
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की छपरौली विधानसभा सीट क्षेत्र के बेहद चर्चित सीटों में शुमार होती है. विधानसभा चुनाव के दौरान हर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक पार्टियों के लिए खास होता है, लेकिन बागपत जनपद की एक खास विधानसभा पर चुनाव के दौरान हर पार्टी की नजर रहती है. वजह है इस पार्टी पर लंबे समय से एक ही पार्टी का वर्चस्व रहा है.
हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि कही जाने वाली छपरौली विधानसभा की. इस विधानसभा पर आज तक चौधरी चरण सिंह के बेटे यानि छोटे चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी ही जीतते आए थे.
सामाजिक तानाबाना
पिछले विधानसभा चुनाव में भी यह सीट राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के खाते में गई थी, लेकिन चुनाव जीतने के कुछ दिन बाद ही विधायक सहेंद्र सिंह रालोद का दामन छोड़ बीजेपी के साथ भगवा दल में शामिल हो गए.
छपरौली विधानसभा की चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि से पहचान है. यह ऐतिहासिक विधानसभा सीट है और इसे चौधरी चरण की कर्मभूमि के नाम से जाना जाता है. चौधरी चरण सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत इसी क्षेत्र से की और 6 बार इस सीट से बंपर वोट के साथ जीते.
यही नहीं इस सीट की बदौलत चौधरी चरण भारत के गृह मंत्री और प्रधानमंत्री भी बने. मुख्यमंत्री बने चौधरी चरण सिंह ने इस क्षेत्र में ऐसी छाप छोड़ी की उनके बाद इस सीट पर उनके बेटे चौधरी अजित सिंह ने लगातार जीत दर्ज की और विरासत में मिली सीट को संभाला. चौधरी परिवार के नाम पर चुनाव् लड़ने वाला शख्स ही जीत दर्ज करता रहा.
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विधायक ने सांसद से मिल कर कई वर्षों से लोकार्पण होने बाद भी नहीं बने छपरौली-हरियाणा पुल बनवाया जिससे लाखों लोगों को लाभ पहुंचेगा. पुल पर कार्य तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है और इस वर्ष में पुल बनकर तैयार होने की संभावना है. छपरौली में हरियाणा यूपी सीमा विवाद आज तक खत्म नहीं हो सका है. वर्षों से चलते इस विवाद में आए दिन दोनों राज्यों के किसानों के बीच झगड़ा होता रहा है. इसके अलावा हिंडन कृष्णा नदी के चलते लगभग करीब गांव पीने के पानी की समस्या से भी जूझते रहे हैं
राजनीतिक पृष्ठभूमि
छपरौली विधानसभा के राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो 1967 के बाद यहां पर हुए चुनाव में चौधरी चरण सिंह ने लगातार 3 बार जीत हासिल की थी. वह 1967, 1969 और 1974 में विधायक रहे. इसके बाद जेएनपी से नरेंद्र सिंह ने 1977 और 1980 में विजयी हुए.
चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह ने 1991 के चुनाव में यहां से जीत हासिल की थी. यह सीट पहले जनता दल का गढ़ हुआ करती थी फिर बाद में आरएलडी का गढ़ बन गई. आरएलडी ने 2002 से 2017 के बीच लगातार 4 चुनाव में जीत हासिल की. इससे पहले जनता दल का यहां पर कब्जा हुआ करता था.
छपरौली विधानसभा क्षेत्र में अगर मतदाताओं की बात करें तो यहां करीब 3 लाख 27 हजार 624 मतदाता हैं.
2017 का जनादेश
2017 में हुए विधानसभा चुनाव में छपरौली सीट पर नजर डालें तो यहां पर राष्ट्रीय लोकदल की जीत हुई थी. राष्ट्रीय लोकदल के सहेंद्र सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के सतेंदर सिंह को कांटेदार मुकाबले में हराया था. सहेंद्र सिंह को 65124 वोट मिले तो सतेंदर सिंह को 61282 वोट मिले. हार-जीत का अंतर 3842 मतों का ही रहा था.
हालांकि बाद में सहेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी को इस सीट पर कभी जीत नहीं मिली है, लेकिन यहां पर 1991, 1993, 1996 और 2017 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रही थी.
रिपोर्ट कार्ड
क्षेत्र के लोगों की सबसे बड़ी मांग रही है गन्ना भुगतान और जो भी प्रत्याशी छपरौली से चुनाव लड़ने आता है वो सबसे पहले गन्ना भुगतान को ही मुद्दा बनाता है. जबकि आरएलडी तो खुद ही किसानों की पार्टी होने का दावा करते नहीं थकती. यह समस्या भी लोगों के लिए बड़ी समस्या बनकर रह गई है और अभी तक इसका समाधान नहीं हो सका है. हालांकि जनपद में इस समय तीनों विधानसभा में बीजेपी के विधायक ओर लोकसभा में सांसद मौजूद हैं.
छपरौली विधानसभा क्षेत्र से महाभारत की भी यादें जुड़ी हैं. इस विधानसभा में आने वाले बरनावा गांव में महाभारत के समय का लाक्षागृह आज भी महाभारत की याद दिलाता है. ये वो लक्षागृह है जिसे दुर्योधन ने पांडवों को एक साथ मारने के लिए बनवाया था. यही नहीं वो सुरंग भी आज तक याद ताजा करती है जिसे बनाकर पांडवों ने अपनी जान बचाई थी.
लेकिन इतना प्राचीन स्थल को आज तक विधायक पर्यटनस्थल का दर्जा नहीं दिला सके हैं, जिससे इस क्षेत्र के लोगों को पर्यटनस्थल घोषित होने से रोजगार मिल सके. लेकिन इस और भी कोई ध्यान नहीं दिया गया. छपरौली क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद और हिंडन और कृष्णा नदी में दूषित पानी के चलते करीब 25 गांव के सामने पीने का पानी भी मुहैया नहीं हो पाता है.