
उत्तर प्रदेश की भदोही विधानसभा सीट (392) अपने मखमली कालीनों के लिए पूरे विश्व मे मशहूर है. जिले में सबसे अधिक कालीन निर्यात कम्पनियां और कारखाने इसी विधानसभा में हैं जहां से बुनकरों के कुशल कारीगरी के बदौलत हजारों करोड़ की कालीन विदेशो में निर्यात की जाती है.
इस विधानसभा को सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपना-अपना गढ़ मानते हैं और सभी दलों को यहां अपना विधायक बनाने का मौका जनता ने दिया है. वर्तमान में यहां से रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी भाजपा से विधायक हैं. 2017 में सपा से हुई कांटे की लड़ाई में मामूली वोटों से चुनाव जीतकर रवीन्द्रनाथ विधायक बने. 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर सभी दल चुनावी मैदान में ताल ठोंकने के लिए तैयारी में जुटे हैं.
वाराणसी और जौनपुर की सीमा से सटा भदोही विधानसभा 1994 से पहले वाराणसी जिले के अंतर्गत आता था. 1994 में भदोही जिले के गठन के बाद इसी विधानसभा के नाम पर जिले का नाम रखा गया. भदोही, वाराणसी 45 किलोमीटर और प्रयागराज से करीब 85 किलोमीटर दूर है. भदोही में रेलवे स्टेशन है जहां से वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ, दिल्ली सहित अन्य स्थानों के लिए ट्रेनें मिलती हैं.
इसी विधानसभा के नाम से जिले का नाम होने के बाद भी जिला मुख्यालय भदोही में न होकर ज्ञानपुर में बनाया गया है जिसकी दूरी भदोही शहर से 15 किलोमीटर है. यहां आम बोलचाल की भाषा हिन्दी और स्थानीय भोजपुरी है. यहां और मिर्जापुर की आम बोलचाल की भाषा लगभग समान है. कृषि और कालीन उद्योग यहां का प्रमुख व्यवसाय है. गंगा की सहायक नदी मोरवा यहां से बहती है जो वरुणा नदी में मिलती है. वरुणा वाराणसी में जाकर गंगा में समाहित है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
2007 विधानसभा चुनाव तक भदोही विधानसभा सुरक्षित सीट थी जिस पर अनुसूचित वर्ग से आने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को विधायक बनने का मौका मिला. 2012 के विधानसभा चुनाव से यह सीट सामान्य हो गयी और इसी चुनाव में भदोही विधानसभा से सपा के टिकट पर मुस्लिम प्रत्याशी जाहिद बेग को विधायक बनने का मौका मिला. इस विधानसभा सीट पर भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों को अलग-अलग समय पर जीत मिली. 1974 से अब तक तीन बार बीजेपी, दो बार बीएसपी, तीन बार सपा और एक बार कांग्रेस के विधायक इस सीट से निर्वाचित हुए. पिछले कुछ विधानसभा चुनावों पर निगाह डालें तो सूबे में जिस पार्टी की सरकार बनने जा रही होती है. उसी दल के प्रत्याशी को यहां के मतदाता जनादेश देते नजर आए हैं.
इस विधानसभा में सबसे रोचक लड़ाई मायावती की सरकार में देखने को मिला जब बसपा विधायक अर्चना सरोज के निधन के बाद यहां उप चुनाव हुए. उपचुनाव के दौरान सपा ने बसपा प्रत्याशी के खिलाफ मधुबाला पासी को मैदान में उतार दिया. उस चुनाव में बसपा के दर्जनों मंत्रियों ने भदोही में कैम्प कर रखा था लेकिन इसके बावजूद भी बसपा चुनाव हार गई और सपा की मधुबाला पासी विधायक बनीं. यहां से बसपा के संस्थापक सदस्य और कांशीराम के खास माने जाने वाले दीनानाथ भास्कर 2002 के चुनाव में सपा से चुनाव लड़कर विधायक बने. दीनानाथ को मुलायम सिंह ने अपने सरकार में मंत्री भी बनाया था. पूर्व दस्यु सुन्दरी फूलन देवी इसी इलाके से सांसद चुनी गयी थीं जिसके बाद यह इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था. इस सीट पर कांग्रेस को सिर्फ एक बार 1980 में अपना विधायक बनाने का मौका मिला था.
