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Chakia Assembly seat: चंद्रकांता के नवगढ़ वाले क्षेत्र में हर बार बदलती रही हार-जीत

2017 में चकिया विधानसभा की सीट बहुजन समाज पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए शारदा प्रसाद ने जीती थी.

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Chakia Assembly seat
Chakia Assembly seat
स्टोरी हाइलाइट्स
  • देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता संतति में किया यहां के नवगढ़ का चित्रण
  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का पैतृक गांव भभौरा इसी विधानसभा क्षेत्र में
  • चकिया विधानसभा क्षेत्र में अधिकांश इलाके वन क्षेत्र से आच्छादित

पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले की चकिया विधानसभा (Chakia Assembly seat) का स्वतंत्र अस्तित्व 1962 में सामने आया. इससे पहले यह सीट चंदौली विधानसभा से जुड़ी हुई थी. नए परिसीमन में इस विधानसभा में चंदौली विधानसभा के भी कुछ गांव को समावेशित कर लिया गया.

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चकिया विधानसभा का क्षेत्र एक तरफ जहां प्राकृतिक संपदाओं के लिए विख्यात है तो वहीं दूसरी तरफ इसके कुछ इलाके नक्सल प्रभावित भी रहे हैं. चकिया विधानसभा क्षेत्र में पर्यटन की दृष्टि से एक तरफ जहां राजदारी देवदारी जलप्रपात है तो वहीं दूसरी तरफ धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्राचीन काली मंदिर, नौगढ़ के जंगलों के बीच स्थित कोइलरवा हनुमान जी मंदिर के साथ-साथ जागेश्वरनाथ धाम और लतीफ शाह की मजार भी है.

क्षेत्र के ऐतिहासिकता की बात करें तो इस इलाके में पूर्व काशी नरेश का किला था. साथ ही साथ राजा मारीच के किले के अवशेष इस इलाके में मिलते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले नवगढ़ का चित्र बाबू देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता संतति में भी किया है. देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का पैतृक गांव भभौरा भी इसी विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है.

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राजनैतिक पृष्ठभूमि
चंदौली जिले की चकिया (सुरक्षित) विधानसभा का राजनीतिक सफर साल 1962 के आम चुनावों के साथ शुरू हुआ था. इसके पहले 1952 तथा 1957 के आम चुनावों में यह सीट चंदौली विधानसभा से जुड़ी हुई थी तथा चंदौली सीट से सामान्य तथा सुरक्षित दो सीटे थीं और दो विधायक चुने जाते थे.

इससे एक सामान्य और एक अनुसूचित जाति का विधायक चुना जाता था. उन दोनों चुनावों में कांग्रेस की टिकट पर सामान्य सीट पर पंडित कमलापति त्रिपाठी तथा सुरक्षित पर रामलखन निर्वाचित हुए थे. लेकिन 1967 के कांग्रेस विरोधी लहर ने इस सीट पर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बेचनराम ने जीत हासिल की. उन्होंने तब कांगेस के रामलखन को पराजित किया था.

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1969 के मध्यावधि चुनाव में रामलखन ने बेचन राम को पराजित कर फिर कांग्रेस की झोली में यह सीट डाल दी. 1974 के चुनाव में कांग्रेस ने बेचन राम को टिकट दिया और रामलखन बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे. इस चुनाव में बेचन राम ने जीत हासिल की.

1977 में जनता पार्टी की लहर में इस सीट पर जनसंघ घटक के प्रत्याशी श्यामदेव ने बाजी मारी तथा 1980 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के खरपत राम ने विजय पताका फहराई. उन्होंने 1985 के चुनाव में भी जीत का क्रम जारी रखा. 1989 में जनता दल से सत्य प्रकाश सोनकर विजयी घोषित हुए. इसके बाद हुए चुनाव में राजेश कुमार विधायक रहे.

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1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर सत्य प्रकाश सोनकर चकिया से विधायक बने. सन 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के शिव तपस्या पासवान चकिया से विधायक चुने गए. इसके बाद 2007 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बहुजन समाज पार्टी के जितेंद्र कुमार ने जीत हासिल की. 2012 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद भी समाजवादी पार्टी ने सत्य प्रकाश सोनकर को अपना प्रत्याशी बनाया था.

इस बीच 17 दिसंबर 2011 को उनका निधन हो गया. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उनकी पत्नी पूनम सोनकर को मैदान में उतारा जिन्होंने बहुजन समाज पार्टी के जितेंद्र कुमार को हराकर जिले की पहली महिला विधायक होने का गौरव हासिल किया. 2017 के चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी के शारदा प्रसाद ने चुनाव जीता जो बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे.

