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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे कई संदेश लेकर आए हैं. इस चुनाव में बीजेपी ने 4-1 के स्ट्राइक रेट से शानदार प्रदर्शन किया है. बीजेपी के सामने न तो एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर चला और न ही विपक्ष का कोई पैंतरा काम आया. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी कोरोना महामारी, बेरोजगारी और महंगाई के निगेटिव इम्पैक्ट को बेअसर करने में सफल रही और जीत की स्क्रिप्ट लिख दी. वहीं अरविंद केजरीवाल अपनी नई राजनीति के दम पर पंजाब में बड़े-बड़े दिग्गजों को सत्ता से उखाड़ फेंकने में सफल रहे. पंजाब में AAP और बाकी 4 राज्यों में बीजेपी की जीत कई मैसेज लेकर आई है. इन संदेशों का राष्ट्रीय और राज्यों की राजनीति पर व्यापक असर पड़ने वाला है.
1- 2024 की पिच तैयार
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी की जीत और पंजाब में चली झाड़ू ने 2024 लोकसभा चुनावों की पिच तैयार कर दी है. उत्तर प्रदेश में धमाकेदार के बीच बीजेपी इस गति को 2024 में भी बरकरार रखना चाहेगी. जबकि देश का विपक्षी खेमा पीएम मोदी के खिलाफ जिस चेहरे की तलाश कर रहा है पंजाब विजय के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल उस चेहरे के लिए विपक्ष की सहज पसंद बन सकते हैं. क्योंकि इस दावे के लिए उनके पास गवाही के रूप में पंजाब की वो 92 सीटें हैं जिसे उन्होंने प्रकाश सिंह बादल, चरणजीत सिंह चन्नी, सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे दिग्गजों को पटखनी देकर हासिल किया है.
हालांकि उनकी इस महात्वाकांक्षा में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी टक्कर दे सकती हैं. पश्चिम बंगाल में जीत के बाद ममता खुद को राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी का विकल्प साबित करने में जुटी हैं. इस लिहाज से 2024 से पहले भारत की राजनीति में रोमांच अब और बढ़ गया है.
2- हिंदुत्व कार्ड की काट नहीं
इन पांच राज्यों के नतीजों ने एक और स्पष्ट संदेश दिया है. ये संदेश यह है कि हिन्दुत्व फिलहाल भारतीय राजनीति की धुरी बना हुआ है. विकास, प्रगति, समावेशी राजनीति के तमाम दावों के बावजूद हिन्दुत्व का मुद्दा पूरे चुनाव में छाया रहा. यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ बिना झिझक हिन्दुत्व के मुद्दे को उठाते रहे. सीएम योगी चुनाव में अयोध्या की चर्चा करते रहे. उन्होंने और उनके मंत्रियों ने मथुरा का मुद्दा उठाया और हिन्दुत्व के मुद्दे को हवा देते रहे. चुनाव से पहले पीएम मोदी ने काशी कॉरिडोर का उद्घाटन किया और औरंगजेब का जिक्र किया. इसके अलावा चुनाव में लव जिहाद, हिजाब का मुद्दा छाया रहा.
हिंदुत्व कार्ड का असर न सिर्फ सत्ता पक्ष में बल्कि विपक्ष के नेताओं पर भी दिखा. यही वजह रही कि न सिर्फ मोदी-योगी बल्कि अखिलेश, ममता, राहुल और प्रियंका भी पूरे चुनाव में मंदिरों की परिक्रमा करते रहे.
3- ब्रांड मोदी का मुकाबला नहीं
यूपी-उत्तराखंड के नतीजों ने एक और चीज स्थापित कर दी है वो है ब्रांड मोदी. पीएम मोदी कोरोना महामारी से उपजी परेशानियां, महंगाई, नौकरी को लेकर युवाओं की नाराजगी के बावजूद ब्रांड मोदी का जलवा कायम है. मोदी आज भी युवाओं में लोकप्रिय है. मतदाताओं के बीच नरेंद्र मोदी एक ऐसा नाम है जिसे लोग सुनना चाहते हैं, जिसकी लोग चर्चा करते हैं. यही नहीं मोदी अपने दम पर रैलियों में भीड़ जुटा सकते हैं और उस भीड़ को वोट में तब्दील कर सकते हैं. यूपी-उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के नतीजे इसी ओर इशारा करते हैं.
