कृषि कानूनों के खिलाफ देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर लंबे समय से किसान आंदोलन चल रहा है. उत्तर प्रदेश चुनाव की सियासी सरगर्मियां भी बढ़ती जा रही हैं, जिसके चलते बीजेपी ने किसान आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव का आकलन ही नहीं बल्कि कांउटर करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. वेस्ट यूपी में किसान संवाद के जरिए बीजेपी किसानों की नाराजगी को दूर करने की कवायद में जुट गई है.
पश्चिम यूपी के मेरठ जिले की सिवालखास विधानसभा सीट से बीजेपी सोमवार दोपहर से किसान संवाद शुरू कर रही है, जिसे हरी झंडी बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजकुमार चाहर दिखाएंगे. बीजेपी का किसान संवाद ऐसे समय शुरू हो रहा है जब दो दिन पहले मुजफ्फरनगर के सिसौली में बीजेपी विधायक उमेश मलिक पर किसानों का गुस्सा फूटा. ऐसे में बीजेपी की किसान संवाद यात्रा पर संकट मंडराने लगे हैं.
पश्चिम यूपी में निर्णायक है किसान वोटर
तीनों कृषि कानूनों, गन्ने का भुगतान और फसल समर्थन मूल्य के चलते पहले ही पश्चिम यूपी के किसानों में खासी नाराजगी है. ऐसे में आरएलडी और भाकियू को काउंटर करने के लिए बीजेपी ने गांवों में अपने दिग्गज नेताओं को भेजकर किसानों की रणनीति बनाई है. पश्चिम यूपी की 104 सीटों में से 53 सीटों पर किसान निर्णायक भूमिका में है, जिन पर पार्टी का विशेष फोकस है.
आरएलडी और भाकियू के प्रभाव वाली पश्चिम यूपी की ये 53 सीटें ही 2022 में किसानों का रुख तय करने वाली हैं. हाल ही में जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में बीजेपी को जिस हार का सामना करना पड़ा उससे पार्टी किसानों की अहमियत समझ चुकी है. ऐसे में इन 53 विधानसभाओं में बीजेपी किसान के साथ खाट और चबूतरों पर बैठक करेगी. बड़ी चौपाल की जगह छोटी-छोटी चौपालें लगाए जाने की योजना है.
किसान आंदोलन का असर टटोलने की कोशिश
बीजेपी की किसान संवाद यात्रा सोमवार को मेरठ से शुरू होकर 25 अगस्त तक चलेगी. ये पश्चिम यूपी की तमाम विधानसभा सीटों पर होगी. बीजेपी नेता किसानों की समस्याएं सुनकर उन्हें योगी सरकार तक पहुंचाएंगे, ताकि उनका समाधान निकल सके. माना जा रहा है कि बीजेपी किसान संवाद के जरिए किसान आंदोलन के असर को टटोलने की भी कोशिश करेगी, ताकि 2022 के चुनाव से पहले उन्हें साधा जा सके.
बता दें कि कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली-यूपी की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन का चेहरा भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत बन चुके हैं. टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से आते हैं, जिसके चलते उनका इस पूरे इलाके में अच्छा खासा सियासी असर माना जाता है. किसान आंदोलन से जाट-मुस्लिम के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं, जो बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाली साबित हो सकती है.
बीजेपी यूपी के चुनाव को देखते हुए अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुटी है. इसी कड़ी में किसानों के बीच जाकर उनकी नाराजगी को दूर करने और उन्हें साथ जोड़े रखने की रणनीति पर काम कर रही है. ऐसे में बीजेपी किसान संवाद शुरू कर रही है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी चिंता गांव में किसानों की नाराजगी है. मुजफ्फरनगर के सिसौली में जिस तरह से बीजेपी विधायक का विरोध किसानों ने किया है और उसके बाद किसानों पर मुकदमें दर्ज हुए हैं ऐसे में किसानों की नाराजगी और भी बढ़ गई है.
किसान खुलकर बीजेपी की संवाद यात्रा का विरोध करने की रणनीति बना रहे हैं. सिसौली घटना के बाद किसानों ने इमरजेंसी बैठक की घोषणा पहले ही कर दी थी. ऐसे में बीजेपी के लिए किसानों को साधना आसान नहीं है. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी सूबे में किसानों के दिल में कैसे अपनी जगह बनाती है.