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मिशन UP: उलेमाओं को साधने में जुटी कांग्रेस, क्या प्रियंका पर भरोसा जताएंगे मुसलमान?

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपने सियासी वजूद को बचाए रखने और अपने पुराने कोर वोटबैंक मुस्लिम समुदाय को साधने के लिए उलेमाओं के साथ वर्चुअल बैठक शुरू की है. यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता काफी अहम है, यही वजह है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उन्हें अपने पाले में लाने के लिए तमाम जतन कर रही हैं.

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प्रियंका गांधी आजमगढ़ में मुस्लिम महिलाओं के साथ (फाइल फोटो)
प्रियंका गांधी आजमगढ़ में मुस्लिम महिलाओं के साथ (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी के मुस्लिम मतदाताओं पर कांग्रेस की नजर
  • कांग्रेस यूपी में उलेमाओं के साथ बैठक कर रही
  • क्या मुस्लिम मतदाता कांग्रेस में दोबारा लौटेंगे

उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लिए सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. कांग्रेस ने यूपी में अपने सियासी वजूद को बचाए रखने और अपने पुराने कोर वोटबैंक मुस्लिम समुदाय को साधने के लिए उलेमाओं के साथ वर्चुअल बैठक शुरू की है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक कमेटी ने सूबे के हर जिले में उलेमाओं के साथ बैठक करने की रणनीति बनाई है, जिसकी शुरुआत बस्ती और संत कबीरनगर जिले से मंगलवार को शुरू हुई है. ऐसे में देखना है कि उलेमाओं के जरिए कांग्रेस क्या मुस्लिमों को अपने पाले में लाने में कामयाब रहेगी?  

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हर जिले में कांग्रेस का उलेमा सम्मेलन

अल्पसंख्यक कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने बताया कि यूपी के हर जिले में उलेमाओं के साथ सप्ताह में दो बैठक की जाएगी, जिसकी शुरुआत बस्ती-संत कबीरनगर से की गई है. इन बैठकों के जरिए पार्टी प्रदेश के मुस्लिमों के समस्याओं को समझाने की कवायद कर रही हैं. इसके अलावा उलेमाओं की बैठकों में सुझाओं को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के सामने रखा जाएगा ताकि अगले साल होने वाले चुनाव घोषणा पत्र में उनकी मांगों को शामिल किया जा सके. 

कांग्रेस ने उलेमाओं के साथ भले ही पूर्वांचल के जिलों से बैठक शुरू की है, लेकिन पार्टी का पूरा फोकस पश्चिम यूपी में जिलों में है. पश्चिम यूपी में मुस्लिम समुदाय से साथ-साथ देवबंद, सहारनपुर, मुरादाबाद और बेरली जैसे शहरों में इस्लामिक शिक्षा केंद्र हैं, जहां बड़ी तादाद में उलेमा हैं. कांग्रेस बिजनौर में सोलह सौ उलेमाओं को सम्मेलन अगले सप्ताह करने जा रही हैं,  पार्टी ने जिसकी तैयारी शुरू कर दी है.

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इसके बाद कांग्रेस प्रदेश भर के उलेमा प्रतिनिधियों की पार्टी के घोषणापत्र कमेटी के प्रमुख सलमान खुर्शीद के साथ बैठक की जाएगी. कांग्रेस उलेमाओं के साथ मुस्लिम समुदाय के तमाम जातियों के साथ अलग-अलग बैठकें भी करेगी. 

कांग्रेस की उलेमाओं के साथ बैठक

क्या मुस्लिम कांग्रेस पर जताएगा भरोसा

बता दें कि उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता हैं, जो एक दौर में कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक हुआ करते थे, लेकिन 1989 के बाद ये वोटबैंक कांग्रेस से छिटकर सपा और बसपा के करीब चला गया है. मुस्लिम के कांग्रेस के अलग होने के बाद से पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी है. ऐसे में कांग्रेस सूबे में अपने राजनीतिक जड़ें जमाने के लिए मुस्लिम समुदाय को साधने की कवायद में जुट गई है. 

कांग्रेस का यूपी में पूरा दारोमदार मुस्लिम वोट पर टिका हुआ है. यूपी में मुस्लिम मतदाता अभी तक अलग-अलग कारणों से अलग-अलग पार्टियों को वोट करते आ रहे हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद मुस्लिमों के वोट करने के तरीके में बदलाव आया है और पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर एकतरफा टीएमसी को वोट डाला है. ऐसे में यूपी में भी मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर किसी एक पार्टी को वोट दे सकते हैं. 

माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में मुस्लिम सूबे में उसी पार्टी को वोटिंग करेंगे जो बीजेपी को हराती हुई नजर आएगी. इसलिए कांग्रेस सूबे में उलेमाओं और मुस्लिम समुदाय के बीच सक्रिय होकर यह बताने की कवायद में जुट गई है तो उसे आपकी चिंता है. इसीलिए कांग्रेस एक के बाद एक कोशिश कर रही है, जिसके लिए अस्सी के दशक के उदाहारण भी दिए जा रहे हैं. 

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'कांग्रेस की मजबूती में मुस्लिमों का बेहतर'

पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस को सबक सीखने के लिए नब्बे के दशक साथ छोड़ा, लेकिन इसका खामियाजा कांग्रेस के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय को भी उठाना पड़ा है. कांग्रेस के कमजोर होने के साथ बीजेपी को संजीवनी मिली. कांग्रेस मजबूत रहती है तो बीजेपी के लिए चुनाव को सांप्रदायिक बनाना मुश्किल होता है. 

राहुल गांधी मुस्लिम समुदाय के बीच

 उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में उलेमाओं की सबसे अहम भूमिका थी. मौजूदा दौर में एक फिर उलेमाओं को धर्म निरपेक्षता और लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आना होगा. मुसलमान कांग्रेस के साथ था तो बीजेपी की सिर्फ दो सीटें हुआ करती थीं. ऐसे में अगर फिर से मुसलमान कांग्रेस में आ जाए तो बीजेपी फिर से 2 सीटों पर पहुंच जाएगी. मुसलमानों को अपनी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए कांग्रेस के साथ आना होगा. 

मुस्लिम वोटर की सियासी ताकत
सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच है. 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसद से ज्यादा है. सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं और करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को खासा प्रभावित करते हैं. पश्चिमी यूपी की बात की जाए तो यहां इसमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. बरेली से बाद से रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, आसपास के जनपदों में मुसलमान वोटरों की संख्या 35 से 45 फीसदी तक है. 

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मुस्लिम समुदाय के लोग बीजेपी के पक्ष में बहुत कम मतदान करते हैं. अगर किसी दल विशेष के पक्ष में यह मतदाता घूम जाए तो उसके लिए यह वोट बैंक एक बड़ी लीड साबित हो जाती है, यही कारण है कि सभी दल इन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश करते रहे हैं. मुस्लिम शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक सभी जगह रहते हैं, लेकिन कुछ जिले ऐसे हैं जहां इनकी आबादी काफी अधिक है और यही किसी मतदाता की जीत या हार का निर्णय करते हैं।

मुस्लिमों की कहां कितना भागेदारी

मुरादाबाद में 50.80 फीसदी, रामपुर में 50.57 फीसदी, सहारनपुर में 41.97 फीसदी,  मुजफ्फरनगर में 41.11 फीसदी, शामली में 41.73 फीसदी, अमरोहा में 40.78 फीसदी, बागपत में 27.98 फीसदी, हापुड़ में 32.39 फीसदी, मेरठ में 34.43 फीसदी, संभल में 32.88 फीसदी, बहराइच में 33.53 फीसदी, बलरामपुर में 37.51 फीसदी, बरेली में 34.54 फीसदी, बिजनौर में 43.04 फीसदी और अलीगढ़ में 19.85 फीसदी आबादी मुस्लिम है. इन जिलों में उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला बहुत हद तक मुस्लिम मतदाताओं के ही हाथ में होता है. 

वहीं, अन्य जिलों जैसे अमेठी में 20.06 फीसदी, गोंडा में 19.76 फीसदी, लखीमपुर खीरी में 20.08 फीसदी, लखनऊ में 21.46 फीसदी, मुऊ में 19.46 फीसदी, महाराजगंज में 17.46 फीसदी, पीलीभीत 24.11 फीसदी, संत कबीर नगर में 23.58 फीसदी, श्रावस्ती में 30.79 फीसदी, सिद्धार्थनगर में 29.23 फीसदी, सीतापुर में 19.93 फीसदी और वाराणसी में 14.88 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इसके अलावा अन्य जिलों में यह आबादी 10 से 15 फीसदी के बीच है. यही वजह है कि मुस्लिम को साधने के लिए कांग्रेस से लेकर सपा और बसपा तक बेताब हैं. 

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