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Bijnor Assembly Seat: राम मंदिर आंदोलन के बाद से बीजेपी का इस सीट पर रहा है दबदबा

Bijnor विधानसभा सीट पर राम मंदिर आंदोलन के बाद से इस सीट पर ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी का ही कब्जा रहा है. बीच-बीच में बसपा जरूर चुनाव जीतती रही है लेकिन सबसे ज्यादा विधायक भाजपा के ही यहां से जीत कर आए हैं.

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Uttar Pradesh Assembly Election 2022( Bijnor Assembly Seat)
Uttar Pradesh Assembly Election 2022( Bijnor Assembly Seat)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • राम मंदिर आंदोलन के बाद से बीजेपी का रहा है दबदबा
  • बसपा ने भी इस सीट पर चखा है जीत का स्वाद
  • सूची चौधरी हैं मौजूदा विधायक

बिजनौर गंगा और मालन नदी के बीच बसा एक सुंदर शहर है. इसकी प्राचीनता इसी बात से जानी जाती है कि इस बिजनौर को महात्मा विदुर की भूमि के नाम से जाना जाता है. इसको विदुर भूमि भी कहा जाता है क्योंकि महाभारत होने से पहले महात्मा विदुर ने हस्तिनापुर का त्याग करते हुए बिजनौर मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर गंगा किनारे आकर अपनी कुटिया बना ली थी और यहीं पर रहने लगे थे. जब भगवान  श्री कृष्ण महाभारत युद्ध को रोकने के लिए दुर्योधन को समझाने के लिए हस्तिनापुर आए थे और दुर्योधन ने समझौते का प्रस्ताव ठुकरा दिया था तब कृष्ण भगवान ने महात्मा विदुर की इसी कुटिया में आकर भोजन किया था.

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महात्मा विदुर ने भगवान श्री कृष्ण को बथुए का साग खिलाया था. उसी समय से इस विदुर कुटी के प्रांगण में 12 महीने बथुआ पैदा होता .है अब यह कुटिया विशाल मंदिर का रूप ले चुकी है और इसका नाम विदुर कुटी रखा गया जो एक पर्यटन के रूप में विकसित हो रही है. भगवान को लगने वाले भोग में एक श्लोक इस विदुर कुटी से ही जुड़ा है जिसमें कहा गया है कि दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायो जी.

बिजनौर की सीमाएं मुजफ्फरनगर और मेरठ जिले की सीमाओं से मिलती है. यहां से दिल्ली,मेरठ, हरिद्वार, मुरादाबाद आदि जनपदों को जाने के लिए यातायात के बहुत साधन हैं. अगर रेल मार्ग की बात करें तो एक रेलवे स्टेशन है. इस स्टेशन पर अभी कुछ समय पहले ही ट्रेनों की संख्या बढ़ी है. यहां से गुजरने वाली रेलवे लाइन उत्तरांचल के कोटद्वार और अमरोहा के गजरौला जाकर मुख्य  रेलवे लाइन दिल्ली-लखनऊ में जुड़ती हैं.

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बिजनौर जिला मुख्यालय पर कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं है इसलिए रोजगार के साधन कम हैं. लोगों को रोजगार के लिए ज्यादातर उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित रोशनाबाद इंडस्ट्री जाना पड़ता है और बिजनौर के काफी लोग वहीं इंडस्ट्री में काम करते हैं. बिजनौर में शिक्षा के लिए बहुत सारे डिग्री और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. इसके साथ-साथ स्वास्थ्य के नाम पर जिला मुख्यालय पर डॉक्टर और अस्पतालों की पूरी भरमार है .फिलहाल यहां नए मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य भी शुरू हो गया.  बिजनौर की सबसे बड़ी समस्या हर वर्ष बिजनौर विधानसभा के खादर क्षेत्रों के गांवों में बाढ़ आने की है. इसमें 20 से 25 गांव हर वर्ष बाढ़ से प्रभावित होते हैं. आज भी कई गांव गंगा के कटान के मुहाने पर खड़े हैं. किसी भी समय गंगा उन्हें अपने आगोश में ले सकती है. इसका अभी तक कोई भी स्थाई समाधान नहीं हो पाया है.

राजनीतिक  पृष्ठ भूमि

बिजनौर विधानसभा की अगर राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो राम मंदिर आंदोलन के बाद से इस सीट पर ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी का ही कब्जा रहा है. बीच-बीच में बसपा जरूर चुनाव जीतती रही है लेकिन सबसे ज्यादा विधायक भाजपा के ही यहां से जीत कर आए हैं. 1991 में राम मंदिर आंदोलन के बाद से पहली बार भारतीय जनता पार्टी के महेंद्र पाल सिंह 67009 वोट पाकर विजयी रहे जबकि बसपा के राजा ग़जनफर अली दूसरे स्थान पर रहे. 1993 के चुनाव में फिर दोबारा से भारतीय जनता पार्टी के महेंद्र पाल सिंह 52338 वोट पाकर चुनाव जीत गए और जबकि जनता दल के सुखबीर सिंह 40730 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे.

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1996 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के राजा ग़जनफरअली 74675 वोट पाकर पहली बार विधायक बने. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर तेजपाल वर्मा को चुनाव हराया. तेजपाल वर्मा 48671 वोट पाकर दूसरे स्थान पर थे. इसके बाद से इस सीट पर फिर से बीजेपी का दबदबा शुरू हो गया.

