उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अपना दल (एस) के साथ-साथ निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया है. निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद को राज्यपाल कोटे से एमएलसी के लिए भी मुहर लग गई है. सूबे में इन दिनों बीजेपी के लिए भले ही संजय निषाद आंखों का तारा बना हुए हों, लेकिन बीजेपी के निषाद वोट का खेल बिगाड़ने के लिए बिहार के एनडीए के सहयोगी मुकेश सहनी ने पूरी तरह से तैयारी कर ली है.
मुकेश सहनी यूपी के रण में उतरेंगे
मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) 2022 के यूपी चुनाव लड़ने के लिए पूरे दमखम के साथ उतरने जा रही हैं. सहनी ने निषाद समाज को आरक्षण दिलाने का वादा करते हुए 165 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी की है. साथ ही चुनाव से पहले मुकेश सहनी सूबे के निषाद बहुल 12 जिलों में माहौल बनाने के लिए उतर रहे हैं. वीआईपी पार्टी प्रवक्ता देव ज्योति ने बताया कि बिहार सरकार में मंत्री व पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी 9 अक्टूबर को आगरा से मिशन-यूपी का आगाज करेंगे.
मुकेश सहनी यूपी में अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए उन्हीं जिलों को टारगेट किया है, जहां निषाद वोटर अहम भूमिका में हैं. पश्चिम यूपी से लेकर पूर्वांचल और बृज के इलाके पर खास फोकर कर रहे हैं. इसीलिए आगरा, सुल्तानपुर, आजमगढ़, प्रयागराज, गाजीपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, अयोध्या, बलिया, बनारस, मुजफ्फरनगर और गोरखपुर में रैली करने की रूप रेखा तैयार की है. यह वह जिले हैं, जहां निषाद वोटर जीत-हार तय करते हैं.
निषादों दलित का दर्जा देने की लड़ाई
मुकेश सहनी अपनी जनसभाओं के जरिए निषाद समाज को जागरूक करने का काम करेंगे. उन्होंने कहा कि देश के अन्य 14 राज्यों की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी निषाद वंशीय को अनुसूचित जाति में शामिल करने की लड़ाई लडेंगे. 'आरक्षण नहीं तो गठबंधन नहीं' इसी मुद्दे पर अडिग रहकर मुकेश सहनी आगामी 9 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक यूपी के 12 जिलों में जनसभाएंगे करेंगे. यही मुद्दा संजय निषाद का भी रहा है, जिसे लेकर लंबे समय से लड़ाई कर रहे थे. हालांकि, बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के बाद वो अब पहले की तरह अपना तेवर नहीं दिखा रहे हैं.
बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर की सियासी कमी की भरपाई के लिए संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ मिलकर 2022 के चुनाव लड़ने का फैसला किया है ताकि पूर्वांचल में सियासी समीकरण को मजबूत बनाया जा सके. संजय निषाद गोरखपुर से हैं और पूर्वांचल और अतिपिछड़ी जाति से आते हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने संजय निषाद को साथ लाकर अपना सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद की है.
निषाद के आने से बीजेपी को मिलेगा फायदा
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने संजय निषाद को साथ लेकर ओम प्रकाश राजभर की 'मोनोपोली' (एकाधिकार) को तोड़ने में सफल रही थी. बीजेपी ने संजय निषाद के बेटे को संतकबीरनगर से संसदीय का चुनाव अपने सिंबल पर लड़ाया था. पूर्वांचल के जिलों में निषाद समुदाय का एकमुश्त वोट बीजेपी को मिला था. 2022 के चुनाव में बीजेपी फिर से इसी समीकरण को जमीन पर उतारने का दांव चला है, जिसके लिए निषाद पार्टी से गठबंधन के साथ-साथ संजय निषाद को एमएलसी भी बनाया है. लेकिन, बीजेपी और निषाद पार्टी के सियासी राह में वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी सबसे रोड़ा बनते नजर आ रहे हैं.
दरअसल, बीजेपी ने संजय निषाद के जरिए अति पिछड़ों में सर्वाधिक जनसंख्या वाले निषाद जाति संबंधित करीब 6-7 उपजातियों को साधने की कोशिश की है. निषाद समुदाय के तहत निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड आदि उप जातियां आती हैं. सूबे में 20 लोकसभा सीटें और तकरीबन 60 के करीब विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां निषाद वोटरों की संख्या अच्छी खासी है.
गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद ,फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर जिले में निषाद वोटरों की संख्या अधिक है. हालांकि, सूबे में निषाद समाज अलग-अलग खेमों में बटे हैं और सभी खेमों के अलग-अलग नेता हैं. बिहार में निषाद समुदाय के मंत्री और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी भी यूपी में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी के गढ़ में निषाद समाज के बीच हुंकार भरेंगे. ऐसे में देखना है कि निषाद वोटों के शह-मात के खेल में सियासी बाजी किसके हाथ लगती है.