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मायावती को फिर याद आए कांशीराम, 9 अक्टूबर को लखनऊ में बसपा दिखाएगी ताकत

बसपा सुप्रीमो मायावती नौ अक्तूबर को पार्टी संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर मिशन-2022 का विधिवत शंखनाद करेंगी. मायावती ने नौ अक्टूबर को लखनऊ में लाखों की भीड़ जुटाकर विपक्षी दलों को अपनी ताकत का एहसास करना चाहती है. ऐसे में उन्होंने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से एक हजार कार्यकर्ताओं को लखनऊ लाने का टारगेट दिया है.

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बसपा प्रमुख मायावती
बसपा प्रमुख मायावती
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बसपा 9 अक्टूबर को लखनऊ में करेगी बड़ी रैली
  • प्रत्येक सीट से 1000 लोगों को लाने का टारगेट
  • मायावती एक बार विपक्षी दलों के दिखाए ताकत

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान भले ही अभी तक न हुआ है, लेकिन राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है. बसपा सुप्रीमो मायावती नौ अक्तूबर को पार्टी संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर मिशन-2022 का विधिवत शंखनाद करेंगी. इसके लिए मायावती ने अपने समर्थकों से सूबे की राजधानी लखनऊ आकर कांशीराम को श्रद्धासुमन अर्पित करने का बकायदा आह्वान किया है.इसके जरिए चुनाव से ठीक पहले बीएसपी एक बार फिर अपनी पुरानी ताकत दिखाने की तैयारी में जुटी है.  

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मायावती ने नौ अक्टूबर को कांशीराम पुण्यतिथि के अवसर पर होने वाली रैली की तैयारी के लिए कार्यकर्ताओं के लक्ष्य तय कर दिए. बुधवार को बसपा सुप्रीमों ने अपनी सभी जिलाध्यक्षों और कोआर्डिनेटरों की बैठक में निर्देश दिए कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से पांच-पांच बसों में कार्यकर्ताओं को लखनऊ लाया जाए. इसके अतिरिक्त अपने निजी वाहन कार आदि में भी कार्यकर्ता यहां पहुंचेंगे. प्रत्येक विधानसभा से 1000 लोगों को लाए जाने की टारेगट दिया गया है.  

मायावती 9 अक्टूबर के दिखाएगी ताकत

बता दें कि ब्राह्मण सम्मेलन के दौरान मंगलवार को मायावती ने एलान किया था कि इस बार 9 अक्टूबर को बसपा संस्थापक कांशीराम पुण्यतिथि का कार्यक्रम जिला और मंडल स्तर पर कोई पार्टी स्तरीय आयोजन नहीं होगा. इस बार प्रदेश भर का कार्यक्रम लखनऊ में आयोजित किया जाएगा, जहां प्रदेश भर के लोग आकर कांशीराम पार्क में कार्यकर्ता उन्हें श्रद्धांजलि देंगे. इस मौके पर मायावती कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगी. 

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मायावती ने बुधवार को मुख्य सेक्टर प्रभारियों और जिलाध्यक्षों के साथ बैठक करते हुए कहा कि बसपा विधानसभा चुनाव में पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरेगी. इसलिए 15 अक्तूबर तक विधानसभा उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए जाने हैं. इसके बाद नाम घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. एक तरह से साफ है कि कांशीराम की पुण्यतिथि पर मायावती सूबे भर के लोगों को लखनऊ में इकट्ठा कर अपनी ताकत का एहसास करेंगी, जहां से बसपा के चुनावी अभियान का आगाज किया जाएगा.  

लखनऊ में लाखों की भीड़ जुटाने का टारगेट

कांशीराम की पुण्यतिथि पर सालों बाद लखनऊ के जेल रोड स्थित कांशीराम ईको गार्डेन में पार्टी के कार्यकर्ता जुटेंगे. यही वजह है कि बसपा प्रमुख ने अपने समर्थकों लाने और ले जाने के लिए स्थानीय स्तर पर व्यवस्था करने के निर्देश है. साथ ही ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने के लिए सभी पदाधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में जाकर तैयारियों में जुटने और स्थानीय स्तर पर बैठकें आयोजित करने को कहा.

सूबे की सभी 403 विधानसभा सीटों  से कार्यकर्ताओं के लखनऊ लाने का टारगेट रखा गया है. प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र एक हजार लोगों को लाने के लिए पांच-पांच बसों में कार्यकर्ताओं को लखनऊ लाने का लक्ष्य रखा है. राजधानी के निकटवर्ती विधानसभा क्षेत्रों से बसों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. बसपा ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर करीब चार लाख लोगों की भीड़ जुटाने की योजना बनाई है. 

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भोजन का स्वयं करना होगा इंतजाम

बसपा मुखिया मायावती ने कहा कि कांशीराम की पुण्यतिथि कार्यक्रम पर लखनऊ आने वाले कार्यकर्ताओं के लिए भोजन का इंतजाम नहीं होगा. स्थानीय स्तर पर ही यह व्यवस्था की जाएगी. वहीं से कार्यकर्ता अपना भोजन साथ लेकर आएंगे और कोराना नियमों का पालन करना भी होगा. कार्यकर्ताओं के भोजन की जिम्मेदारी एक तरह से विधानसभा के प्रभारी के कंधों पर होगी. 

कांशीराम ने दलितों में राजनीतिक चेतना जगाया

बता दें कि कांशीराम ने बसपा की बुनियाद रखी थी और देश में दलित राजनीति की चेतना जगाने का काम किया था. इसी का नतीजा था कि मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. कांशीराम के योगदान को सिर्फ बसपा के सफलता और विफलता से नहीं नापा जा सकता बल्कि बहुजन समाज के बीच उन्होंने राजनीतिक चेतना जगाकर सामाजिक न्याय की बदलाव की बयार बहाने का किया. 

बसपा को खड़ा करने में कांशीराम ने दलित, अतिपिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों को जोड़ने का काम किया था. यूपी ही नहीं पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे समूचे हिंदी पट्टी में तेजी से फैलाया. बसपा की कमान मायावती के हाथों में आने के बाद यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार जरूर मिली, लेकिन कांशीराम ने जो दलित और पिछड़ी जाति का कुनबा जोड़ा था वह पूरी तरह बिखरता चला गया.

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कांशीराम के दौर के तमाम नेता बसपा छोड़कर दूसरे दलों में जरूर चले गए हैं, लेकिन अभी भी कांशीराम के मिशन को छोड़े नहीं है. वहीं, बसपा के दलित वोटबैंक में भी बीजेपी ने सेंध लगाया है. गैर-जाटव दलित बसपा से अलग होकर दूसरी पार्टी गया है, लेकिन मायावती बसपा के संस्थापक कांशीराम के बहाने 2022 का आगाज कर बड़ा संदेश देना चाहती हैं.  


 

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