उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी जंग जिस तरह से बीजेपी और सपा के बीच सिमटती नजर आ रही है, उससे कांग्रेस के लिए राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई हैं. कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली में अपने वर्चस्व को बचाए रखने की भी है. जिले में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं के पाला बदल लेने और कुछ के चुनाव में उतरने से कदम खींच लेने के बाद दलबदलू नेताओं के दम पर गांधी परिवार अपना दुर्ग बचाने की कवायद में है.
यूपी की चौथे चरण में रायबरेली जिले की छह सीटों पर चुनाव होने हैं, जिसके लिए नामांकन का दौर शुरू है. कांग्रेस अपने सबसे मजबूत गढ़ को बचाने के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही. जिले की छह में चार सीटों पर ही अभी तक कांग्रेस ने अपने कैंडिडेट उतारे हैं जबकि दो सीटों पर अभी भी नाम तय नहीं कर पाई है. कांग्रेस ने जिन चार सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, उनमें से तीन सीट पर दूसरे दल से आए नेताओं को टिकट दिया है.
रायबरेली के कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची
कांग्रेस ने रविवार को अपने 61 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है, जिसमें रायबरेली जिले की हरचंदपुर और सरेनी सीट से भी प्रत्याशी घोषित किए गए हैं. कांग्रेस ने हरचंदपुर सीट पर बसपा और सपा के टिकट पर दो चुनाव जीत चुके सुरेंद्र विक्रम सिंह उर्फ पंजाबी सिंह को टिकट दिया है जबकि सरेनी सीट पर सुधा द्विवेदी को मैदान में उतारा है. ये दोनों ही नेता अपनी-अपनी पुरानी पार्टी से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन उनकी पार्टी में टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस का दामन थाम लिया.
पंजाबी सिंह हरचंदपुर सीट से सपा से टिकट मांग रहे थे, लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी जगह राहुल लोधी को प्रत्याशी बना दिया है. ऐसे में उन्होंने सपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. पंजाब सिंह 2004 से 2007 तक मुलायम सरकार में राज्यमंत्री मंत्री रह चुके हैं. ऐसे ही सरेनी से कांग्रेस ने जिस सुधा द्विवेदी को टिकट दिया है, वो पहले बीजेपी से टिकट मांग रही थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया.
दलबदलुओं को कांग्रेस ने दिए टिकट
सुधा द्विवेदी श्री फाउण्डेशन के चेयरमैन और कारोबारी मनोज द्विवेदी की पत्नी हैं. सुधा द्विवेदी काफी दिनों से सरेनी सीट पर आरएसएस के अपने बैकग्राउंड से लेकर बीजेपी तक से अपना नाता बता रही थीं, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट देने के बजाय अपने मौजूदा विधायक धीरेंद्र सिंह को ही प्रत्याशी बना दिया है. इसी के चलते वो पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गई हैं. इस तरह से कांग्रेस ने रायबरेली में अपने गढ़ को बचाने के लिए दोनों ही दलबदलू नेताओं को टिकट थमा दिया. ऐसे ही बछरावां सीट पर भी कांग्रेस ने जिस सुशील पासी को टिकट दिया है, वो आरके चौधरी का साथ छोड़कर कांग्रेस में आए थे.
बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सियासी कर्म भूमि रायबरेली है. यहां 2004 में हुए आम चुनाव से लेकर अब तक 18 साल से सीधे गांधी परिवार का कब्जा है. 2019 में मोदी लहर में अमेठी तो कांग्रेस के हाथ निकल गई पर रायबरेली ही प्रदेश की एक मात्र ऐसी सीट रही जहां कांग्रेस को जनता का साथ मिला था. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी रायबरेली की छह सीटों में दो सीटों पर कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार जीते थे.
वहीं, अब 2022 के विधानसभा चुनाव के दंगल में भी कांग्रेस सूबे में अपने सबसे मजबूत गढ़ रायबरेली को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है, क्योंकि पिछली बार के जीते हुए विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी के टिकट पर ताल ठोक रहे हैं. रायबरेली की सदर सीट पर अदिति सिंह बीजेपी से चुनाव लड़ रही है तो राकेश प्रताप सिंह हरचंदपुर से मैदान में है.
वहीं, रायबरेली जिले की ऊंचाहार सीट से पूर्व विधायक अजय पाल सिंह और सरेनी से पूर्व विधायक अशोक सिंह ने इस बार के विधानसभा चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिया है. कांग्रेस हाईकमान को साफ संदेश दे दिया है कि वो इस बार के चुनाव में नहीं उतर सकते हैं. ऐसे में कांग्रेस के सामने दलबदलू नेताओं पर दांव खेलने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं रह गया था. हालांकि, कांग्रेस अभी तक रायबरेली सदर और ऊंचाहार सीट पर अपना प्रत्याशी तलाश नहीं कर पाई है. ऐसे में कांग्रेस कैसे अपने दुर्ग को बचाए रख पाएगी?