4- एंटी इंकम्बेंसी राह का रोड़ा नहीं
आम तौर पर एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर पार्टियों की हार की वजह मानी जाती है. लेकिन बीजेपी ने पांच राज्यों के इन चुनावों में इस धारणा को तोड़ दिया है. बीजेपी ने साबित कर दिया है कि प्लानिंग और प्रयोग के दम पर एंटी इंकम्बेंसी के प्रभाव को दूर किया जा सकता है. इस चुनाव के बाद बीजेपी गोवा में तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. उस उत्तराखंड में दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है जहां हर पांच साल में सत्ता बदल जाती है. बीजेपी ने इस मिथक को तोड़ दिया है. जबकि उत्तर प्रदेश में 37 सालों बाद लगातार दूसरी बार एक ही पार्टी को बहुमत मिला है. यही नही पूर्वोत्तर के मणिपुर में भी बीजेपी ने एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर को गलत साबित कर दिया है.
5- राशन, प्रशासन और शासन पर रीझ गए लोग
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के कमबैक में मुफ्त राशन, सख्त प्रशासन और योगी ब्रांड शासन का बड़ा रोल रहा है. मुफ्त राशन की मुद्दा तो दूसरे राज्यों में भी लोगों की जुबां पर छाया रहा. कोरोना काल में जब लोगों की आय लगभग खत्म हो गई थी उस दौरान मुफ्त राशन गरीब तबके के परिवार के लोगों के लिए राहत लेकर आया. कमाई न होने के बावजूद लोग मुश्किल के दिनों में पेट भर खाना खा सके.
यूपी में सीएम योगी की पुलिस चर्चा में रही. हालांकि योगी की पुलिस कई बार आलोचना की भी शिकार हुई. लेकिन अपराधियों के खिलाफ पुलिस की सख्ती को जनता ने एकमत से पसंद किया. तख्ती लेते हुए थाने में सरेंडर करने गए अपराधियों की तस्वीर वायरल हो गई. इसके अलावा सीएम योगी की सख्त छवि को भी लोगों ने पसंद किया.
6- क्षेत्रीय और जातीय क्षत्रप खो रहे हैं असर
इस चुनाव ने क्षेत्रीय और जातीय क्षत्रपों की ताकत को भी सीमित कर दिया. उत्तर प्रदेश में अपनी जाति का नेता होने का दावा करने वाले कई नेता अपनी सीट भी नहीं बचा सकी. बीजेपी से एसपी में आए ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए. ओम प्रकाश राजभर भी अपने दावे पर खरे नहीं उतर पाए. भाजपा छोड़कर साइकिल पर सवार हुए धर्मसिंह सैनी भी शिकस्त खा गए. चुनाव से पहले ये नेता अपने अपने इलाके के क्षत्रप होने का दावा करते थे, लेकिन चुनाव से इसे गलत साबित कर दिया. सबसे हैरान करने वाले नतीजे मायावती की पार्टी बीएसपी को लेकर रहे. 2007 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने वाली बीएसपी इस चुनाव में मात्र एक सीट ही जीत पाई. बीएसपी के कई बड़े नेता चुनाव हार गए.
पंजाब में भी AAP की आंधी में बड़े बड़े किले ढह गए. पटियाला से पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपनी ही सीट पर हार मिली. पंजाब में जनता ने सख्ती से चुनाव किया और कई क्षत्रपों को किनारे लगा दिया. उत्तराखंड में उत्तराखंड क्रांति दल कोई असर नहीं दिखा पाया. इसके बजाय लोगों ने बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को ही अपना जनप्रतिनिधि चुना.
7- भ्रष्टाचार-परिवारवाद को मुद्दा बनाने में सफल रही BJP
इन चुनाव नतीजों का एक संदेश यह है कि बीजेपी और पीएम मोदी चुनाव प्रचार में परिवारवाद और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने में सफल रहे हैं. पीएम मोदी ने यूपी में प्रचार के दौरान परिवार का मुद्दा जमकर उठाया और समाजवादी पार्टी को घेरा. बीजेपी ने उत्तराखंड-गोवा में भी पूर्ववर्ती सरकारों को घेरते हुए उनपर करप्शन का मुद्दा उठाया. इसके अलावा करप्शन को भी इस चुनाव में बीजेपी मुद्दा बनाने में सफल रही. पंजाब में बीजेपी ने सीएम चन्नी के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया. हालांकि विपक्ष बीजेपी शासित राज्यों में विपक्ष करप्शन के मुद्दे को उस तरह से नहीं उठा सका.
