुट- सिद्धार्थ गुप्ता, बांदा)