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Naraini Assembly Seat: सभी पार्टियों को मिला मौका फिर भी विकास के लिए तरस रहा क्षेत्र

नरैनी विधानसभा सीट: इलाके के लोग मानते हैं कि भले ही विधायक की वजह से क्षेत्र का कोई खास विकास ना हुआ हो लेकिन बीते साढ़े चार सालों में विधायक का इतना विकास जरूर हो गया है कि जनता बंद आंखों से भी उसे महसूस कर सकती है.

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Uttar Pradesh Assembly Election 2022( Naraini Assembly Seat)
Uttar Pradesh Assembly Election 2022( Naraini Assembly Seat)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नेता प्रतिपक्ष गया चरण दिनकर यहीं से थे विधायक
  • कांग्रेस-कम्युनिस्ट पार्टी को खूब मिला मौका
  • बाद में सपा-बसपा-भाजपा को भी मिला मौका

बुंदेलखंड के हिस्से में पड़ने वाले उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की नरैनी विधानसभा सीट को बसपा के मजबूत गढ़ के रूप में जाना जाता है. पिछली बार के नेता प्रतिपक्ष गया चरण दिनकर (बसपा) यहीं से विधायक थे. बांदा जिले की नरैनी विधानसभा सीट पिछड़े वर्ग की आरक्षित सीट है. यहां से मौजूदा समय में भाजपा के राजकरण कबीर विधायक हैं. अपनी सादगी और नेता प्रतिपक्ष को हराने की वजह से 2017 के चुनावी नतीजों में इनको जितनी ख्याति मिली. वह प्रसिद्धि विधानसभा के पहले चालू सत्र में विधायक राजकरण कबीर की सोती हुई तस्वीरों के मीडिया में वायरल होने के साथ ही काफूर हो गयी.

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इलाके के लोग मानते हैं कि भले ही विधायक की वजह से क्षेत्र का कोई खास विकास ना हुआ हो लेकिन बीते साढ़े चार सालों में विधायक का इतना विकास जरूर हो गया है कि जनता बंद आंखों से भी उसे महसूस कर सकती है. पूरे कार्यकाल के दौरान ये विरोधी विधायकों पर बालू के अवैध खनन में शामिल होने और मनमानी संपति अर्जित करने के आरोप लगाते रहे हैं.

परिचय
बांदा जिला मुख्यालय की दूरी प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर है. यहां से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर नरैनी तहसील मुख्यालय है. नरैनी विधानसभा सीट का नम्बर 234 है. नरैनी विधानसभा क्षेत्र से झांसी-प्रयागराज रेल मार्ग गुजरता है. जिसमें मात्र दो स्टेशन अतर्रा और बदौसा ही रेल नेटवर्क से कनेक्ट है. लगभग आधी से ज्यादा आबादी रेल सुविधाओं से वंचित है. यहां खड़ी बोली और ज्यादातर क्षेत्रीय भाषा का उपयोग किया जाता है.

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मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से सटे यूपी की नरैनी विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले प्रमुख दर्शनीय स्थल में विश्व प्रसिद्ध कालिंजर फोर्ट, गौरा बाबा अतर्रा मंदिर, गुढ़ा हनुमान मंदिर शामिल है.

बांदा जिले की नरैनी विधानसभा सीट में 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. मोटे तौर पर आजादी के बाद कांग्रेस और 1974 से 1989 तक सीपीआई का दबदबा बरकरार रहा. लेकिन बीच में एक बार कांग्रेस को भी सत्ता की चाबी मिली. यहां के लोग लोधी समाज के नेता सुरेंद्र पाल वर्मा (लोध) को अपना सहयोग व समर्थन देते रहें हैं.

सुरेंद्र पाल वर्मा इस विधानसभा सीट से 5 बार विधायक रह चुके हैं. सन 1996 से 2012 तक नरैनी विधानसभा में लगातार बसपा का कब्जा रहा. 1962 में जनसंघ के जमाने से ही यह सीट 2 बार उसके पास रही.

नरैनी विधानसभा के अतर्रा कस्बे के प्रमुख चौराहे चौक बाजार में महात्मा गांधी की फ़ोटो स्थापित है जिससे इस चौक का नाम गांधी चौक पड़ गया और इसी कस्बे में गांधी चौक के समीप सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित है जिससे उस मोहल्ले ( वार्ड ) का नाम सुभाष नगर हो गया.  

