उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा किसी पहचान की मोहताज नहीं है. महाभारत काल में हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र पांडवों की राजधानी कहलाती थी और यह भी कहा जाता है कि यहीं पर पांडवों का किला भी हुआ करता था. हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र गंगा के किनारे बसा हुआ है और लगभग हर साल विधानसभा का ज्यादातर क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाता है.
जब भी पहाड़ों पर तेज बारिश होती है या ज्यादा बारिश होती है तो मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र का भी बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आ जाता है जो इसकी एक सबसे बड़ी समस्या है.
सामाजिक तानाबाना
हस्तिनापुर पांडवों की राजधानी कहलाता है. महाभारत में वर्णित घटनाएं हस्तिनापुर में घटी घटनाओं पर आधारित हैं. हस्तिनापुर में आज भी उल्टा खेड़ा नाम से एक जगह है जिसे पांडवों का किला बताया जाता है. साथ ही यहां द्रौपदी घाट, करण मंदिर जैसे कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं, हालांकि हस्तिनापुर हिंदू धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थल है लेकिन यह जैन धर्म के तीर्थ स्थल के रूप में भी मशहूर है और यहां बड़ा जैन मंदिर है जो कि जैन धर्म का तीर्थ स्थल है.
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फिलहाल हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर मतदाताओं की संख्या लगभग 3 लाख 25 हज़ार है, लेकिन जातीय और धार्मिक हिसाब से वोटों की बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम और गुर्जर वोट हैं. जिनकी संख्या लगभग 90-75 हजार है. उसके बाद संख्या एससी वोटर्स की है, जिनकी संख्या 60 हजार के करीब है. 25 हजार के आसपास जाट वोट है और 12 हजार के आसपास सिख वोट है और अन्य वोट हैं.
मौजूदा समय में इस सीट पर बीजेपी के दिनेश खटीक विधायक हैं जिन की टक्कर सीधे-सीधे इस बार सपा के योगेश वर्मा से रहने की उम्मीद है. हालांकि बसपा भी यहां कांटे का संघर्ष देती है और इस बार भी मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
यूं तो मेरठ जिले में 7 विधानसभा क्षेत्र हैं लेकिन पिछले कुछ चुनावों के लिहाज से देखें तो हस्तिनापुर विधानसभा से एक खास बात जुड़ी है कि जिस पार्टी का विधायक हस्तिनापुर से चुनाव जीतता है उसी पार्टी की सरकार प्रदेश में बनती है चाहे वह पूर्ण बहुमत की सरकार हो या फिर गठबंधन की सरकार हो.
बात पिछले चुनाव की करें तो यहां से बीजेपी के दिनेश खटीक चुनाव जीते थे और प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी. पिछली बार सपा के प्रभु दयाल वाल्मीकि जीते तो प्रदेश में सपा की सरकार बनी. इससे पहले यहां से बीएसपी के योगेश वर्मा जीते तो प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी.
इस सीट पर जब तक कब्जा कांग्रेस के हाथों में रहा, तब तक प्रदेश की सत्ता कांग्रेस के हाथों में रही थी. हालांकि यह विधानसभा क्षेत्र मेरठ जिले में आता है, लेकिन हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र बिजनौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में आती है.
योगेश वर्मा 2007 में बसपा के हस्तिनापुर से विधायक बने. विधायक रहते हुए योगेश वर्मा को बीएसपी के मुखिया मायावती ने पार्टी से निकाल दिया और उन्होंने 2012 में पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे और सपा के प्रभु दयाल वाल्मीकि की जीत हुई, जिसके बाद योगेश वर्मा की वापसी दोबारा बसपा में हुई और 2017 का चुनाव उन्होंने बसपा से लड़ा तब भी हो दूसरे स्थान पर ही रहे और 2017 में बीजेपी के दिनेश खटीक विधायक बने.
2017 का जनादेश
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के दिनेश खटीक यहां से विधायक बने और बहुजन समाज पार्टी के योगेश वर्मा दूसरे स्थान पर रहे. दिनेश को 99436 वोट मिले जबकि योगेश के खाते में 63374 वोट ही आए.
पिछले 5 दशक से यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और अभी भी रिजर्व सीट है. 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रभुदयाल वाल्मिकी यहां से विधायक बने और पीस पार्टी के योगेश वर्मा दूसरे नंबर पर 2007 के चुनाव में यहां से बीएसपी के योगेश वर्मा विधायक बने थे. योगेश वर्मा लगातार 2 बार यहां से चुनाव हार चुके हैं.
रिपोर्ट कार्ड
सबसे बड़ा मुद्दा इस विधानसभा का बाढ़ से होने वाली समस्या है. लगभग हर साल ही हस्तिनापुर विधानसभा का बड़ा क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित रहता है. हस्तिनापुर का खादर क्षेत्र बाढ़ के पानी से प्रभावित हो जाता है. विकास के कई दावे हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र के लिए किए जाते हैं और हस्तिनापुर एक पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित करने की कई बार बात की जा चुकी है लेकिन इस क्षेत्र का विकास अभी तक कम ही हुआ लगता है.
कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 2 शहरों की घोषणा एक साथ की थी जिसमें एक चंडीगढ़ और दूसरा हस्तिनापुर था. लेकिन चंडीगढ़ विकास की दौड़ में हस्तिनापुर से बहुत बहुत आगे निकल गया. कहते हैं कि इस क्षेत्र में द्रौपदी का श्राप लगा हुआ है इसलिए यहां का यह हाल है.