यूपी के मुजफ्फरनगर जिले की एक विधानसभा सीट है बुढ़ाना विधानसभा सीट. बुढ़ाना का ये नाम बेगम समरू के जमाने से ही है. जानकारों के मुताबिक इस किले का निर्माण करीब चार सौ साल पहले हुआ था जिसे बेगम के राज से पहले बनवाया गया था. बाद में इसे बेगम समरू का किला कहा जाने लगा था. यह सरधना रियासत का हिस्सा था और यहां बेगम का निवास और सैनिक छावनी थी. बेगम यहीं से अपनी रियासत चलाती थीं. बेगम की रियासत के वजीर-ए-आजम राव दीवान सिंह यहां के निवासी थे.
जानकारों के मुताबिक इस किले के चारों ओर चार बुर्ज बने थे जिनसे सरधना के चर्च की चोटी दिखती थी. अब उनमें से एक ही बुर्ज बचा है. इस किले से सरधना के किले तक आने-जाने के लिए एक सुरंग भी बनाई गई थी जो अब धंस कर बंद हो चुकी है. इसी विधानसभा क्षेत्र में शोरम गांव भी है जहां सन 1362 से ही सर्व खाप की पंचायत राजा हर्ष वर्धन के जमाने से चल रही है. इसके लिए गांव में उस समय एक चौपाल का भी निर्माण कराया गया था जहां ये पंचायत होती है. समाज में फैली बुराइयों को लेकर अंग्रेजी शासन की समाप्ति के बाद 1950 में यहां पहली पंचायत का आयोजन किया गया था.
इसी इलाके में है टिकैत का गांव
मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट में सिसौली गांव भी आता है. सिसौली को किसानों की राजधानी भी कहा जाता है. सिसौली में ही किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म हुआ था. सिसौली में ही नए कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से भी लंबे चले किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले राकेश टिकैत और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत, महेंद्र सिंह टिकैत के ही पुत्र हैं.
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बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र गन्ने की पैदावार के लिए भी पहचान रखता है. बजाज हिन्दुस्थान नाम से एक शुगर मिल भी इस इलाके में है. यहां से हिंडन नदी गुजरती है जिसे लेकर लोग कहते हैं कि यहां भी लोग गंगा की तरह स्नान करने आते थे. यहां हर साल मेला भी लगता था जिसमें दूर दराज से लोग आते थे. यहां के तरबूज भी प्रसिद्ध थे लेकिन समय के साथ हिंडन नदी भी अपना अस्तित्व खोते जा रही है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
बुढ़ाना विधानसभा सीट के सियासी अतीत की बात करें तो ये सीट 2012 में अस्तित्व में आई थी. इस विधानसभा सीट के लिए साल 2012 में पहली दफे विधानसभा चुनाव हुए थे. इस सीट से पहले चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के नवाजिश आलम जीते थे. सपा के नवाजिश ने राष्ट्रीय लोक दल के राजपाल बालियान को हराया था. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के योगराज सिंह तीसरे स्थान और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उमेश मलिक चौथे स्थान पर रहे थे.
2017 का जनादेश
बुढ़ाना विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 2012 में चौथे स्थान पर रहे उमेश मलिक को उम्मीदवार बनाया. उमेश मलिक ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी प्रमोद मलिक को 13 हजार से अधिक वोट के अंतर से हरा दिया था. बीजेपी के उमेश मलिक को 97781 वोट मिले थे. दूसरे स्थान पर रहे सपा के प्रमोद त्यागी को 84580 वोट मिले थे.
सामाजिक ताना-बाना
बुढ़ाना विधानसभा सीट का एक छोर बागपत और दूसरा शामली जिले से मिलता है. जातिगत आंकड़ों की बात करें तो मुस्लिम, दलित, जाट, कश्यप, सैनी, त्यागी और पाल मतदाताओं की बहुलता है. इस विधानसभा क्षेत्र में करीब चार लाख मतदाता हैं.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
बुढ़ाना विधानसभा सीट से 2017 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए उमेश मलिक का जन्म डूंगर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम रामपाल सिंह है जो एक किसान हैं. उमेश मलिक के परिवार में पत्नी इन्द्ररेखा मलिक, पुत्र शुभम भी हैं. उमेश मलिक ने वकालत की पढ़ाई भी की है. लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहने के बाद उमेश मलिक 1994 में बीजेपी से जुड़ गए थे.