पश्चिमी यूपी के जाटलैंड कहे जाने वाले मुजफ्फरनगर की महापंचायत में किसान नेताओं ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट से चोट देने का ऐलान किया था. किसान आंदोलन और जाट वोट की काट की तलाश में जुटी बीजेपी अब पश्चिम यूपी में गुर्जर समुदाय को साधने का खास प्लान बनाया है और इसे अमलीजामा पहनाने सीएम योगी आदित्यनाथ खुद ही गुर्जर बेल्ट में अगले सप्ताह उतर रहे हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और गुर्जर दोनों ही समुदाय चुनावी राजनीति को सीधे प्रभावित करते हैं. इसीलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम यूपी के बिजनौर और शामली में कई विकास योजनाओं को शिलान्यास करेंगे तो नोएडा के दादरी में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. हालांकि, राजपूत संगठन सम्राट मिहिर भोज को क्षत्रिय राजपूत समुदाय से होने का दावा कर रहे हैं.
सीएम योगी का दौरा गुर्जर बेल्ट में
सीएम योगी आदित्यनाथ 21 सितंबर को बिजनौर में मेडिकल कालेज का शिलान्यास करेंगे और पश्चिम यूपी के सियासी नब्ज की थाह लेंगे. सीएम का बिजनौर दौरा काफी माना जा रहा है. सीएम योगी के साथ सूबे के परिवाहन मंत्री अशोक कटारिया भी रहेंगे, जो गुर्जर समुदाय से आते हैं. बिजनौर के साथ-साथ सीएम योगी का शामली का भी दौरा करेंगे, यहां कैराना क्षेत्र के ऊंचा गांव-गुर्जरपुर में पीएसी कैंप व फायरिंग रेंज की आधारशिला रखेंगे और जिले में निर्माणाधीन विकास परियोजना का लोकार्पण और शिलान्यास का कार्यक्रम है.
वहीं, सीएम योगी अगले हफ्ते 22 सितंबर को नोएडा के दादरी के मिहिर भोज पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में 9वीं सदी के शासक गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. स्थानीय बीजेपी विधायक ने मिहिर भोज को गुर्जरों का पूर्वज होने का दावा किया, पर राजपूत समाज उन्हें ठाकुर बता रहे हैं. राजपूत संगठन इसे जातीय तुष्टीकरण की राजनीति करार दे रहे हैं. हालांकि, पश्चिम यूपी में गुर्जर समुदाय के लोग काफी समय से सम्राट मिहिर भोज को अपना पूर्वज बताते रहे हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं.
पश्चिमी यूपी में गुर्जर समुदाय रहा है प्रभावशाली
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के बाद जाट, गुर्जर और ठाकुर मतदाताओं की संख्या अधिक है. इस इलाके में ब्राह्मण, त्यागी और ठाकुर बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी ने इनके साथ जाटों को भी जोड़ा और गुर्जर समुदाय का भी विश्वास जीतने में सफल रही है. यही कारण था कि ठाकुर, ब्राह्मण, त्यागी, वैश्य समाज के साथ जाट और गुर्जर आ जाने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने विपक्ष का 2014-2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में सफाया कर दिया था.
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर पांच गुर्जर समुदाय के विधायक जीतकर आए थे. पांचों ही विधायक पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं. इनमें कद्दावर नेता अवतार सिंह भड़ाना, डॉ. सोमेंद्र तोमर, तेजपाल नागर, प्रदीप चौधरी और नंदकिशोर गुर्जर हैं, लेकिन अवतार भड़ाना अब बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं. वहीं, बीजेपी ने अशोक कटियार को एमएलसी के साथ-साथ कैबिनेट में भी जगह दे रखी है. नोएडा के व्यवसायी और गुर्जर नेता सुरेंद्र नागर को बीजेपी ने राज्यसभा सदस्य बना रखा है और तीन जिला पंचायत अध्यक्ष भी गुर्जर समाज से हैं. इसके अलावा कैराना सांसद भी गुर्जर है.
दो दर्जन जिलों में निर्णायक गुर्जर वोटर
पश्चिम यूपी में गुर्जर समुदाय के मतदाताओं की खासी संख्या है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं, जहां 20 से 70 हजार के करीब इनका वोट है. एक दौर में गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता बीजेपी के हुकुम सिंह हुआ करते थे, जो कैराना के साथ-साथ पश्चिम यूपी की सियासत पर खास असर रखते थे.
हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद बने शून्य को भरने के लिए बीजेपी ने एमएलसी अशोक कटियार को आगे बढ़ाया और 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार की कैबिनेट में जगह देकर उन्हें साधे रखा है. लेकिन, 2022 के विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ रही है. जाट समुदाय बीजेपी से नाराज माने जा रहे हैं और गुर्जर समुदाय को अखिलेश यादव गले लगाने में जुटे हुए हैं.
सपा की नजर गुर्जर वोटर पर है
पश्चिम यूपी के मेरठ के मवाना में पिछले दिनों सपा की किसान पंचायत के दौरान अखिलेश यादव ने गुर्जर समुदाय से आने वाले शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण किया और गुर्जर नेता अतुल प्रधान सहित तमाम गुर्जर समुदाय के लोग भी उनके साथ दिखे थे. इसके राजनीतिक मायने साफ निकाले गए कि सपा फिर से गुर्जरों को अपने साथ जोड़ने की जुगत में है.
मुलायम सिंह यादव के दौर में लंबे समय तक सपा की कमान यूपी में गुर्जर समुदाय से आने वाले रामशरण दास के हाथों में रही. रामशरण दास के निधन के बाद ही मुलायम सिंह ने सपा का प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को बनाया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रामसकल गुर्जर, नरेंद्र भाटी, वीरेंद्र सिंह जैसे सरीखे नेता को साथ रखा. इस तरह से मुलायम सिंह ने पश्चिम यूपी में मुस्लिम और गुर्जर समीकरण को अपने पक्ष में मजबूती से जोड़े रखा था. मायावती भी गुर्जरों को बसपा में खास अहमियत देती रही हैं.
बीजेपी गुर्जरों को साधने में जुटी
वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव से यूपी का गुर्जर समुदाय बीजेपी के साथ आया है, जिसे अब 2022 के चुनाव में भी बीजेपी सहेजकर रखना चाहती है. वो ऐसे समय जब किसान आंदोलन को लेकर जाट अपने वोट से बीजेपी को चोट देने की तैयारी में है तो गुर्जर वोटर बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं.
सीएम योगी का पश्चिम यूपी के दौरे का रूट ऐसा बनाया गया है, जो पूरी तरह से गुर्जर बहुल माने जाते हैं. यह इलाका राजपुत वोटर का भी है, जो फिलहाल योगी के साथ मजबूती से है. इस तरह से योगी अगर गुर्जरों को साधने में सफल रहते हैं तो राजपूत, त्यागी, गुर्जर, वैश्य, शाक्य, सैनी जैसी जातियां मिलकर पश्चिम यूपी में बीजेपी की सियासी नैया पार लगा सकती हैं.