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लखीमपुर से बदली UP की सियासी फिजा, SP से गठबंधन पर जयंत क्यों नहीं खोल रहे पत्ते

लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश की बदलती सियासी फिजा में 2022 के चुनावी बिसात बिछाने में जुटे सियासी दलों के बीच शह-मात का खेल भी शुरू हो गया है. राजनीतिक दल अपने नफा और नुकसान को तौलने में जुट गए हैं. सपा से गठबंधन पर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी अब अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार आरएलडी के साथ चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं. 

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जयंत चौधरी और अखिलेश यादव
जयंत चौधरी और अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • लखीमपुर घटना से क्या बदल रही सियासी फिजा
  • आरएलडी को मनमाफिक सीटें सपा नहीं दे रही है
  • जयंत अब सपा से गठबंधन पर 2022 में करेंगे बात

राजनीति कब किस करवट बैठेगी यह कोई नहीं बता सकता. सियायत में न तो कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन. लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश की बदलती सियासी फिजा में 2022 के चुनावी बिसात बिछाने में जुटे सियासी दलों के बीच शह-मात का खेल भी शुरू हो गया है. राजनीतिक दल अपने नफा और नुकसान को तौलने में जुट गए हैं तो कुछ अपनी बार्गेनिंग पोजिशन भी बढ़ाने में लगे हैं. इसी कड़ी में सपा से गठबंधन पर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी अब अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार आरएलडी के साथ चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं. 

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सपा से गठबंधन पर 2022 में जयंत करेंगे बात

राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी पश्चिम यूपी में अपने खोए हुए सियासी जनाधार को दोबारा से लाने के लिए मिशन-2022 का आगाज कर दिया है. जयंत ने गुरुवार को अपने दादा पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली हापुड़ नूरपुर से जन आशीर्वाद यात्रा शुरू किया है. इस दौरान अखिलेश के साथ गठबंधन के सवाल पर जयंत ने कहा कि सपा से गठबंधन 2022 की बात है, उस बात को अब 2022 में ही करेंगे. अभी फिलहाल पश्चिम यूपी में सर्व समाज का आशीर्वाद पाने के लिए हम जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे हैं. 

जयंत चौधरी ने गुरुवार को हापुड़ के नूरपुर गांव के साथ दूसरी सभा जाट महापुरुष राजा महेंद्र प्रताप सिंह के अलीगढ़ के खैर में की. दोनों जगह जयंत को सुनने के लिए बड़ी भीड़ जुटी थी. भीड़ देख गदगद जयंत चौधरी ने जनता से आशीर्वाद मांगा और भावनात्मक तीर चलाया. जयंत ने कहा कि चौधरी चरण सिंह की विरासत को आपने संभाला. चौधरी अजित सिंह के जाने के बाद मेरे कंधे पर जिम्मेदारी बढ़ गई है, लेकिन मेरे साथ आप सबकी भी जिम्मेदारी बढ़ी. 

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जयंत का दावा आरएलडी पुराने लय में लौट रही

जयंत चौधरी ने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की दमन नीति के तहत कार्य कर रही है और उसका उदाहरण लखीमपुर की घटना है. इशारों इशारों में चौधरी जयंत सिंह ने यह जरूर कह दिया कि राष्ट्रीय लोकदल अपने पुराने लय में लौट रही है जिसका रिजल्ट 2022 में देखने को मिलेगा. जयंत चौधरी ने कहा कि उनकी ताकत उनका परिवार है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हर शख्स उनके परिवार का सदस्य है. इस बार देश उनके परिवार की ताकत देखेगा. इसके साथ उन्होंने कहा कि यूपी में चुनाव 2022 में है तो गठबंधन पर बात भी 2022 में ही होगी. 

बता दें कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद ध्रुवीकरण की धार में आरएलडी का पूरा सियासी समीकरण ध्वस्त हो गया था. हालात ऐसे हो गए थे कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी एक भी कैंडिडेट नहीं जीत सका था. खुद अजित सिंह और जयंत चौधरी को हार का सामना करना पड़ा था और उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी के महज विधायक जीते थे, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर JUS आरएलडी को किसान आंदोलन ने एक नई संजीवनी दे दी है. 

