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बुंदेलखंड के हिस्से पड़ने वाले उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की नरैनी विधानसभा सीट पिछड़े वर्ग की लिए आरक्षित सीट है. यहां से मौजूदा समय में भाजपा के राजकरण कबीर विधायक हैं, अपनी सादगी और नेता प्रतिपक्ष को हराने की वजह से 2017 के चुनावी नतीजों में इनको जितनी ख्याति मिली. वह प्रसिद्धि विधानसभा के पहले चालू सत्र में विधायक राजकरण कबीर की सोती हुई तस्वीरों के मीडिया में वायरल होने के साथ ही काफूर हो गयी.
बांदा जिला मुख्यालय की दूरी प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर है. यहां से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर नरैनी तहसील मुख्यालय है. नरैनी विधानसभा सीट का नंबर 234 है. नरैनी विधानसभा क्षेत्र से झांसी-प्रयागराज रेल मार्ग गुजरता है जिसमें मात्र दो स्टेशन अतर्रा और बदौसा ही रेल नेटवर्क से कनेक्टेड हैं, लगभग आधी से ज्यादा आबादी रेल सुविधाओं से वंचित है.
यहां की भाषा खड़ी बोली और ज्यादातर क्षेत्रीय भाषा का उपयोग किया जाता है. मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से सटे यूपी की नरैनी विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले प्रमुख दर्शनीय स्थलों में विश्व प्रसिद्ध कालिंजर फोर्ट, गौरा बाबा अतर्रा मंदिर, गुढ़ा हनुमान मंदिर शामिल हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
बांदा जिले की नरैनी विधानसभा सीट पर 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. सन 1974 से 1989 तक यहां सीपीआई का दबदबा बरकरार रहा लेकिन बीच में एक बार कांग्रेस को भी सत्ता की चाबी मिली. यहां के लोग लोधी समाज के नेता सुरेंद्र पाल वर्मा ( लोध ) को अपना सहयोग व समर्थन देते रहे. सुरेन्द्रपाल वर्मा को 5 बार विधायक बनने का खिताब भी इसी विधानसभा में हासिल है. सन 1996 से 2012 तक नरैनी विधानसभा में लगातार बसपा का कब्जा रहा. दो बार यह सीट बीजेपी के खाते में गई है.
आजादी के बाद यहां कांग्रेस का दबदबा कई सालों तक बरकरार रहा. लोग कांग्रेस के नाम पर वोट देते रहे. दिलचस्प बात यह है कि लोधी समाज के नेता बनकर उभरे सुरेंद्र पाल वर्मा को नरैनी विधानसभा से 5 बार विधायक बनने का खिताब भी प्राप्त है. उन्होंने कई पार्टियों से विधानसभा का चुनाव लड़ा. 1951 में कांग्रेस से श्यामा चरण , 1957 में कांग्रेस से गोपी कृष्ण आजाद , 1962 में जनसंघ से मतोला सिंह , 1967 में भारतीय जनसंघ से जे सिंह , 1969 में कांग्रेस से हरबंश प्रसाद ,1974 में सीपीआई ( कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ) से चंद्रभान आजाद ने जीत हासिल की थी.
इसके बाद 1977 में सीपीआई से सुरेन्द्रपाल वर्मा , 1980 में कांग्रेस से हरबंश पांडेय , 1985 व 1989 में लगातार दो बार सीपीआई से सुरेन्द्रपाल वर्मा ,1991 में भाजपा से रमेश चंद्र द्विवेदी , 1993 में सपा से सुरेंद्र पाल वर्मा , 1996 में बसपा से बाबूलाल कुशवाहा , 2002 में सुरेन्द्रपाल वर्मा, 2007 में बसपा से पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी, 2012 में बसपा से गयाचारण दिनकर विधानसभा नरैनी से विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे थे. 17 वीं विधानसभा 2017 में भाजपा से राजकरण कबीर निर्वाचित हुए.
सामाजिक ताना बाना
नरैनी विधानसभा क्षेत्र में मात्र एक नगरपालिका व दो नगर पंचायत हैं. जहां की कुल आबादी लगभग पौने छह लाख के करीब है. जिला निर्वाचन कार्यालय के अनुसार विधानसभा में क्षेत्र में कुल मतदाता 3 लाख 38 हजार 609 वोटर हैं जिसमें 1 लाख 84 हजार 784 पुरुष व 1 लाख 53 हजार 816 महिलाओं साथ 9 अन्य वोटर हैं.
