उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपने सियासी समीकरण दुरुस्त करने में जुट गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद की राजनीति के विपक्षी आरोप के बीच बीजेपी को लगने लगा है कि यूपी में ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी सूबे में सत्ता की वापसी में सबसे बड़ी बाधा न बन जाए. ऐसे में ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के घर हुई बैठक के बाद एक कमेटी बनाई गई, जिसके अध्यक्ष शिव प्रताप शुक्ला बनाए गए हैं. शुक्ला और सीएम योगी के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं.
ब्राह्मण कमेटी में ये नेता शामिल
सूबे में ब्राह्मण को साधने के लिए बनाई गई कमेटी में शिव प्रताप शुक्ल के साथ-साथ बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री रहे अभिजात मिश्रा, सांसद डॉ. महेश शर्मा, गुजरात से सांसद राम भाई मोकरिया को भी रखा गया है. हालांकि, माना जा रहा है कि यह 4 सदस्यीय कमेटी बढ़ाकर, 7 सदस्य बनाई जा सकती है. ऐसे में आने वाले समय में कुछ और नाम इस में जोड़े जा सकते है. यह कमेटी ब्राह्मणों की नाराजगी को लेकर इंटरनल रिपोर्ट पार्टी को सौंपेगी.
धर्मेंद्र प्रधान के घर बैठक में उठा मुद्दा
बता दें कि धर्मेंद्र प्रधान के घर हुई बैठक में सभी ब्राह्मण चेहरों ने बिना किसी का नाम लिए उत्तर प्रदेश में हुए एनकाउंटर की चर्चा की. सभी ने बिकरू कांड में विकास दुबे के एनकाउंटर को सही ठहराया, लेकिन इस एनकाउंटर के अलावा जितने दूसरे एनकाउंटर हुए इस पर कई लोगों ने इसे ब्राह्मणों की नाराजगी से जोड़ा. साथ ही खुशी दुबे का नाम हालांकि किसी ने नहीं लिया, लेकिन दबी जुबान में खुशी दुबे के जेल में बंद होने की चर्चा भी ब्राह्मणों के बीच फैली नाराजगी की अहम वजह बताई गई.
योगी विरोधी माने जाते हैं शिव प्रताप शुक्ल
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने ब्राह्मण कमेटी की कमान जिस शिव प्रताप शुक्ल को सौंपी है, वो पूर्वांचल में सीएम योगी के गोरखपुर से आते हैं. बीजेपी में ब्राह्मणों के एक प्रभावी चेहरे के तौर पर वो देखे जाते हैं. पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री भी रहे और इस वक्त राज्यसभा सांसद हैं. शिव प्रताप शुक्ल को गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूर्वांचल में ब्राह्मण सियासत का बैलेंस फैक्टर माना जाता है.
शिव प्रताप शुक्ल और सीएम योगी के बीच छत्तीस के आंकड़े जगजाहिर रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने एक समय शिव प्रताप शुक्ल को गोरखपुर में चुनावी मात दिलाकर उनकी पूरी सियासत खत्म कर दी थी. शिव प्रताप ने लगातार चार बार विधानसभा का चुनाव जीता है. 1989,1991,1993 और 1996 में विधायक और यूपी में मंत्री भी रहे. योगी ने अपना सियासी वर्चस्व कायम करने के लिए शिव प्रताप के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा करके उन्हें चुनाव हरवाया था.
2002 में योगी ने हराया था चुनाव
2002 के विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर सदर सीट से शिव प्रताप शुक्ल का विरोध करते हुए इनके खिलाफ राधा मोहनदास अग्रवाल को हिन्दू महासभा के टिकट पर जितवा दिया था. शिव प्रताप शुक्ल और योगी के बीच यहीं से सियासी अदावत शुरू हो गई. शिव प्रताप शुक्ल बीजेपी में साइड लाइन कर दिए गए, लेकिन पार्टी के प्रति उन्होंने अपनी वफादारी नहीं छोड़ी. नरेंद्र मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने तो शिव प्रताप शुक्ल का 14 साल के बाद सियासी पुनरुद्धार हुआ. वह राज्यसभा सदस्य बने और मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाए गए थे.
ब्राह्मणों की नाराजगी को दूर करने का जिम्मा
अब यूपी के 2022 चुनाव से ठीक पहले ब्राह्मणों की नाराजगी के कारणों का पता लगाने का जिम्मा शिव प्रताप शुक्ल को सौंपा गया है. भाजपा नेतृत्व का शिव प्रताप शुक्ला को आगे करने का मकसद सिर्फ ब्राह्मणों को साधना ही नहीं, बल्कि ये भी संदेश देने की कोशिश है कि कभी सीएम योगी आदित्यनाथ के विरोधी रहे शिव प्रताप शुक्ल पर पार्टी पूरा भरोसा करती है.
शिव प्रताप शुक्ल के अगुवाई वाली कमेटी अपनी क्या रिपोर्ट देती है, कैसे ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के उपाय सुझाती है इस पर सबकी नजर रहेगी, लेकिन एक बात सभी ब्राह्मण नेताओं से कही गई है कि सूबे में अब ब्राह्मण समाज की नाराजगी को दूर करना एक टास्क है. ऐसे में बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता सभी ब्राह्मणों के घर जाएंगे, जो किन्हीं कारणों से नाराज हैं.