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सपा गठबंधन को तैयार आरएलडी क्या सोच रही

उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी को मात देने लिए अखिलेश यादव ने इसीलिए जयंत चौधरी के साथ गठबंधन कर 2022 का चुनाव लड़ने का ऐलान किया, लेकिन अभी तक सपा और आरएलडी के बीच सीट शेयरिंग फॉर्मूला सामने नही आ सका है. बदले सियासी माहौल में आरएलडी पश्चिम यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, जिसके लिए सीटों की डिमांड भी ज्यादा कर रही है. वहीं, अखिलेश यादव आरएलडी को बहुत ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं दिख रहे हैं.

लखीमपुर खीरी की घटना के बाद जिस तरह का सियासी माहौल बदला है. ऐसे में जयंत चौधरी का मन भी बदल दिख रहा है, जिसके चलते वो सपा के साथ गठबंधन पर अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. सपा के साथ गठबंधन पर 2022 में बात करने के लिए कह रहे हैं, जिससे साफ जाहिर होता है कि आरएलडी गठबंधन पर अपने विकल्प को अभी खुला रखना चाहती है. 

जयंत चौधरी का मन गठबंधन पर क्या बदल रहा है

दरअसल, जयंत चौधरी का मन बदलने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि पश्चिम यूपी में सपा का कोर वोटर यादव बहुत ज्यादा है नहीं. वहीं, मुस्लिम वोटर पश्चिम यूपी में पिछले तीन चुनाव से जाट से अलग होकर देख चुका है कि वो अपने दम पर बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं है. ऐसे में मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न जाट समाज के मिजाज पर निर्भर करेगा. ऐसे में जाट वोट बीजेपी के खिलाफ जिस पार्टी के साथ जाएगा उसे के साथ मुस्लिमों के भी जाने की संभावना है. 

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जयंत चौधरी को सजातीय जाट वोटों के साथ मुस्लिमों का भी समर्थन मिलता दिख रहा है. इसका असर पंचायत चुनाव में दिख गया था. आरएलडी के हर जिले में काफी तादाद में जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य जीते थे. पश्चिम यूपी के तमाम मुस्लिम नेताओं ने भी आरएलडी का दामन थामा है. इसी के साथ चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद लोगों की सहानुभूति का फायदा भी मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता. 

लखीमपुर खीरी से कांग्रेस को मिली संजीवनी

वहीं, 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव फाइट से अभी तक बाहर नजर आ रही है कांग्रेस को प्रियंका गांधी ने लखीमपुर मामले में अपने तेवरों और संघर्ष के जरिए एक फिर फ्रंटफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है. ऐसे में कांग्रेस को भी यूपी में एक मजबूत सहयोगी दल की जरूरत है. कांग्रेस के तमाम नेता खुलकर गठबंधन करने की बात कर रहे हैं, लेकिन अखिलेश यादव साफ मना कर चुके हैं कि जिन दलों के साथ पहले मिलकर चुनाव लड़ चुके है, उनसे हाथ नहीं मिलाएंगे. 

कांग्रेस पश्चिम यूपी की सियासी समीकरण को देखते हुए 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर काम शुरू कर दिया है. आरएलडी को मानमाफिक सीटें सपा भले ही न दे रही है, लेकिन कांग्रेस दे सकती है. इसीलिए जयंत चौधरी ने सपा के साथ गठबंधन पर 2022 में बात करने को बोल रहे हैं. जयंत का यह दांव सपा पर दबाव बढ़ाने वाला भी माना जा रहा है.  

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2009 की तरह बन रहा यूपी का माहौल

बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यूपी में कांग्रेस को 15 सीटें दे रही थी, जिसके चलते गठबंधन पर बात नहीं बन सकी थी. इसके बाद कांग्रेस ने आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और पश्चिम यूपी से लेकर तराई बेल्ट की ज्यादा तर सीटें दोनों दलों के खाते में गई थी. कांग्रेस ने सपा के बराबर 22 सीटें जीतने में सफल रही थी जबकि आरएलडी पांच सीटें जीती थी.

इस बार भी पश्चिम यूपी और तराई बेल्ट में किसान नाराज है. ऐसे में सूबे के बदले हुए सियासी और मौके की नजाकत को देखते हुए जयंत चौधरी और प्रियंका गांधी साथ आते हैं तो पश्चिम से लेकर तराई के इलाके की राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं, क्योंकि किसान यहां की सियासत में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं? 


 

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