सामाजिक तानाबाना
चंदौली जिले की चकिया विधानसभा क्षेत्र में अधिकांश इलाके वन क्षेत्र से आच्छादित हैं. अगर कुल मतदाताओं की बात करें तो वर्तमान समय में चकिया विधानसभा क्षेत्र में कुल 36758 मतदाता हैं. इस विधानसभा में एक तरफ जहां 196600 पुरुष मतदाता हैं तो वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 170978 है.

अनुमानित जातिगत आंकड़ों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक हरिजन मतदाता हैं. जिनकी संख्या पचास हजार के आसपास है. दूसरे नंबर पर यादव मतदाता हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 40 हजार है. चकिया विधानसभा क्षेत्र में क्षत्रिय मतदाताओं की तादाद तकरीबन 35 हजार है तो वहीं 20 हजार के आसपास ब्राह्मण मतदाता हैं. इस विधानसभा में मौर्या मतदाताओं की संख्या 20 हजार है तो वैश्य मतदाताओं की तादाद लगभग इतनी ही है.

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इसके साथ-साथ 15 हजार कोल, 20 हजार मुस्लिम, 12 हजार राजभर, 15 हजार बिंद बिहार, 10 हजार चौहान, 9 हजार पटेल, 10 हजार खटीक, 10 हजार लोहार/कोहार, 10 हजार धोबी और बनवासी, 25 हजार गोंड/खरवार, 7 हजार मल्लाह और 6 हजार कायस्थ हैं और तकरीबन 30 हजार से ऊपर अन्य कई जातियों के मतदाता है.

2017 का जनादेश
2017 में चकिया विधानसभा की सीट बहुजन समाज पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए शारदा प्रसाद ने जीती थी. इस चुनाव में कुल 234587 वोट पड़े थे और मतदान का प्रतिशत 64.23 था. शारदा प्रसाद ने 96890 वोट पाकर अपने प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी के जितेंद्र कुमार को 20063 वोटों से हराया था.

जितेंद्र कुमार को चुनाव में 76827 वोट मिले थे. जबकि समाजवादी पार्टी की पूनम सोनकर को 48687 मत मिले. वहीं सीपीआई (एम) के श्री प्रसाद के पक्ष में 3098 वोट गए और सीपीआई (एमएल) के अनिल पासवान को 1447 वोट ही मिले. प्रगति मानव समाज पार्टी ने भी यहां पर उम्मीदवार खड़ा किया था और इस पार्टी के राम धवल को महज 847 वोट ही हासिल हुए.

रिपोर्ट कार्ड
चंदौली के चकिया (सुरक्षित) विधानसभा के वर्तमान भाजपा विधायक शारदा प्रसाद की उम्र तकरीबन 60 वर्ष है. भाजपा से पहले शारदा प्रसाद बसपा से भी विधायक और मंत्री रह चुके हैं. शारदा प्रसाद मूल रूप से वाराणसी के रहने वाले हैं और इन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की है.

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शारदा प्रसाद के राजनीतिक सफर की बात करें तो 1992 में बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना शुरू किया. 1996-97 में यह वाराणसी के बहुजन समाज पार्टी के जिला अध्यक्ष भी रहे. शारदा ने 1998 में लोकसभा सैदपुर सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे. 2002 में शारदा प्रसाद ने चंदौली सदर से विधायक का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. बसपा की सरकार में इनको सार्वजनिक उद्यम मंत्री स्वतंत्र प्रभार की जिम्मेदारी भी मिली.

सन 2007 में भी शारदा प्रसाद बसपा के टिकट पर चंदौली सदर से विधायक चुने गए. लेकिन नए परिसीमन के बाद गठित हुए सैयदराजा विधानसभा से 2012 में यह चुनाव हार गए. इसके बाद 2014 में इन्होंने राबर्ट्सगंज लोकसभा से चुनाव लड़ा. लेकिन मोदी लहर में इनकी हार हो गई. 2016 में शारदा प्रसाद ने भाजपा ज्वाइन किया और 2017 में चकिया से विधायक चुने गए.

क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों की बात करें तो शारदा प्रसाद के अनुसार इन्होंने अपने क्षेत्र में शिक्षा, सड़क, बिजली और सिंचाई के क्षेत्र में विशेष काम किया और अब तक मिली इनकी विधायक निधि भी खर्च हो चुकी है. शारदा प्रसाद ने विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में स्थित आदिवासी और वनवासी उन गांव में विद्युतीकरण का कार्य भी कराया. जहां लोग इसके पहले लालटेन युग में जीवन व्यतीत कर रहे थे.

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