8- थके चेहरों की जगह फ्रेश चेहरों को तरजीह
इस चुनाव के नतीजों का संदेश मतदाताओं के पसंद को लेकर है. ये 90 के दशक का चुनाव नहीं है, जहां परसेप्शन पोस्टर, नारेबाजी से बनाये जाते थे. ये 2022 का चुनाव है, सोशल मीडिया का दौर है. यहां कैंडिडेट की सारी जानकारी उसके फेसबुक प्रोफाइल पर होती है. वो जानकारी भी जिसे वो खुद भी शेयर नहीं करना चाहता है. लेकिन अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नेताओं की सख्ती से स्क्रूटनी हो जाती है.
इस चुनाव में मतदाताओं ने अपनी पसंद जाहिर कर दी. यहां पर लोगों ने 93 साल के अकाली हैवीवेट नेता प्रकाश सिंह बादल की बजाय आम आदमी पार्टी के नए चेहरे गुरमीत सिंह खुड्डिया को चुना. यहां बादल लगातार 1997 से विधायक थे. फिर भी साधारण किसान गुरमीत सिंह खुड्डिया ने उन्हें शिकस्त दी.
अमृतसर ईस्ट सीट पर एक साधारण महिला ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया को पटखनी दी. जीवन ज्योत कौर नाम की ये महिला को सैनेटरी पैड बांटती हैं, इसलिए वह अपने इलाके में पैडवूमन भी कही जाती हैं.
पंजाब में मतदाताओं ने अपने नतीजों में उठापटक करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. पंजाब के सीएम रहे चरणजीत सिंह चन्नी दो सीटों से चुनाव लड़े लेकिन दोनों जगहों से हार गए. चमकौर साहिब पर आम आदमी के चरणजीत सिंह ने उन्हें हराया तो भदौर सीट पर उन्हें लाभ सिंह ने शिकस्त दी. साफ है कि जनता ने पुराने, थके, भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नेताओं की बजाय नए और ताजगी भरे चेहरों को अपना पसंद बनाया है. यूपी के सरधना से बीजेपी नेता संगीत सोम भी चुनाव हार गए हैं.
9- AAP-TMC का राष्ट्रीय उभार, कांग्रेस का घटता आधार
इस चुनाव ने आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय विस्तार दिया है. अब आम आदमी पार्टी की दो राज्यों में सरकार है. AAP ने गोवा में भी 2 सीटें जीती है. AAP ने उत्तराखंड में सीटें तो नहीं जीतीं लेकिन वोट हासिल किया है. जबकि तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में 5.21 प्रतिशत वोट हासिल किया है. इस तरह से AAP अब अपना जनाधार दूसरे राज्यों में भी बढ़ा रही है. AAP ने यूपी में भी वोट हासिल किया है.
आम आदमी पार्टी अब यही नहीं रुकने वाली है. AAP ने अपने रथ का रुख गुजरात की ओर मोड़ दिया है. गुजरात में इस साल के अंत तक चुनाव है.
इन चुनावों ने AAP को राष्ट्रीय उभार तो दिया है लेकिन इन नतीजों से दिख रहा है कि कांग्रेस का आधार सिमट रहा है. कांग्रेस ने पंजाब में सत्ता गंवा दी है. पांचों राज्यों के चुनाव नतीजों को मिलाकर देखें तो कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 2, उत्तराखंड में 19, पंजाब में 18, मणिपुर में 5 और गोवा में 11 सीटें मिली है. कांग्रेस अब हिन्दी पट्टी में सिकुड़ रही है.
10-विपक्ष का चेहरा बनने की जंग
पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद अब धीरे-धीरे 2024 के आम चुनाव का शोर पकड़ रहा है. 2024 की जंग में मोदी के मुकाबले में कौन खड़ा होगा विपक्षी खेमे में इस बात को लेकर माथापच्ची हो रही है. पीएम कैंडिडेट बनने को लेकर विपक्ष में कई महात्वाकांक्षाएं टकरा रही है. अब अरविंद केजरीवाल इस दावेदारी के लिए तगड़े उम्मीदवार बन गए हैं. इस रेस में कांग्रेस के अलावा ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, के चंद्रशेखर राव आगे हैं. इसके अतिरिक्त शरद पवार की अपनी महात्वाकांक्षाएं हैं. जैसे जैसे 2024 नजदीक आएगा पीएम उम्मीदवार के लिए खींचतान तेज होगी.