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Bulandshahr: बुलंदशहर में किस पार्टी का रहा दबदबा, कौन सी जाति सबसे प्रभावशाली? जानें जिले का सियासी समीकरण

Bulandshahr district politics: गंगा और यमुना नदियों के बीच दोआब क्षेत्र में स्थित कृषि प्रधान जनपद बुलंदशहर की आबादी चालीस लाख के लगभग है जिसमें 21 लाख के लगभग पुरुष और 19 लाख के लगभग महिला आबादी है. बुलंदशहर में बड़ी आबादी हिंदू समुदाय की है.

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बुलंदशहर जिले का चुनावी समीकरण
बुलंदशहर जिले का चुनावी समीकरण
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बुलंदशहर जिले में सात विधानसभा सीटें
  • जिले में खुर्जा ही एकमात्र सुरक्षित सीट
  • बीजेपी और बसपा रही है यहां मजबूत

बुलंदशहर... पश्चिमी यूपी का वो जिला है जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाला कारोबार दिया है, राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाने वाले नेता दिए और दिल्ली-एनसीआर समेत आसपास के इलाकों को छोटी काशी के रूप में अनूपशहर भी दिया. 

गंगा और यमुना नदियों के बीच दोआब क्षेत्र में स्थित कृषि प्रधान जनपद बुलंदशहर जिले में 7 तहसील, 17 नगर पालिक और नगर पंचायत हैं, 16 ब्लॉक हैं, जबकि 1200 से ज्यादा गांव हैं. 34 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस जिले के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें सिकंदराबाद, बुलंदशहर, स्याना, अनूपशहर, डिबाई, शिकारपुर और खुर्जा (SC) है. 

लोकसभा की बात की जाए तो जिले का बड़ा हिस्सा बुलंदशहर लोकसभा क्षेत्र (SC) में आता है, जबकि कुछ हिस्सा गौतमबुद्धनगर यानी नोएडा लोकसभा क्षेत्र में लगता है. इससे आप समझ सकते हैं कि ये जिला लगभग दिल्ली-एनसीआर की हद में ही आता है. 

जातीय समीकरण

बुलंदशहर में बड़ी आबादी हिंदू समुदाय की है. 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां करीब 64 फीसदी आबादी हिंदू और करीब 35 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है. यानी मुख्य रूप से हिंदू (दलित आबादी को मिलाकर) और मुस्लिम आबादी ही है. हिंदुओं में दलित, लोध राजपूत, ब्राह्मण, ठाकुर, जाट प्रत्येक जाति के लोग 10 से 15 प्रतिशत हैं तो यादव, सिख, कायस्थ, जैन आदि अपेक्षा में कम हैं.

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इस जिले का सबसे बड़ा सियासी फैक्टर लोध वोटर माना जाता है, जिसे स्वर्गीय कल्याण सिंह ने बीजेपी के साथ जोड़ने का काम किया है. बुलंदशहर जिला कल्याण सिंह का गढ़ रहा है. अब वो इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन बेटे राजवीर सिंह बीजेपी का कमल थामे अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. 

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बड़े नाम और सियासी विरासत

जिले के कुछ और नेता भी हैं जो अपने परिवार की सियासी विरासत को आगे ले जा रहे हैं. इन्हीं में एक हैं दिलनवाज खान. यूं तो स्याना का आम काफी मशहूर है, लेकिन दिलवनाज खान और उनके परिवार की सियासत भी लंबे समय से जिले की पहचान बनी हुई है. दिलनवाज खान के दादा मुमताज मोहम्मद और पिता इम्तियाज स्याना सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक रह चुके हैं. 2012 में जब सपा ने राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, तब दिलनवाज खान भी इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. 

लेकिन दिल्ली की राजनीति में सत्ता परिवर्तन होने पर हालात बदले तो दिलनवाज खान ने भी पाला बदल दिया. 2017 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन मुस्लिम-दलित गठजोड़ होने के बावजूद हार गए. इस बार दिलनवाज RLD में हैं.

