कुंवर भारतेंद्र सिंह, भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं और पश्चिमी यूपी के बिजनौर जिले से आते हैं. इनका रिश्ता एक रॉयल परिवार से है, इसीलिए इनके नाम के साथ कुंवर लगाया जाता है. दो बार विधायक रह चुके हैं और एक बार सांसद बने हैं. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपियों में भी इनका नाम आ चुका है.
14 जनवरी, 1964 को कुंवर भारतेंद्र सिंह का जन्म उत्तराखंड के देहरादून में हुआ था. इनके पिता राजा देवेंद्र सिंह थे. जो बिजनौर जिले में आने वाली साहनपुर रियासत को संभालते थे. आज भी इलाके में साहनपुर को रियासत कहकर ही पुकारा जाता है. हालांकि, फिलहाल साहनपुर एक टाउन एरिया है. यहां नगर पंचायत के चुनाव होते हैं.
रॉयल परिवार में जन्म लेने वाले भारतेंद्र सिंह ने देहरादून के मशहूर दून स्कूल से पढ़ाई की. ये वो स्कूल है जहां देश की नामचीन हस्तियों के बच्चे पढ़ते हैं. राहुल गांधी भी इसी स्कूल से पढ़े हैं.
स्कूल के बाद भारतेंद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेस से पढ़ाई. उन्होंने हिस्ट्री में बीए ऑनर्स किया. भारतेंद्र सिंह के तीन बच्चे हैं, एक बेटा है और दो बेटियां हैं.
कुंवर भारतेंद्र का अपना साहनपुर इलाका तो नजीबाबाद विधानसभा सीट में आता है, लेकिन वो चुनाव बिजनौर सदर सीट से लड़ते रहे हैं. 2002 में कुंवर भारतेंद्र ने अपना पहला विधानसभा चुनाव बिजनौर सीट से ही जीता था. इसके बाद 2007 का चुनाव भी भारतेंद्र ने बिजनौर सीट से ही लड़ा. लेकिन इसमें वो हार गए. बसपा के टिकट पर लड़े उद्योगपति शाहनवाज राणा ने करीब 500 वोट के मामूली अंतर से हराया. ये वो चुनाव था, जब बिजनौर में बसपा की लहर चली थी और पार्टी ने जिले की सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज की थी.
2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतेंद्र सिंह ने फिर वापसी की. भाजपा ने उन्हें बिजनौर सीट से ही टिकट दिया और उन्होंने जीत दर्ज की. इस चुनाव शाहनवाज राणा की जगह बसपा ने महबूब ठेकेदार को टिकट दिया तो शाहनवाज राणा RLD से आ गए. जबकि ये दोनों नेता कभी एक ही ग्रुप के हुआ करते थे. दोनों की लड़ाई का फायदा बीजेपी प्रत्याशी के रूप में कुंवर भारतेंद्र को हुआ और करीब 18 हजार के मार्जिन से जीत गए.
मुजफ्फरनगर दंगे से चर्चा में आए भारतेंद्र सिंह
एक बड़े परिवार से होने के साथ-साथ बिजनौर की राजनीति में भारतेंद्र सिंह का नाम यूं तो आम था लेकिन प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें जाना गया मुजफ्फरनगर दंगे के बाद. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ. मुजफ्फरनगर, बिजनौर का नजदीकी जिला है. लिहाजा, कुंवर भारतेंद्र भी इस दौरान मुजफ्फरनगर में सक्रिय नजर आए. बयानबाजी भी होती रहीं. दंगों के आरोपियों में भी उनका नाम आया.
इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बिजनौर लोकसभा सीट से उन्हें चुनाव लड़ाया. ये चुनाव भी वो जीत और इस तरह पहली बार सांसद निर्वाचित हुए. उपचुनाव हुआ तो सपा के टिकट पर कुंवरानी रूचि वीरा जीत गईं. रूचि वीरा भी बिजनौर के एक पुराने घराने से आती हैं. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में बिजनौर सीट से भाजपा के टिकट पर सूची चौधरी जीत गईं, जिनके पति ऐश्वर्या चौधरी (मौसम भैया ) एक सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े केस में जेल में थे.
कुंवर भारतेंद्र सिंह और मौसम चौधरी के बीच अनबन भी खुलकर सामने आती रही. दोनों के समर्थक भी एक-दूसरे को नहीं सुहाते थे. कोल्ड वॉर के बीच जब 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ तो भारतेंद्र सिंह को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. बसपा-सपा गठबंधन के प्रत्याशी मलूक नागर ने भारतेंद्र सिंह को हरा दिया. कहा जाता है कि सिटिंग विधायक से नाराजगी भी भारतेंद्र सिंह को चुनाव में नुकसान करा गई.
अब जबकि 2022 का विधानसभा है तो एक बार फिर दोनों नेताओं की तकरार दिखी. पार्टी ने इस मनमुटाव को दूर करने के लिए भारतेंद्र सिंह को बिजनौर से टिकट देने के बजाय उनके होमटाउन यानी साहनपुर वाले इलाके से टिकट दिया. अब भारतेंद्र सिंह हरिद्वार की सीमा से सटे नजीबाबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि बिजनौर सदर सीट से पार्टी ने सिटिंग विधायक सूची चौधरी को ही प्रत्याशी बनाया है.
नजीबाबाद सीट पर कुंवर भारतेंद्र सिंह के सामने दोहरी चुनौती है. एक तो ये उनका चुनावी क्षेत्र नहीं रहा है, दूसरी तरफ उनके सामने सपा से तसलीम अहमद हैं. जो 2017 की बीजेपी लहर में भी नजीबाबाद से जीते थे. ये सीट मुस्लिम बहुल है. हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर भारतेंद्र सिंह साफ छवि के नेता माने जाते हैं, समाज के सभी वर्गों से उनका जुड़ाव रहा है. अब देखना होगा कि इस मुस्लिम बहुल सीट पर भारतेंद्र सिंह के समीकरण फिट हो पाते हैं या नहीं.