Vidhan Sabha Chunav 2022: देश के पांच राज्यों में आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में कोरोना और ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण को देखते हुए चुनाव प्रचार की अवधि घटने के आसार दिख रहे हैं.
चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक इस बार 2020 में हुए बिहार और 2021 में हुए बंगाल के विधानसभा चुनावों से भी कम समय में चुनावी प्रक्रिया पूरी की जाएगी और राजनीतिक दलों को भी प्रचार के लिए पहले के मुकाबले कम समय मिल सकता है.
वैसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के पांचवें भाग के पहले अध्याय में इस प्रक्रिया और उसकी अवधि का जिक्र है. इसके मुताबिक चुनाव के ऐलान और अधिसूचना जारी होने के बीच 21 दिनों का अंतराल होना चाहिए. अधिसूचना जारी होने और मतदान के बीच 25 दिनों का अंतराल होना उचित बताया गया है.
अधिनियम के मुताबिक अधिसूचना के साथ ही नामांकन शुरू हो जाता है. नामांकन के लिए अमूमन सात दिन की अवधि होती है. नामांकन की अवधि पूरी होने के बाद नामांकन पत्रों की जांच अगले दिन होती है. इसके अगले दो दिन नाम वापस लेने का समय होता है. ये अवधि बीत जाने के अगले दिन उम्मीदवारों की फाइनल सूची जारी कर दी जाती है.
यानी कायदे से अधिसूचना के बाद कम से कम 11 दिन इन प्रक्रियाओं में लगते हैं. इन चरणों के लिए जो दिन निर्धारित हैं उनमें अगर सार्वजनिक अवकाश आता है तो अगले दिन ही प्रक्रिया पर अमल होगा. यानी यह भी प्रावधान है की उस दिन सार्वजनिक अवकाश न हो. इस निश्चित प्रक्रिया के बाद यानी उम्मीदवारों की अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद फिर अगले दो हफ्ते यानी 14 दिन राजनीतिक दलों को प्रचार के लिए मिलेंगे.
कुल मिलाकर अधिसूचना जारी होने के बाद 25 दिन तो मतदान कराने में ही लग जाएंगे. अमूमन चुनाव कार्यक्रम की घोषणा और पहले चरण की अधिसूचना के बीच भी 21 दिन का वक्त होता है. यानी अधिनियम के अनुसार चुनाव की घोषणा और मतगणना के बीच तकरीबन 45 दिनों का वक्त होता है.
चुनाव आयोग के पूर्व मुख्य आयुक्त एचएस ब्रह्मा के मुताबिक पिछले कुछ चुनावों में हालात ऐसे रहे कि ये अवधि न्यूनतम कर दी गई. यानी 45 को पहले 40 दिन किया गया फिर 35 दिनों में निपटाया गया. लेकिन कोविड संकट काल में 30 और 28 दिनों में भी चुनाव कराए गए हैं.
पांच राज्यों में होंगे विधानसभा चुनाव
अब यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में शायद ये अवधि न्यूनतम हो जाएगी क्योंकि चुनाव आयोग के आला अधिकारियों का कहना है कि अवधि घटने से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया या प्रचार पर कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.
हां, इससे सुरक्षित चुनाव करवाने में जरूर मदद मिलेगी क्योंकि मतदान केंद्रों की संख्या और मतदान की अवधि बढ़ाने के साथ साथ मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या में कमी की गई है. इससे शारीरिक दूरी के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मतदान आसान होगा.
इसके अलावा 80 साल या इससे से अधिक आयु के बुजुर्ग मतदाता, दिव्यांग और कोविड जैसे लक्षणों या संक्रमण की आशंका या फिर चिकित्सकीय सलाह पर क्वारंटीन में रह रहे मतदाताओं के लिए उनके घर पर ही बैलेटपेपर से मतदान कराने का इंतजाम भी होगा.
मतदान की अवधि कम होने के साथ साथ लोकतंत्र के महापर्व की रंगत भी फीकी रहने के आसार हैं क्योंकि चुनावी रैली, रोड शो, जुलूस जलसे, प्रचार अभियान पर भी सख्ती और पाबंदी रहेगी. पहले की तरह सड़कों और गलियों में पदयात्रा जैसे कार्यक्रम शायद इस चुनाव में लोगों को देखने के लिए नहीं मिलेगा.
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