देश की सत्ता में आने के बाद 'सबका साथ, सबका विकास' की नीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सबका विश्वास' शब्द जोड़ा, वह महज दो शब्द नहीं, बल्कि एक बड़ा संदेश था. बहुसंख्यक समाज के बड़े वर्ग का विश्वास जीतकर सत्ता के देश की शीर्ष पर पहुंची बीजेपी मुस्लिम समाज का विश्वास जीतना चाहती है. उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने सूबे में मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने की नई रणनीति पर काम कर रही है.
बीजेपी की नजर उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की पिछड़ी जातियों (पसमांदा) पर है, जिन्हें सरकार में आयोग और पार्टी संगठन में तवज्जो देकर उनके बीच गहरी पैठ बनाने की कवायद शुरू कर दी है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की कमान मौजूदा समय में मुस्लिम पिछड़ी जातीय के गाड़ा बिरादरी से आने आतिफ रशीद के हाथों में है, जो पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से आते हैं. इतना ही नहीं, यूपी में योगी सरकार ने भी यूपी अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन अशरफ सैफी को बनाया है, जो पिछड़ी जाति के बढ़ई समाज से आते हैं.
आतिक रशीद ने 40 गांवों का दौरा किया
केंद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार योजनाओं-नीतियों में भेदभाव न होने का संदेश पहले से देती रही है. अब इसे रणनीति का हिस्सा बनाकर पार्टी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने की तैयारी है. इसी कड़ी में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष आतिफ रशीद ने पिछले छह महीनों में गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, हापुड़, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद जिला में तकरीबन 40 गांव का दौरा किया है. यह सभी पश्चिम यूपी के मुस्लिम बहुल जिले माने जाते हैं.
मुस्लिम बहुल गांव में जाकर आतिफ रशीद ने मुसलमानों की पिछड़े जाति के ऐसे लोगों से मुलाकात की थी, जिन्हें मोदी और राज्य सरकार की योजनाओं से फायदा मिला था. उन्होंने जिस तरह से पश्चिम यूपी की दौरों में मदरसों में जाकर बैठक की और उन्हें केंद्र और राज्य की योजनाओं को फायदा उठाने के लिए प्रेरित किया है, उसके सियासी संदेश निकाले जा रहे हैं.
दरअसल, मुजफ्फरनगर, मेरठ और सहारनपुर जिले का लगातार आतिफ रशीद दौरा कर रहे हैं, जिसके पीछे बीजेपी की सोची समझी रणनीति मानी जा रही है. ये वो जिले हैं, जहां उनकी गाड़ा बिरादरी बड़ी संख्या में रहती है और सियासी तौर पर काफी अहम मानी जाती है. इसे आतिफ रशीद की गाड़ा समाज को बीजेपी के साथ जोड़ने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. बीजेपी गाड़ा बिरादरी को अपने साथ जोड़ने में सफल रहती है तो कई मुस्लिम बहुल सीटों पर इस बार कमल खिल सकता है.
वहीं, उत्तर प्रदेश बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा की जो प्रदेश की टीम बनाई गई है, उसके जरिए भी मुस्लिमों में पिछड़ी जातियों को तवज्जो देकर एक संदेश देने की कोशिश बीजेपी ने की है. यूपी बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने मंगलवार को अपनी 26 सदस्यीय प्रदेश टीम की घोषणा की है, जिनमें से 21 मुस्लिम बाकी जैन, सिख और अन्य अल्पसंख्यक समाज से हैं.
कुंवर बासित अली ने बताया कि पिछली कार्यकारिणी में मुस्लिम पिछड़ी जाति से महज चार पदाधिकारी थे, जबकि इस बार संख्या बढ़ाकर ग्यारह कर दी गई है. इस बार युवा और पढ़े-लिखे पदाधिकारी बनाए गए हैं. टीम का लगभग हर सदस्य ग्रेजुएट है. इसके अलावा खास बात यह है कि मुस्लिम समुदाय में भी जो पिछड़ी जातियां हैं, उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं को प्रदेश पदाधिकारी बनाकर इन जातियों को सम्मान दिया गया है, क्योंकि राजनीति में इन समाजों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है. ऐसे में हम उन्हें संगठन में शामिल कर पिछड़े समाज के बीच अपनी पकड़ को मजबूत बनाएंगे.
मुस्लिमों में सबसे बड़ी संख्या अंसारी बिरादरी की
यूपी में मुसलमानों में सबसे बड़ी संख्या अंसारी बिरादरी की है, जिसे यूपी के पार्टी अल्पसंख्यक संगठन में अच्छी खासी जगह दी गई है. इसके अलावा मुसलमानों के अल्वी और अब्बासी समुदाय को भी शामिल किया गया है. सियासी तौर पर अंसारी समाज का प्रतिनिधित्व है, लेकिन अल्वी और अब्बासी समुदाय की संख्या अच्छी खासी होने के बाद भी राजनीति में वो जगह नहीं मिल पाई है. ऐसे में बीजेपी ने उन्हें संगठन में जगह देकर अपने साथ जोड़ने का बड़ा दांव चला है.
दरअसल, सियासी गलियारों में अक्सर यह चर्चा होती है कि मुस्लिम समाज उसी दल को वोट देता है, जो उसे बीजेपी के मुकाबले मजबूत नजर आता है. इस 'कथनी' को अपनी 'करनी' से बेअसर करने में सत्ताधारी बीजेपी को अब कोई संकोच शायद नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव में 'सबका साथ, सबका विकास' की नीति अपनाने वाली भाजपा ने 2019 आते-आते अपनी नीति को विस्तार दिया. प्रधानमंत्री मोदी ने सबका साथ, सबका विकास के साथ सबका विश्वास को भी जोड़कर स्पष्ट कह दिया था कि अल्पसंख्यकों को छला गया. अब हम उनका भी विश्वास हासिल करेंगे.
माना जाता है कि तीन तलाक के खिलाफ कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं को साथ लेने की सबसे पहली कोशिश हुई, जिसका कुछ लाभ पार्टी को पिछले चुनावों में हुआ भी. ऐसे में बीजेपी की तैयारी 2022 के यूपी चुनाव में मुस्लिम इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने की है, जिसके लिहाज से पार्टी मुसलमानों को पिछड़े वर्ग के नेताओं को आगे बढ़ाकर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की रणनीति है.
बता दें कि 20 फीसद मुस्लिम जनसंख्या वाले सूबे के दो दर्जन से ज्यादा ऐसे जिले हैं, जहां 20 से 65 फीसद तक मुस्लिम आबादी है. इन जिलों की 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं. इसके बावजूद 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं बनाया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद पूर्व क्रिकेटर मोहसिन रजा को जरूर विधान परिषद सदस्य बनाकर राज्यमंत्री पद भी दिया गया. साल 2019 के बाद पार्टी की रीति-नीति बदली है, इसलिए यूपी के विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी इसका असर नजर आ सकता है.
मुस्लिम बहुल कुछ सीटों पर पार्टी उसी समाज में से अपने प्रत्याशी भी चुने. माना जा रहा है कि पार्टी दर्जनभर से अधिक मुस्लिम दावेदारों को टिकट थमा सकती है. बशर्ते, इस बात का ख्याल जरूर रखा जाएगा कि प्रत्याशी हर पहलू से जिताऊ हो. बीजेपी नेता यह बात कहते रहे हैं कि यदि कोई मुस्लिम कार्यकर्ता ऐसा हो, जिसकी कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता हो, जनता में लोकप्रियता और पार्टी के प्रति समर्पण हो तो उसे टिकट देने में कोई परहेज नहीं होगा.