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UP Election: चुनाव से पहले निषाद आरक्षण कैसे बीजेपी के लिए बन गया है गले की फांस?

अनुसूचित जाति के आरक्षण की आस लगाए निषाद समाज ने बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बीजेपी से दो टूक कह दिया है कि निषाद समाज को आरक्षण नहीं, तो समर्थन भी नहीं. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी भी निषाद आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखे हैं. 

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योगी आदित्यनाथ, केशव मौर्य, अमित शाह, संजय निषाद
योगी आदित्यनाथ, केशव मौर्य, अमित शाह, संजय निषाद
स्टोरी हाइलाइट्स
  • निषाद समाज के आरक्षण की मांग पर तेज
  • यूपी चुनाव से पहले बीजेपी के लिए चुनौती
  • निषाद समाज कहीं ओबीसी तो कहीं एससी कैटेगरी में

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए बीजेपी जातिगत समीकरण बैठाने में लगी है. अनुसूचित जाति के आरक्षण की आस लगाए निषाद समाज ने बीजेपी पर दबाब बनाना शुरू कर दिया है. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बीजेपी से दो टूक कह दिया है कि निषाद समाज को आरक्षण नहीं, तो समर्थन भी नहीं. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी भी निषाद आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.

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निषाद रैली में शाह ने नहीं आरक्षण का आश्वासन 

बता दें कि लखनऊ के रमाबाई पार्क में 17 दिसंबर को निषाद समाज की रैली हुई थी, जिसमें आरक्षण की उम्मीद में हजारों की संख्या में निषाद समाज के लोग जमा हुए थे. इस रैली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने निषाद आरक्षण की मांग पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया. इसके चलते अब निषाद समाज से लेकर बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद नाराज हैं. 

संजय निषाद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखकर कहा है कि मेरे कार्यकर्ता मुझ पर भरोसा करके रैली में आए थे. इसलिए मैंने मंच पर कहा था कि बीजेपी हमारे मुद्दों की वकालत करती आई है. गृहमंत्री अमित शाह को निषाद आरक्षण के मुद्दे पर कुछ न कुछ तो कहना ही चाहिए था. सिर्फ इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि सरकार आने पर निषाद समाज के मसला हल करेंगे. 2022 में बीजेपी को सरकार बनानी है तो निषाद समाज का ख्याल रखना होगा. वहीं, मुकेश सहनी भी निषाद आरक्षण को लेकर लगातार बीजेपी पर दबाव बनाए हुए हैं. 

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निषाद समाज के एससी में शामिल होने की डिमांड

उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में निषाद समाज ओबीसी की श्रेणी में आते हैं जबकि दिल्ली और दूसरे राज्य में अनुसूचित जाति में शामिल हैं. ऐसे में लंबे समय से निषाद समाज को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल कराने की मांग उठ रही है. बिहार में तो केंद्र सरकार तो साफ मना कर चुकी है कि निषाद समाज को एससी में शामिल नहीं किया जाएगा, लेकिन यूपी में निषाद समाज की उम्मीदें लगी हुई हैं. 

दरअसल, 1961 में जनगणना के लिए केंद्र सरकार ने एक मैनुअल सभी राज्य सरकारों को भेजा था, जिसमें कहा गया था कि केवट, मल्लाह जाति को मझवार में गिना जाए. इस संबंध में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को कुछ जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अधिसूचना भेजी थी. ऐसे में पिछले 70 सालों में निषादों को कभी एससी में शामिल किया गया, तो कभी पिछड़ा वर्ग में गिना गया. 

दिसंबर 2016 को तत्कालीन सपा सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के आरक्षण अधिनियम-1994 की धारा-13 में संशोधन कर केवट, बिंद, मल्लाह, नोनिया, मांझी, गौंड, निषाद, धीवर, बिंद, कहार, कश्यप, भर और राजभर को ओबीसी की श्रेणी से एससी में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था. केंद्र सरकार ने इसे न तो स्वीकार किया और न ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मुहर लगाई. इससे पहले मुलायम सिंह यादव ने भी 2007 चुनाव से पहले इन्हीं 17 जातियों को एससी में शामिल कराने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा था. 

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बीजेपी के गले की फांस कैसे बना आरक्षण मुद्दा

वहीं, 2022 चुनाव से ठीक पहले निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल कराने की मांग उठी है, वो बीजेपी की गले ही फांस बन गया है. बीजेपी सरकार निषाद समाज की जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का कदम उठाती है तो पहले से शामिल दलित जातियों की नाराजगी बढ़ सकती है. 

दलित समुदाय की तमाम जातियां जैसे पासी, बाल्मीकि, धोबी जो बीजेपी के वोटबैंक बन गए हैं.. ये इससे नाराज हो सकता है और बीजेपी अपना नुकसान कर लेगी. ऐसे में बीजेपी को चित और पट दोनों में नुकसान की संभावना, क्योंकि दलित समाज ये कैसे स्वीकार कर लेगा कि उसको मिलने वाला लाभ निषाद समुदाय के साथ बांटा जाए. इतना ही नहीं राजभर जैसी दूसरी अतिपिछड़ी जातियां भी एससी में शामिल होने की मांग तेज कर देंगी. इसीलिए केंद्र की मोदी सरकार बिहार में इससे कदम पीछे खींच चुकी है और यूपी में भी खामोशी अख्तियार कर रखा है. 

बीजेपी के लिए क्यों जरूरी है निषाद वोटर

हालांकि, बीजेपी पूर्वांचल में राजभर समाज के बाद निषादों का साथ नहीं छूटने देना चाहती है. इसलिए, संजय निषाद की चिट्‌ठी के बाद बैठकों का दौर जारी है. एक ही दिन में संजय निषाद से साथ बीजेपी नेताओं की 3 बैठकें की गईं. दो बैठक सीएम योगी के साथ हुईं. बात नहीं बनी तो फिर तीसरी बैठक कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के साथ की गई. संजय निषाद का दबाव है कि चुनाव से पहले आरक्षण की घोषणा की जाए. सपा के जातीय समीकरण को देखते हुए बीजेपी के लिए अब निषाद समाज की मांग को पूरा करने का दबाव बढ़ गया है. 

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उत्तर प्रदेश में निषाद समाज 5 फीसदी के करीब है, जो मल्लाह, मांझी, निषाद, धीवर, बिंद, कहार, कश्यप के नाम से जानी जाती है. निषाद वोटों के सियासी समीकरण और राजनीतिक ताकत को देखते हुए बीजेपी ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया है. डा. संजय निषाद ने निषाद समाज के आरक्षण की मांग को बीजेपी के पाले में डाल रखा है. यूपी के गोरखपुर, मऊ, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद, जौनपुर, फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर जिलों  में निषाद वोटर अहम भूमिका में है. 

उत्तर प्रदेश में जाति आधारित राजनीति करने वाली पार्टियों में से एक निषाद पार्टी भी है. यह पार्टी मुख्यरूप से निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, नोनिया, मांझी, गौंड जैसी करीब 17 जातियों का प्रतिनिधित्व करती है. पूर्वांचल की 60 सीटों पर खासा असर है जबकि सूबे की 160 सीटों पर निषाद समाज के वोटरों की संख्या चुनाव को प्रभावित करने वाली है. बीजेपी के लिए अब निषाद समाज आरक्षण की मांग गले की फांस बना है. 


 

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