उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की एक विधानसभा सीट है बड़ौत विधानसभा सीट. बड़ौत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और सहारनपुर के बीच स्थित है. मेरठ और बुढ़ाना रोड के साथ ही मुजफ्फरनगर भी यहां से करीब स्थित हैं. बड़ौत नगरपालिका भी है और यहां कई सरकारी और निजी स्कूल-कॉलेज भी हैं. बड़ौत विधानसभा सीट आजादी के बाद शुरुआती दिनों में अस्तित्व में थी लेकिन 1969 के विधानसभा चुनाव के बाद इस सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया था.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
बड़ौत विधानसभा सीट के राजनीतिक अतीत की बात करें तो ये विधानसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी. बड़ौत विधानसभा सीट भी शुरुआती दिनों में कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही है. शुरुआती साल में इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा देखने को मिला. साल 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में पंडित उमराव दत्त वैद्य विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे.
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बड़ौत विधानसभा सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद फिर से अस्तित्व में आई. परिसीमन के बाद नवगठित बड़ौत विधानसभा सीट के लिए साल 2012 में विधानसभा चुनाव हुए. 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को जीत मिली. बसपा के लोकेश दीक्षित को जीत मिली थी. तब राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) दूसरे, समाजवादी पार्टी (सपा) तीसरे और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहा था.
2017 का जनादेश
बड़ौत विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आरएलडी से आए कृष्णपाल मलिक को टिकट दिया. बीजेपी के कृष्णपाल मलिक ने आरएलडी के साहेब सिंह को 27 हजार से अधिक वोट के अंतर से हरा दिया था. सपा के शोकेंद्र तीसरे और बसपा के निवर्तमान विधायक लोकेश दीक्षित चौथे स्थान पर रहे थे.
सामाजिक ताना-बाना
बड़ौत विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें यहां हर जाति-वर्ग के मतदाता रहते हैं. ये सीट जाट बाहुल्य सीट है. इस विधानसभा क्षेत्र में करीब तीन लाख मतदाता हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी बड़ौत विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम को निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
बड़ौत विधानसभा सीट से विधायक कृष्णपाल मलिक का दावा है कि जितना विकास उनके कार्यकाल में हुआ उतना पहले कभी नहीं हुआ. दूसरी तरफ विपक्षी दलों के नेता विधायक को फेल बता रहे हैं. बड़ौत में लगने वाले जाम की समस्या जस की तस है. बीजेपी इस सीट को फिर से जीतने के लिए जोर लगा रही है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल हराने के लिए.