सामाजिक ताना-बाना
भदोही विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरण की बात करें तो यहां ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित मतदाताओं की संख्या लगभग समान है. अनुमानित जातीय आंकड़ो के मुताबिक यहां लगभग 80 हजार ब्राह्मण, 65 हजार मुस्लिम, 25 हजार राजपूत, 35 हजार वैश्य, 40 हजार यादव, 25 हजार मौर्य, 60 हजार दलित, अन्य 85 हजार मतदाताओं में विश्वकर्मा, पटेल, बिंद, कुम्हार, पाल सहित अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाता हैं. इस सीट पर 414928 लाख मतदाता हैं जिसमे 227223 लाख पुरुष और 187677 महिला मतदाता हैं.
2017 का जनादेश
2017 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी सपा के प्रत्याशी जाहिद बेग के बीच बेहद कड़ी टक्कर देखने को मिली थी. रवीन्द्रनाथ सिर्फ 1105 वोटों के अंतर से चुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित हुए थे. इस चुनाव में भाजपा को जहां 79519 (33.32%) वोट मिले तो सपा को 78414 (32.85℅) वोट मिले. बसपा से चुनावी मैदान में पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा को तीसरे स्थान पर रहना पड़ा और उन्हें 56555 (23.69%) वोट मिले थे.
इस सीट पर निषाद पार्टी ने भी प्रत्याशी उतारा था. निषाद पार्टी ने भाजपा से बगावत करने वाले नेता डॉ आरके पटेल को टिकट दिया और उन्हें 11434 वोट मिले. इस चुनाव में कुल 24 प्रत्याशी मैदान में थे. इस चुनाव में लगभग ढाई लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था जबकि सम्पूर्ण मतदाताओं की संख्या यहां चार लाख से अधिक है. 58 फीसदी के करीब मतदाताओं ने 2017 में अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
विधायक रविन्द्र नाथ त्रिपाठी का जन्म 20 जनवरी 1960 में भदोही के सुरियावां के चौगुना गांव में हुआ. उनके पिता का नाम विक्रमादित्य त्रिपाठी है. रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी ग्रेजुएट हैं. वह सुरियावां ब्लॉक से सन 2000 में ब्लॉक प्रमुख बने और 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा में शामिल हो गए. बसपा के टिकट पर जौनपुर जिले से बरसठी विधानसभा से चुनाव लड़कर पहली बार विधायक बने.
इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में भदोही विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली और वो दूसरे स्थान पर रहे. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लहर को भांपते हुए उन्होंने बसपा सुप्रीमो पर टिकट के लिए पैसे की मांग का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली.
भाजपा ने इन्हें भदोही विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया. चुनाव में 1105 वोटों से जीतकर वो दूसरी बार विधायक बनने में सफल हो गए. विधायक को बसपा में कद्दावर मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्या के गुट का माना जाता है. वर्तमान में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भी उन्होंने अपने भाई अनिरुद्ध त्रिपाठी को जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर काबिज करा दिया. हाल ही में जिला पंचायत के चुनाव में भाजपा का माहौल उनके पक्ष में नहीं था लेकिन उन्होंने सबसे पहले पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ अपने भाई-भतीजे को चुनाव लड़ाकर जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित कराया फिर अध्यक्ष पद की दावेदारी ठोंक दी. लिहाजा उनके भाई के खिलाफ भाजपा ने प्रत्याशी तो जरूर खड़ा किया लेकिन चुनाव से एक दिन पहले अपने घोषित प्रत्याशी का टिकट काट दिया जिससे विधायक अपने भाई को आसान जीत दिलाने में सफल हुए.
विकास कार्यों की बात करें तो विधानसभा क्षेत्र में कई सड़क निर्माण, मोरवा नदी पर दस पुल निर्माण, कोविड अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना सहित कई विकास कार्य कराने का विधायक का दावा है. जबकि विपक्षी कालीन नगरी की बदहाली का आरोप लगाकर विधायक को घेरते नजर आते हैं.
विविध
विधायक रविन्द्र नाथ त्रिपाठी के बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह के चाचा एमएलसी रहे चुलबुल सिंह से बेहद अच्छे सम्बन्ध रहे हैं. जिला पंचायत चुनाव में बृजेश सिंह के भतीजे विधायक सुशील सिंह और बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह का विधायक के यहां आना हुआ था. चुनाव के बाद माना जाने लगा कि विधायक को कपसेठी हाउस से पूरा सपोर्ट आज भी मिल रहा है.
(इनपुट- महेश जायसवाल)