नरैनी विधानसभा के अतर्रा कस्बे के प्रमुख चौराहे चौक बाजार में महात्मा गांधी की तस्वीर स्थापित है जिससे इस चौक को गांधी चौक कहा जाता है. इसी कस्बे में गांधी चौक के समीप सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित है जिससे इस मोहल्ले ( वार्ड ) का नाम सुभाष नगर हो गया. नरैनी विधानसभा में सभी जातियों का समन्वय है. सामान्य के साथ-साथ पिछड़े वर्ग एवं एससी की बराबर संख्या है और धर्म विशेष में मुस्लिम भी पर्याप्त हैं. नरैनी विधानसभा में कई दिग्गजों ने अपना भाग्य आजमाया है लेकिन यहां दबदबा डॉ सुरेंद्र पाल वर्मा ( लोध ) का ही कायम रहा है.
कहा जाता है कि नारायण कुशवाहा नाम के व्यक्ति ने नारायणी कस्बे को बसाया था इसके बाद इसी कस्बे में सबसे पहले तहसील मुख्यालय व ब्लॉक बना, परिसीमन होने के बाद तहसील व ब्लॉक होने के कारण इसको नरैनी विधानसभा घोषित किया गया. 2011 -12 में परिसीमन के दौरान विधानसभा की सीमाओं में परिवर्तन हुआ. भरतकूप को चित्रकूट जनपद में, गिरवां को बांदा सदर में और ओरन को नरैनी विधानसभा में शामिल किया गया था. इस सीट का अस्तित्व एससी सुरक्षित हो गया तब से अब तक नरैनी विधानसभा सीट एससी सुरक्षित सीट के रूप में जानी जाती है.
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नरैनी विधानसभा एक जमाने में आर्थिक रूप से चावल की मीलों के लिए जानी जाती थी. यहां एक समय में लगभग एक दर्जन के आसपास चावल मीलें लगी थीं जो अब पूर्ण रूप बंद हैं. यहां का चावल विदेश भी जाता था. चावल मीलें अब निजी प्लांटों में तब्दील हो गईं हैं. नरैनी विधानसभा का आजादी के बाद से अपेक्षित विकास नहीं हुआ है. इसकी गिनती भी पिछड़े क्षेत्रों में होती रही है. यहां उच्च शिक्षा का हमेशा आभाव रहा है , यहां के लोगों को उच्च शिक्षा के लिए दूर गैर जनपद जाना ही एक मात्र विकल्प था लेकिन साल 2007 -12 में मायावती के सरकार में मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने नरैनी विधानसभा क्षेत्र अतर्रा में एक राजकीय इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना कराई. जिसमें फिलहाल गिने चुने कोर्स ही पाठ्यक्रम के रूप में उपलब्ध हैं. सरकारी महाविद्यालय के नाम पर एक ही पीजी कॉलेज जो बुंदेलखड़ विश्वविद्यालय से अटैच होकर अतर्रा में स्थित है.
स्वास्थ्य सेवाओ का जिक्र करें तो दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ( नरैनी व अतर्रा ) व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं और यहां कोई बड़ा स्वास्थ्य संबंधी संस्थान नहीं है बल्कि जनपद में राजकीय मेडिकल कालेज है जहां मानक के अनुसार स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है. नरैनी विधानसभा में लोग कृषि के साथ-साथ लगभग आधी आबादी दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर है. खेती में फसल उत्पादन हेतु पानी की समस्या यहां हमेशा होती है. यहां कोई औद्योगीकरण न होने के कारण मजबूरी में लोग आजीविका के लिए दूसरे प्रांतों में पलायन करते हैं.
साल 2017 का जनादेश
2017 के विधानसभा के चुनाव में कुल 13 प्रत्याशी मैदान में थे , लेकिन मुकाबला भाजपा और कांग्रेस का रहा. मोदी लहर के चलते भाजपा से राजकरण कबीर को 92412 व कांग्रेस से भरत लाल दिवाकर को 47405 मत प्राप्त हुए थे. राजकरण कबीर को जीत मिली थी. दिलचस्प बात यह रही कि विधायक एवं सपा सरकार में नेता प्रतिपक्ष रहे बसपा के कद्दावर नेता गयाचरण दिनकर को हार का सामना करना पड़ा था. उनको 44610 वोट प्राप्त हुए थे.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
नरैनी विधायक राजकरण कबीर का जन्म बांदा जिले के मोरवां गांव में 14 जुलाई 1969 को हुआ. वो परास्तानक हैं. इनके पिता का नाम श्रवण कुमार है और पत्नी का नाम उर्मिला कबीर है. वह 2021 में महुआ ब्लॉक से भाजपा से ब्लॉक प्रमुख चुनी गई हैं. विधानसभा का टिकट इन्हें पार्टी में सक्रियता , विभिन्न कार्यक्रमों में भागेदारी और पिछले चुनाव में अच्छे वोट मिलने का कारण ही मिला था. साल 2002 में अपना दल व साल 2012 में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में उन्हें जीत मिली. फिलहाल विधायक जी की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे गिरा है.
(इनपुट- सिद्धार्थ गुप्ता)