नरैनी विधानसभा में सभी जातियों का समन्वय है. सामान्य के साथ साथ पिछड़े वर्ग एवं एससी की बराबर संख्या है और धर्म विशेष में मुस्लिम भी पर्याप्त हैं.  

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नरैनी विधानसभा में घूमने के लिए कालिंजर किला ( फोर्ट ) ही एक मात्र पर्यटक स्थान है. यहां दुनिया का एकमात्र नीलकंठेश्वर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी स्थित है और गुढ़ाकला के प्राचीन हनुमानजी का मंदिर, अतर्रा में गौरा बाबा ( शंकर भगवान ) का मंदिर सहित ग्रामीण क्षेत्रो में मंदिर स्थित हैं. कालिंजर फोर्ट पुरातत्व विभाग की देखरेख में संचालित किया जा रहा है. 

राजनीतिक इतिहास
नरैनी विधानसभा में कई दिग्गजों ने अपना भाग्य आजमाया है लेकिन यहां दबदबा डॉ. सुरेंद्र पाल वर्मा ( लोध ) का ही कायम रहा है. जो कई पार्टियों में से यहां व्यक्तिगत तौर पर नेता बनकर उभरे थे और क्षेत्र के लोग इनके नाम पर वोट देते थे. हालिया राजनीति के परिप्रेक्ष्य में पार्टी बेस पर मतदाताओं का रुझान हो गया है.

कहा जाता है कि नारायण कुशवाहा नाम के व्यक्ति ने नारायणी कस्बे को बसाया था. इसके बाद इसी कस्बे में सबसे पहले तहसील मुख्यालय व ब्लॉक बना. परिसीमन होने के बाद तहसील व ब्लॉक होने के कारण इसको नरैनी विधानसभा घोषित किया गया.

2011 -12 में परिसीमन के दौरान विधानसभा की सीमाओं में परिवर्तन हुआ. भरतकूप को चित्रकूट जनपद में गिरवां को बांदा सदर में और ओरन को नरैनी विधानसभा में शामिल किया गया था. इस सीट का अस्तित्व एससी सुरक्षित हो गया. तब से अब तक नरैनी विधानसभा सीट एससी सुरक्षित सीट के रूप में जानी जाती है.

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नरैनी विधानसभा एक जमाने मे आर्थिक रूप से चावल की मीलों के लिए जानी जाती थी. एक समय में यहां पर लगभग एक दर्जन चावल मीलें हुआ करती थी. जो अब पूर्ण रूप से बंद हैं. यहां का चावल देश-विदेश में जाता था. चावल मील, अब निजी प्लांटो में तब्दील हो गयी है जो अब अपने स्तर से व्यवसाय चलाते हैं. 

नरैनी विधानसभा का आजादी के बाद से अपेक्षित विकास नहीं हुआ है और गिनती भी पिछड़े क्षेत्रो में होती रही है. यहां उच्च शिक्षा का हमेशा आभाव रहा है. यहां के लोगों के लिए उच्च शिक्षा के लिए दूर गैर जनपद जाना ही एक मात्र विकल्प था. लेकिन साल 2007-12 में मायावती के सरकार में मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने नरैनी विधानसभा क्षेत्र अतर्रा में एक राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना कराई. इसमें फिलहाल गिने चुने कोर्स ही कामचलाऊ तौर पर पाठ्यक्रम के रूप में उपलब्ध हैं. 

सरकारी महाविद्यालय के नाम पर एक ही पीजी कॉलेज जो बुंदेलखड़ विश्वविद्यालय से अटैच होकर अतर्रा में स्थित है. बाकी व्यवसाय के तौर पर कई महाविद्यालय खुले हुए हैं. स्वास्थ्य सेवाओं का जिक्र करें तो दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (नरैनी व अतर्रा) व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. यहां कोई बड़ा स्वास्थ्य संबंधी संस्थान नहीं है. बल्कि जनपद में राजकीय मेडिकल कॉलेज है. जहां मानक के अनुसार स्वास्थ्य उपलब्ध है. लेकिन स्टाफ की कमी रहती है.

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नरैनी विधानसभा क्षेत्र में मात्र एक नगरपालिका व दो नगर पंचायत हैं. जहां की कुल आबादी लगभग पौने छह लाख के करीब हैं. जिला निर्वाचन कार्यालय के अनुसार विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता 3 लाख 38 हजार 609 हैं. जिसमें 1 लाख 84 हजार 784 पुरुष व 1 लाख 53 हजार 816 महिलाओ साथ 9 अन्य वोटर हैं.