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बता दें कि ये वही स्याना है जहां भीड़ ने पुलिस पर हमला बोल दिया था, जिसमें इंस्पेक्टर सुबोध कुमार शहीद हो गए थे. 

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाता भी बुलंदशहर से रहा है. वो यहीं पैदा हुए और यहीं से अपनी राजनीति का आगाज किया. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर आरिफ मोहम्मद खान स्याना सीट से चुनाव जीते थे. इनके अलावा, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास जैसे दिग्गज नेताओं का नाता भी बुलंदशहर जिले से रहा है. 

दल-बदल का गेम

सपा सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री रहे किरन पाल को जनपद और आसपास के क्षेत्र में जाट नेता के रूप में जाना जाता है. 2020 अक्टूबर में निवर्तमान विधायक वीरेंद्र सिरोही के निधन के बाद सदर सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान सीएम योगी जनसभा करने पहुंचे थे, और यहीं किरन पाल अपने समर्थकों के साथ सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. इसके बाद एक अन्य दल बदल के क्रम में सपा के राज्यसभा सांसद और बड़े मिल्कप्रोडक्ट कारोबारी सुरेंद्र नागर भी बीजेपी में शामिल हो गये, बीजेपी ने सुरेंद्र नागर को राज्यसभा भेज दिया.

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1930 का वो गुलावठी कांड आज भी इतिहास के पन्नों पर दर्ज है, जब बाबू बनारसी दास के नेतृत्व में एक सभा आयोजित हुई और पुलिस ने सभा पर हमला कर दिया. खैर, ये इतिहास की बात है. 

वर्तमान में जो मशहूर है, वो अनूपशहर है. बुलंदशहर जिले का ये वो शहर है जिसे छोटी काशी भी कहा जाता है. यहां से गंगा गुजरती है, लिहाजा कई किस्म के धार्मिक अनुष्ठान यहां संपन्न कराए जाते हैं. 

चुनावी समीकरण

बुलंदशहर जिले की चुनावी राजनीति में बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व रहा है. समाजवादी पार्टी भी बीच-बीच में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है. एक तरफ मुस्लिम-दलितों का गठजोड़ बसपा के काम आता रहा है, तो दूसरी तरफ ठाकुर, लोध, वैश्य समेत अन्य समाज का समर्थन बीजेपी को जीत दिलाता रहा है. 

डीपी यादव का चुनावी बैकग्राउंड

वोटिंग पैटर्न की बात करें तो बुलंदशहर में कभी भी किसी नेता का वर्चस्व ऐसा नहीं रहा कि वह वोट ट्रांसफर की पोजीशन में रहे लेकिन जाति के नाम पर वोटों का ट्रांसफर जरूर होता रहा. 1989 में बोफोर्स की लहर चली तो 9 में आठ सीट जनता दल व एक सीट (स्याना) कांग्रेस को गई. 1991 में राम लहर चली तो सिकंदराबाद सीट छोड़कर सभी आठ सीट भाजपा को गईं. 1993 के मध्याविधि चुनाव में भी राम लहर का असर रहा और 9 सीट में से सात सीट भाजपा ने जीती, जबकि जाट बाहुल्य सीट अगौता जाट नेता किरन पाल (जनता दल) के खाते में गई.  बुलंदशहर सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई और डी पी यादव यहां से चुनाव जीते.

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यह असर आगे भी बरकार रहा और 1996 में भी भाजपा की पांच सीट, दो सीट कांग्रेस व एक सीट सपा को गई. जबकि शिकारपुर पर चुनाव स्थगित हो गया.

कल्याण सिंह के जाने से घटा था बीजेपी का ग्राफ

2002 में जनपद में लोध राजपूत मतों पर अपना खास प्रभाव रखने वाले नेता कल्याण सिंह भाजपा से अलग हो गए जिसके कारण भाजपा को शिकस्त मिली और भाजपा जनपद में शिकारपुर और बुलंदशहर दो सीटों पर सिमट गई. दो सीट डिबाई व स्याना कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के प्रत्याशी को मिली.

