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उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की डिबाई विधानसभा सीट से एक बार प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने जीत हासिल की थी, लेकिन दो जगह से चुनाव जीतने के कारण इस सीट से उन्होंने इस्तीफा भी दे दिया था. उनके पुत्र राजवीर सिंह ने यहां से दो बार चुनाव लड़ा लेकिन वह जीत नहीं सके. सपा-बसपा से अलग-अलग श्रीभगवान शर्मा 2007 और 2012 में विधायक रह चुके हैं तो कांग्रेस के भी यहां तीन बार विधायक रहे है. भाजपा का इस सीट पर वर्चस्व रहा है.
डिबाई तहसील मुख्यालय है. यह उत्तर प्रदेश राज्य की एक विधानसभा सीट तो है ही, इसके अलावा राजनीतिक एवं एतिहासिक दृष्टि से डिबाई कस्बा महत्वपूर्ण है. इस कस्बे के समीप ही 8 किलोमीटर दूर पवित्र गंगा नदी बहती है जो कि निकटतम गांव कर्णवास क्षेत्र में आती है. डिबाई विधानसभा के अंतर्गत कर्णवास, राजघाट एवं नरौरा जैसे स्थान आते हैं जो गंगा किनारे होने के कारण प्रसिद्ध हैं, तहसील क्षेत्र में नरौरा है जहां राष्ट्रीय धरोहर परमाणु बिजली घर स्थित है.
सामाजिक तानाबाना
क्षेत्र में बेलोंन गांव में एक देवी का मंदिर है, यह मंदिर सर्व मंगला देवी का मंदिर है, जिसे सुख की देवी माना जाता है. मान्यता है कि नौ देवी के दर्शन के बाद मंगला देवी के दर्शन आवश्यक है तभी मन्नत पूरी होती है. नवरात्रि और गंगा स्नान पर यहां मेला लगता है जिसमें दूरदराज के इलाके से भी बड़ी संख्या मे लोग आते हैं.
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कर्णवास के बारे में कहा जाता है कि यहां गंगा किनारे एक शिला है जिस पर महाभारत काल में राजा कर्ण गंगा स्नान के बाद सवा मन सोना प्रतिदिन दान किया करते थे. आज भी यह शिला स्थित है. कर्णवास का गंगा क्षेत्र डॉलफिन रिजर्व एरिया में आता है, कभी यहां पर कॉटन कपास की खेती और कारोबार दोनों हुआ करते थे. डिबाई में कुबेर कॉटन, भाटिया पेच, बारह जीन, चोबेला पेज ये चार कॉटन मिल थी. इसमें रुई कपास का कारोबार होता था.
बाद में यह चारों मिल कोठियों में तब्दील हो गईं और सिंचाई विभाग के अधीन चली गईं.
औद्योगिक गतिविधियों की बात करें तो इस क्षेत्र में नरौरा एटॉमिक पावर स्टेशन के अलावा और कुछ नहीं है. कारोबार और रोजगार का मुख्य साधन खेती है. तहसील क्षेत्र पुराने जमाने में भरतपुर राजा स्टेट के नाम से जाना जाता था. नरौरा गंगा बैराज का पुल पार करते ही नवसृजित जनपद संभल है तो दूसरी साइड अलीगढ़ है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
डिबाई विधानसभा सीट की संख्या के बारे में बात करें तो यह 68 नंबर विधानसभा सीट कहलाती है. 1952 से लेकर अब तक यहां 18 बार चुनाव हुए हैं. कांग्रेस के इर्तजा हुसैन ने 1952 में सबसे पहले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की तो उसके बाद 1957, 1962, 1967, 1969, 1974 और 1977 में हिम्मत सिंह ने जनसंघ पार्टी से लगातार 6 बार यहां से चुनाव जीते. उसके बाद 1980 में कांग्रेस के नेम पाल सिंह ने जीत हासिल की.
कांग्रेस की हितेश कुमारी ने 1985 में, फिर जनता दल से नेम पाल सिंह ने 1989 में, उसके बाद 1991 और 1993 में भाजपा से राम सिंह ने चुनाव जीता जबकि 1996 में विधायक राम सिंह ने पार्टी के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह के लिए यह सीट छोड़ दी और डिबाई सीट से कल्याण सिंह चुनाव जीते हालांकि कल्याण सिंह डिबाई के साथ-साथ अलीगढ़ डिले की अतरौली से भी विधानसभा चुनाव जीता था तो उन्होंने डिबाई से इस्तीफा दे दिया.
1997 के उपचुनाव में फिर से रामसिंह को भाजपा ने टिकट दिया और इस बार भी वह चुनाव जीते. लेकिन इसके बाद कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह ने 2002 में राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से चुनाव जीता. जबकि 2007 में श्री भगवान शर्मा (गुड्डू पंडित) ने बसपा के टिकट पर तो 2012 में सपा के टिकट पर दो बार चुनाव जीता. दोनों बार राजवीर सिंह को हराया. उसके बाद 2017 में अनीता राजपूत ने भाजपा से को यहां से जीत दिलाकर वापसी कराई.
किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक नेता का यहां कोई विशेष वर्चस्व वाली बात तो नहीं है लेकिन जातिगत आंकड़ों के मद्देनजर यहां ऐलानी की लोध राजपूत जाति के प्रत्याशी का ही जीतना तय माना जाता है.
2017 का जनादेश
जाति और सामाजिक समीकरण की बात करें तो लोध राजपूत इस सीट पर 1 लाख 20 हजार के आसपास हैं. मुस्लिम 30 हजार के आसपास हैं जबकि दलित वोट करीब 50 हजार हैं. ब्राह्मण, जाट, ठाकुर की आबादी अलग-अलग करीब 25 से 30,000 के आसपास है. वैश्य 12000 के आसपास हैं, इसके अलावा अन्य बिरादरी भी हैं जो सब पांच से आठ हजार के लगभग हैं.
डिबाई विधानसभा सीट पर 2017 में कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 33 हजार 333 थी जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 78 हजार 304 थी जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 55 हजार 15 थी.
2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी की अनीता लोधी राजपूत को 1 लाख 11 हजार 807 मत प्राप्त हुए थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी के हरीश लोधी को करारी मात दी थी. तब हरीश लोधी को केवल 40 हजार 177 मत प्राप्त हुए थे, जबकि तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के देवेंद्र भारद्वाज को 44 हजार 974 मत प्राप्त हुए.
रिपोर्ट कार्ड
48 वर्षीया विधायक अनीता राजपूत ने रामघाट पर पुल का प्रस्ताव पास करवाया जो अभी निर्माणधीन है. यही नहीं 100 बेड का हॉस्पिटल भी बनवाया है. साथ ही ऑक्सीजन प्लांट, राजघाट पर बांध का निर्माण कराया है, कर्णवास पर घाट बनवाया है.
विधायक अनीता ने पंतनगर यूनिवर्सिटी से एग्रीकल्चर में पीएचडी डिग्रीधारक हैं. इनके पति इंजीनियर हैं और इलेक्ट्रिक पैनल बनाने का कारोबार है. विधायक की एक बेटी है. इससे पहले अनीता राजपूत कांग्रेस पार्टी में थीं. लेकिन पहली बार उनको भारतीय जनता पार्टी से 2017 में टिकट मिला और चुनाव जीतीं.