और पढ़ें- Lakhimpur Kheri Assembly Seat: मोदी लहर में बीजेपी के खाते में गई सीट, सपा से है मुकाबला

कृषि के साथ दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं लोग

नरैनी विधानसभा में लोग कृषि के साथ साथ लगभग आधी आबादी दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं. फसल उत्पादन हेतु यहां पानी की समस्या हमेशा होती है. कभी सूखा तो कभी खेतो में हरियाली दिखाई देती है. यहां औद्योगीकरण नहीं होने की वजह से मजबूरी में लोग आजीविका के लिए दूसरे प्रांतों में पलायन करते हैं. पहले चावल मीलें लोगो का सहारा हुआ करती थी लेकिन अब वो भी पूर्ण रूप से बंद हैं. चावल मीलें, अब निजी प्लांटो में तब्दील हो गयी है जो उनका खुद का व्यवसाय का साधन है. 

कांग्रेस-कम्युनिस्टों का रहा बोलबाला

आजादी के बाद यहां कांग्रेस का दबदबा कई सालों तक बरकरार रहा. लोग कांग्रेस के नाम पर वोट देते रहे. दिलचस्प बात यह है कि लोधी समाज के नेता बनकर उभरे सुरेंद्र पाल वर्मा को नरैनी विधानसभा से 5 बार विधायक बनने का खिताब भी प्राप्त है. लोग उनके नाम पर वोट देते थे और उन्होंने कई पार्टियों से विधानसभा का चुनाव लड़ा. यहां के मतदाताओं ने कई पार्टियों को सेवा का मौका दिया. 1951 में कांग्रेस से श्यामा चरण, 1957 में कांग्रेस से गोपी कृष्ण आजाद , 1962 में जनसंघ से मतोला सिंह , 1967 में भारतीय जनसंघ से जे सिंह, 1969 में कांग्रेस से हरबंश प्रसाद, 1974 में सीपीआई ( कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ) से चंद्रभान आजाद , 1977 में सीपीआई से सुरेन्द्रपाल वर्मा , 1980 में कांग्रेस से हरबंश पांडेय , 1985 व 1989 में लगातार दो बार सीपीआई से सुरेन्द्रपाल वर्मा, 1991 में भाजपा से रमेश चंद्र द्विवेदी , 1993 में सपा से सुरेंद्र पाल वर्मा, 1996 में बसपा से बाबूलाल कुशवाहा, 2002 में सुरेन्द्रपाल वर्मा, 2007 में बसपा से पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी, 2012 में बसपा से गया चरण दिनकर विधानसभा नरैनी से विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे थे. 17वीं विधानसभा 2017 में भाजपा से राजकरण कबीर निर्वाचित हुए हैं.

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साल 2017 का जनादेश
 2017 विधानसभा चुनाव में कुल 13 प्रत्याशी मैदान में थे. लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस का ही रहा. मोदी लहर के चलते भाजपा से राजकरण कबीर को 92412 व कांग्रेस से भरत लाल दिवाकर को 47405 मत प्राप्त हुए थे. दिलचस्प बात यह रही कि विधायक एवं सपा सरकार में नेता प्रतिपक्ष रहे बसपा के कद्दावर नेता गया चरण दिनकर को हार का सामना करना पड़ा था. उनको 44610 वोट प्राप्त हुए थे. 

नरैनी विधायक राजकरण कबीर का जन्म बांदा जिले के मोरवां गांव में 14 जुलाई 1969 को हुआ. इनके पिता का नाम श्रवण कुमार है. पत्नी का नाम उर्मिला कबीर है. जो 2021 में महुआ ब्लॉक से भाजपा ब्लॉक प्रमुख चुनी गई हैं. विधानसभा का टिकट इन्हें पार्टी में सक्रियता, विभिन्न कार्यक्रमों में भागीदारी और पिछले चुनाव में अच्छे वोट मिलने का कारण ही मिला था. इन्होंने साल 2002 में अपना दल व साल 2012 में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा था लेकिन हार का सामना करना पड़ा. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के दौरान ये जीतने में कामयाब रहे. फिलहाल विधायक की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे गिरा है. मौजूदा राजनीति कुछ और ही कहानी बयान कर रही है, जिसका अंजाम आने वाला वक्त ही तय करेगा.

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सिद्धार्थ गुप्ता की रिपोर्ट...

 

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