2007 में बसपा का राज आया. केवल अगौता और स्याना सीट भाजपा को मिली, शेष पांच सीट बसपा को मिलीं. 2012 में मिला जुला असर देखने को मिला. दो सीट सपा, दो सीट बसपा, दो सीट कांग्रेस व एक सीट भाजपा को मिली.

2017 में मोदी लहर में जनपद की सभी सातों विधानसभा सीट पर भाजपा के प्रत्याशियों की जीत हुई. दूसरे स्थान पर छह सीट पर बसपा रही तो एक सीट डिबाई पर सपा का प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहा.  बुलंदशहर, सिकंदराबाद व अनूपशहर सीट पर सपा तीसरे नंबर पर रही. खुरजा और शिकारपुर सीट पर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही. डिबाई पर बसपा व स्याना सीट पर RLD के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे.

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अनूपशहर  सीट की बात करें तो 2017 में यहां बीजेपी से गजेंद्र सिंह जीते थे. जबकि उससे पहले 2012 और 2007 में ये सीट बसपा के खाते में गई थी. सपा यहां से कभी जीत दर्ज नहीं कर सकी है. 

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बुलंदशहर सीट पर सपा को जीत नसीब हुए काफी अरसा हो गया है. 1995 में सपा यहां से जीती थी. इसके बाद लगातार दो बार बीजेपी जीती, फिर लगातार दो बार बसपा जीती और अलीम खान विधायक बने. 2017 में बीजेपी वीरेंद्र सिंह सिरोही जीते, लेकिन उनकी मौत के बाद 2020 में उपचुनाव कराए गए. उपचुनाव में उनकी पत्नी उषा सिरोही जीत गईं जबकि बसपा के हाजी यूनुस दूसरे नंबर पर रहे. अब हाजी यूनुस आरएलडी में हैं. हाल ही में उन पर जानलेवा हमला किया गया, जबकि उनके भाई व पूर्व विधायक अलीम खान का भी मर्डर हो चुका है.

कहा जाता है कि खुर्जा का कनेक्शन तैमूर वंश से रहा है, तैमूर की सेना के कुछ मिट्टी के शिल्पकार यहां रह गए थे, जिसके चलते धीरे-धीरे यहां पॉटरी का कारोबार बढ़ता चला गया. आज खुर्जा का पॉटरी कारोबार पूरी दुनिया में मशहूर है. इस विधानसभा सीट की सबसे खास बात ये है कि यहां कभी न सपा जीती है, और न कोई मुस्लिम उम्मीदवार. हालांकि, यहां मुस्लिमों की अच्छी खासी तादाद है. लेकिन ठाकुर समुदाय का बोलबाला ज्यादा है. 

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स्याना सीट पर भी यूं तो सपा का दमखम नहीं रहा है, लेकिन इस बार आरएलडी इस सीट पर ताल ठोक रही है. वहीं, सिकंदराबाद सीट पर सपा को जीत का सूखा खत्म होने का इंतजार है. पिछले चार चुनाव में यहां दो बार बसपा और दो बार भाजपा जीती है. 

हालांकि, शिकारपुर सीट पर 2012 में सपा को जीत मिली थी लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां परचम लहराया था और मुकेश शर्मा आरएलडी के टिकट पर लड़कर चौथे नंबर पर रहे थे. 

डिबाई विधानसभा में भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित का दबदबा रहा है. 2007 में वो बसपा के टिकट पर जीते थे, जबकि 2012 में सपा के टिकट पर वो विधायक बने. गुड्डू पंडित ने इस चुनाव में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह को हराया था. 2017 में हालांकि यहां से सपा के टिकट पर हरीश कुमार लड़े वो बीजेपी की अनीता लोधी राजपूत ने उन्हें हरा दिया. 

 

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