भारत सरकार ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए मेडिकल एजुकेशन से जुड़े अखिल भारतीय कोटे (AQI) में ओबीसी समुदाय के लिए बड़ा कदम उठाया है. अब AQI योजना में ओबीसी के लिए 27 फीसदी और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिए 10 फीसदी सीटें आरक्षित रखी जाएंगी. मोदी सरकार के इस फैसले को अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में ओबीसी समुदाय के वोटरों का एक बड़ा हिस्सा है, जिसपर राजनीतिक दलों की नज़र टिकी रहती है. ऐसे में केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले से राज्य के विधानसभा चुनाव पर असर दिख सकता है. केंद्र के इस फैसले के बाद यूपी में राजनीतिक दलों के रिएक्शन भी आने शुरू हुए हैं और हर कोई इस फैसले में अपनी भूमिका को पिरोने में लगा है.
केंद्र सरकार ने क्या लिया है फैसला?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में गुरुवार को सरकार ने फैसला लिया कि अखिल भारतीय कोटा (AQI) योजना में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा. ये फैसला इसी साल से लागू हो जाएगा.
यानी शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से अंडर-ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट मेडिकल/डेंटल कोर्स (एमबीबीएस, एमडी, एमएस, डिप्लोमा, बीडीएस, एमडीएस) में ये लागू हो जाएगा. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जुलाई को हुई बैठक में संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को लंबे समय से लंबित इस मुद्दे का प्रभावी समाधान निकालने का निर्देश दिया था.
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फैसले का क्या असर होगा?
केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले से हर साल लगभग 1500 ओबीसी विद्यार्थियों को एमबीबीएस में और 2500 ओबीसी विद्यार्थियों को पोस्टग्रेजुएट में तथा 550 EWS विद्यार्थियों को एमबीबीएस में और लगभग 1000 EWS विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर में लाभ मिलेगा.
बता दें कि अखिल भारतीय कोटे में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कुल उपलब्ध यूजी सीटों में से 15 प्रतिशत और कुल उपलब्ध PG सीटों में से 50 प्रतिशत शामिल होती हैं. पहले, 2007 तक एआईक्यू योजना में कोई आरक्षण नहीं होता था. 2007 में, सुप्रीम कोर्ट ने एआईक्यू योजना में एससी के लिए 15 प्रतिशत और एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की थी.
यूपी चुनाव से पहले भाजपा का मास्टरस्ट्रोक?
केंद्र के इस फैसले को यूपी चुनाव से पहले मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. क्योंकि यूपी में ओबीसी समुदाय के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है, वहीं लंबे वक्त से अलग-अलग स्तर पर मेडिकल एजुकेशन से जुड़े छात्रों द्वारा इस मसले पर प्रदर्शन किया जा रहा था, जिसकी गूंज लखनऊ से लेकर दिल्ली तक थी. हाल ही में अनुप्रिया पटेल समेत अन्य कई यूपी के नेताओं और ओबीसी समुदाय से आने वाले मंत्रियों ने इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी की थी.
खास बात ये भी है कि उत्तर प्रदेश में करीब 50 फीसदी वोटर ओबीसी समुदाय से ही आता है, साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली प्रचंड जीत की वजह ओबीसी समुदाय का मोदी लहर में बीजेपी का साथ देना रहा है. इन 50 फीसदी में से भी करीब 40-42 फीसदी वोटर गैर-यादव समुदाय से आता है, जिसपर बीजेपी का निशाना है. ऐसे में अब मेडिकल एजुकेशन से जुड़ा ये फैसला इसी साल लागू होता है, तो यूपी में इसका बड़ा संदेश जाएगा.
भारतीय जनता पार्टी की ओर से पहले से ही ओबीसी समुदाय को लुभाने की कोशिश जारी है. हाल ही में जब केंद्रीय कैबिनेट का विस्तार हुआ तब यूपी के कुल सात नेताओं को कैबिनेट में जगह दी गई. अब केंद्रीय कैबिनेट में करीब एक दर्जन मंत्री यूपी से आते हैं, इनमें से भी बड़ा हिस्सा ओबीसी समुदाय के नेताओं का ही है.
फैसले के बाद क्रेडिट के लिए जंग?
केंद्र सरकार ने गुरुवार शाम को ये फैसला लिया और उसके बाद बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाओं का दौर भी शुरू हो गया. एक ओर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका क्रेडिट दिया जा रहा है, जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और अन्य भाजपा नेताओं ने पीएम मोदी की तारीफों के पुल बांधे.
वहीं, दूसरी ओर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस की ओर से इस फैसले में अपना भी योगदान दिखाने की कोशिश की गई है. समाजवादी पार्टी के मुखिया और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट किया कि सपा के आंदोलन के आगे अंततः आरक्षण विरोधी भाजपा को झुकना ही पड़ा. भाजपा ने लाख हथकंडे और चालें चलीं पर आख़िर उसे मेडिकल में 27% OBC व 10% EWS का संवैधानिक अधिकार देना ही पड़ा. ये सपा के सामाजिक न्याय के संघर्ष की जीत है, इस जीत के बाद हम 2022 भी जीतेंगे.
सपा के आंदोलन के आगे अंततः आरक्षण विरोधी भाजपा को झुकना ही पड़ा। भाजपा ने लाख हथकंडे और चालें चलीं पर आख़िर उसे मेडिकल में 27% OBC व 10% EWS का सांविधानिक अधिकार देना ही पड़ा।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) July 29, 2021
ये सपा के सामाजिक न्याय के संघर्ष की जीत है।
इस जीत के बाद हम 2022 भी जीतेंगे।#बाइस_में_बाइसकिल
वहीं, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर लिखा कि देश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की ऑल-इंडिया की यूजी व पीजी सीटों में ओबीसी कोटा की घोषणा काफी देर से उठाया गया कदम है. केन्द्र सरकार अगर यह फैसला पहले ही समय से ले लेती तो इनको अबतक काफी लाभ हो जाता, किन्तु अब लोगों को यह चुनावी राजनीतिक स्वार्थ हेतु लिया गया फैसला लगता है.
मायावती ने आगे लिखा कि वैसे बीएसपी बहुत पहले से सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी व ओबीसी कोटा के बैकलॉग पदों को भरने की मांग लगातार करती रही है, किन्तु केन्द्र व यूपी सहित अन्य राज्यों की भी सरकारें इन वर्गों के वास्तविक हित व कल्याण के प्रति लगातार उदासीन ही बनी हुई हैं, यह अति दुःखद है.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल मार्च-अप्रैल के बीच विधानसभा चुनाव हो सकता है. राजनीतिक दलों की ओर से अभी से ही अपने-अपने मिशन की शुरुआत की जा चुकी है. भाजपा लगातार बैठकें कर रही है तो हाल ही में प्रियंका गांधी ने भी लखनऊ का दौरा किया था. ऐसे में साल 2022 की यूपी की जंग दिलचस्प होने के आसार हैं.