2002 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के कुंवर भारतेंद्र सिंह इस सीट पर 52195 वोट पाकर विधायक चुने गए तो वहीं समाजवादी पार्टी के तस्लीम अहमद 35856 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे. 2007 के चुनाव में कुंवर भारतेंद्र सिंह बसपा की लहर के चलते बसपा प्रत्याशी शाहनवाज राणा से मात्र 557 वोटों से चुनाव हार गए जिसमें शाहनवाज राणा को 61588 और भारतेंद्र सिंह को 61031 वोट मिले. लेकिन 2012 के चुनाव में कुँवर भारतेंद्र सिंह ने अपनी हार का बदला लेते हुए इस सीट पर दोबारा कब्जा कर लिया इस चुनाव में भारतेंद्र सिंह को 68969 और बसपा के महबूब अली को 51133 वोट मिले थे.

 2014 के लोकसभा चुनाव में कुंवर भारतेंद्र सिंह को लोकसभा का चुनाव लड़ाने के कारण विधानसभा से त्यागपत्र देना पड़ा और 2014 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी की रुचि वीरा ने भारतीय जनता पार्टी के हेमेंद्र पाल सिंह को हराते हुए जीत हासिल की तो वहीं 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने फिर से समाजवादी पार्टी से इस सीट को छीन लिया. इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी सूची चौधरी 105548 वोट पाकर चुनाव जीत गईं. उन्होंने समाजवादी पार्टी की रुचि वीरा को 27000 वोटों से चुनाव हराया था. इस तरह अब तक इस सीट पर ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी का ही कब्जा रहा है.

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अगर पुराने इतिहास की बात करें तो 1952 और 1957 के चुनाव में कांग्रेस की चंद्रावती दो बार विधायक रही है तो 1967 और 1977 जनता दल से अलग-अलग चुनाव जीतकर कुंवर सत्यवीर सिंह दो बार विधायक रहे है 1969 के चुनाव में बीकेडी से रामपाल सिंह विधायक रहे हैं 1974, 1980 और 1984 में अलग-अलग चुनाव जीतकर कांग्रेस के अजीजुर्रहमान तीन बार विधायक रहे हैं जबकि 1989 के चुनाव में सुखबीर सिंह भी जनता दल से चुनाव जीत कर बिजनौर विधानसभा से विधायक रह चुके हैं.

सामाजिक ताना-बाना

बिजनौर विधानसभा सीट की अगर सामाजिक परिदृश्य की बात करें तो इसमें कुल 373654 वोट है जिसमें 196394 पुरुष और 177260 महिला वोटर शामिल हैं. अगर हम जातिगत वोटों की बात करते हैं तो एक लाख से ज्यादा मुस्लिम, 50,000 के लगभग जाट वोट हैं. वहीं 52 हजार के करीब दलित और 22 हजार के लगभग सैनी वोट हैं. इसके अलावा 15000 के आसपास पाल, 13000 के आसपास कश्यप, 10000 के आसपास राजपूत और 10 हजार के लगभग वैश्य हैं. साथ ही आठ हजार के करीब बंगाली और चार हजार के करीब प्रजापति वोट भी शामिल हैं. जबकि 5000 के करीब ब्राह्मण और 3000 वोटर अन्य जाति के हैं. इस सीट पर मुख्य रूप से जाट और दलित निर्णायक भूमिका के रूप में जाने जाते हैं.

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बिजनौर विधानसभा 2017 का जनादेश

बिजनौर विधानसभा में अगर 2017 के जनादेश की बात करें तो इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी सूची चौधरी वर्तमान में विधायक हैं. इन्होंने 105548 वोट पाकर इस सीट पर जीत हासिल की थी जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी कुंवरानी रुचि वीरा 78267 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थीं. बहुजन समाज पार्टी के रशीद अहमद छिद्दू 49788 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. राष्ट्रीय लोक दल के राहुल सिंह 7799 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे जबकि निर्दलीय सहित पांच अन्य प्रत्याशी चुनाव में 1000 वोट का आंकड़ा भी नहीं छू पाए थे.

विधायक का रिपोर्ट कार्ड

बिजनौर विधानसभा से पहली बार विधायक बनीं सूची चौधरी बिजनौर शहर की बहू हैं. इनकी शादी बिजनौर के नई बस्ती निवासी अधिवक्ता ऐश्वर्य मौसम चौधरी से हुई. यह पोस्ट ग्रेजुएट है और एक साधारण घरेलू महिला हैं. इनका कोई राजनीतिक इतिहास नहीं रहा है. 2016 बिजनौर के गांव पैदा में एक सांप्रदायिक दंगे में इनके पति ऐश्वर्य चौधरी उर्फ मौसम का नाम आया था और उन्हें जेल जाना पड़ा था. उसी की सहानुभूति लेने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने मौसम चौधरी की पत्नी सूची चौधरी को 2017 के विधानसभा चुनाव में बिजनौर से प्रत्याशी घोषित करते हुए चुनाव लड़वाया था. इस सीट को जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं बिजनौर में एक सभा की थी. इस चुनाव में प्रचार करते सूची चौधरी ने अपने पति को निर्दोष बताते हुए उन्हें जबरन फंसाने की बात करते हुए जनता की सहानुभूति बटोरी थी. सूची चौधरी विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतों से जीती थीं. उन्हें 105588 वोट मिले थे जबकि विपक्षी प्रत्याशी सपा की रुचि वीरा को इन्होंने करीब 27000 वोटों से चुनाव हराया था.

सूची चौधरी का दावा है कि उन्होंने खादर क्षेत्र में गंगा पर पैंटून पुल बनवाने और इंटर कॉलेज व डिग्री कॉलेज का निर्माण कराया है. इसके अलावा उन्होंनें कुछ गांवों में स्टेडियम बनाने और सड़कों का जाल बिछाने का काम किया है. जबकि बाढ़ निरोधी कार्य की फाइल अभी स्वीकृति के लिए लखनऊ में लंबित है उसके जल्दी स्वीकृत होने की उम्मीद है.

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