scorecardresearch
 

लखनऊ: ब्राह्मणों को साधने आज खुद उतरेंगी मायावती, बसपा के मिशन 2022 को देंगी धार

सूबे में ब्राह्मणों को साधने के लिए अब खुद बसपा प्रमुख मायावती ने मोर्चा संभाल लिया है. 2007 की तरह सत्ता में वापसी के लिए बसपा सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अब तक सूबे के 74 जिलों में प्रबुद्ध सम्मेलन (ब्राह्मण सम्मेलन) कर चुकी है और अब आखिरी सम्मेलन मंगलवार को लखनऊ स्थित पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में होगा, जिसे मायावती संबोधित करेंगी.

Advertisement
X
बसपा प्रमुख मायावती
बसपा प्रमुख मायावती
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बसपा का आखिरी ब्राह्मण सम्मलेन लखनऊ में हो रहा
  • मायावती खुद ब्राह्मण समुदाय को संबोधित करेंगी
  • 2007 के फॉर्मूले को मायावती आजमाने में जुटीं

उत्तर प्रदेश में सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए बसपा 14 साल बाद फिर से ब्राह्मण समुदाय को जोड़ने की कवायद में जुटी है. सूबे में ब्राह्मणों को साधने के लिए अब खुद बसपा प्रमुख मायावती ने मोर्चा संभाल लिया है. 2007 की तरह सत्ता में वापसी के लिए बसपा सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अब तक सूबे के 74 जिलों में प्रबुद्ध सम्मेलन (ब्राह्मण सम्मेलन) कर चुकी है और अब आखिरी सम्मेलन मंगलवार को लखनऊ स्थित पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में होगा, जिसे मायावती संबोधित करेंगी. 

Advertisement

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मंगलवार को पहली बार बसपा प्रमुख व पूर्व सीएम मायावती किसी सार्वजनिक मंच पर नजर आएंगी. ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए बसपा के मिशन-2022 का आगाज करेंगी. वो ब्राह्मण सम्मलेन के बहाने अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के सामने मिशन-2022 के सियासी एजेंडा को रखेंगी.

अयोध्या से हुआ था आगाज 

बता दें कि यूपी में 2022 की चुनावी लड़ाई में अभी तक कमजोर मानी जा रही मायावती ने बसपा महासचिव सतीश मिश्रा के कंधों पर ब्राह्मणों को जोड़ने का जिम्मा दे रखा है. सतीश चंद्र मिश्रा की अगुवाई में बसपा ने 23 जुलाई को अयोध्या से प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी (ब्राह्मण सम्मेलन) की शुरुआत की था. इसके बाद अलग-अलग चरणों में सम्मेलन करते हुए अब तक 74 जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन किए जा चुके हैं. 

Advertisement

बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन का समापन लखनऊ में मॉल एवेन्यू स्थित पार्टी कार्यालय में हो रहा है, जिसमें मंच पर मायावती खुद नजर आएंगी. सभी 75 जिलों के सम्मेलनों के ब्राह्मण कोऑर्डिनेटर शामिल होंगे. प्रदेश भर से भी ब्राह्मण समाज के बड़ी संख्या में प्रतिनिधि बुलाए गए हैं, जिन्हें बसपा सुप्रीमो मायावती संबोधित करेंगी. 

बसपा का मिशन 2022 

बसपा अध्यक्ष मायावती की तरफ से इस कदम को मिशन 2022 के आगाज के तौर पर देखा जा रहा है. पांच महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. यह चुनाव बसपा और मायावती दोनों के लिए सियासी तौर पर काफी अहम माना जा रहा है. 2012 के बाद से बसपा का जनाधार जिस तरह से खिसका है, वो मायावती के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. इसीलिए अब खुद भी चुनावी रण में उतरकर पार्टी का माहौल बनाने की कवायद में जुट रही हैं. 

उत्तर प्रदेश में 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक माने जाते हैं. 1990 से पहले तक सूबे में सत्ता की बागडोर ब्राह्मणों के हाथों में रही है, लेकिन मंडल की राजनीति के बाद से ब्राह्मण वोट बैंक बनकर रह गया है. यूपी में ब्राह्मण समाज की संख्या भले ही कम हो, लेकिन सियासी तौर पर काफी अहम हैं. पूर्वांचल से लेकर अवध और रुहेलखंड तक कई सीटों पर ब्राह्मण राजनीतिक तौर पर हार और जीत में भूमिका अदा करते हैं. यही वजह है कि बसपा से लेकर सपा और बीजेपी तक ब्राह्मणों को साधने में जुट गई है. 

Advertisement

कई जिलों में ब्राह्मण वोटरों का असर

यूपी में देवरिया, संतकबीरनगर, बलरामपुर, बस्ती, महाराजगंज, गोरखपुर, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, भदोही, प्रतापगढ़, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज, हाथरस, शाहजहांपुर, बरेली, सुल्तानपुर और अंबेडकरनगर में  ब्राह्मण समुदाय की अच्छी खासी संख्या है. इन जिलों की विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण समुदाय खुद या फिर दूसरे को जिताने की ताकत रखते हैं. 

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 80 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट किया. यूपी में कुल 58 ब्राह्मण विधायक जीते, जिनमें 46 विधायक बीजेपी से बने थे. वहीं, 2012 विधानसभा में जब सपा ने सरकार बनायी थी तब बीजेपी को 38 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. सपा के टिकट पर  21 ब्राह्मण समाज के विधायक जीतकर आए थे. 2007 विधानसभा में बीजेपी को 40 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. 2007 में BSP ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का सफल प्रयोग किया था, जिसे बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था. 

यूपी की सियासत में मायावती ने 2007 में ब्राह्मण समाज को तरजीह दी थी, जिसके चलते प्रदेश में ब्राह्मण वोटों का महत्व बढ़ गया. तब से जो भी दल सत्ता में आए उसमें ब्राह्मण वोटों की अहम भूमिका रही, 2007 में मायावती ने 86 ब्राह्मणों को बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया था, जिसमें से 41 ब्राह्मण विधायक चुने गए. करीब 10 ब्राह्मण समुदाय के लोगों को मायावती ने अपनी कैबिनेट में जगह दी थी. 2022 के चुनाव में बसपा का पूरा जोर ब्राह्मण वोटरों पर है. ऐसे में देखना होगा कि मायावती क्या सियासी कमाल कर पाती हैं?  

Live TV

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement