उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले का नूरपुर क्षेत्र एशिया के सबसे सुंदर चर्च में से एक चर्च के लिए जाना जाता है. पानीपत-टनकपुर हाईवे पर बसे नूरपुर की सीमा अमरोहा, धामपुर से लगती है. यहां आने-जाने के लिए रोड कनेक्टिविटी है. शिक्षा की बात करें तो क्षेत्र में हाईस्कूल, इंटर और डिग्री कॉलेज से लेकर प्रोफेशनल कॉलेज तक हैं. बात अगर स्वास्थ्य की करें तो ये इलाका पिछड़ा है. उपचार के लिए लोगों को मुरादाबाद जाना पड़ता है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
नूरपुर विधानसभा सीट 1964 में अस्तित्व में आई थी. साल 1967 में पहली बार चुनाव हुआ था. 1976 में हुए परिसीमन के बाद इस सीट को समाप्त कर स्योहारा विधानसभा का गठन किया गया और इसके बाद 2008 में फिर से हुए परिसीमन में स्योहारा विधानसभा की जगह नूरपुर विधानसभा सीट को बहाल कर दिया था. 1967 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी रहे जबकि 1969 के चुनाव में भारतीय क्रांति दल के शिवनाथ सिंह विधायक बने. इसके बाद इस सीट का नाम स्योहारा विधानसभा हो गया. स्योहारा विधानसभा सीट पर अधिकतर बीजेपी का कब्जा रहा. साल 1991 में इस सीट पर बीजेपी के महावीर सिंह, 1993 में भी महावीर सिंह विधायक निर्वाचित हुए.
बीजेपी के डॉक्टर वेद प्रकाश ने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखा तो वहीं 2002 के चुनाव में ये सीट बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की झोली में चली गई. बसपा के कुतुबुद्दीन अंसारी विधायक निर्वाचित हुए तो वहीं साल 2007 के चुनाव में भी बसपा के ही टिकट पर ठाकुर यशपाल सिंह विधानसभा पहुंचे. यशपाल सिंह को मायावती ने अपनी सरकार में राज्यमंत्री भी बनाया. 2008 के परिसीमन के बाद फिर से इस सीट का नाम नूरपुर कर दिया गया. 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी के लोकेंद्र चौहान विजयी रहे थे. लोकेंद्र ने बसपा के मोहम्मद उस्मान चौधरी को पांच हजार वोट के अंतर से हराया.
2017 का जनादेश
नूरपुर विधानसभा सीट पर साल 2017 के चुनाव में भी बीजेपी ने लोकेंद्र सिंह को मैदान में उतारा. लोकेंद्र ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के नईमुल हसन को 13 हजार वोट के अंतर से हरा दिया. लोकेंद्र को 79 हजार से अधिक वोट मिले तो नईमुल हसन को करीब 66 हजार वोट मिले. लोकेंद्र सिंह चौहान की 21 फरवरी 2018 को लखनऊ जाते समय एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. साल 2018 में इस सीट के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी ने लोकेंद्र की पत्नी अवनी सिंह को उम्मीदवार बनाया. अवनी को लोकेंद्र को मिले 79 की तुलना में 10 हजार अधिक यानी 89 हजार से ज्यादा वोट मिले लेकिन बसपा के चुनाव मैदान में न उतरने का लाभ सपा को मिला. सपा उम्मीदवार नईमुल हसन ने करीब पांच हजार वोट से अधिक के अंतर से अवनी को शिकस्त दे दी.
सामाजिक ताना-बाना
नूरपुर विधानसभा सीट पर तीन लाख से अधिक वोटर हैं. इस सीट की गणना मुस्लिम बाहुल्य सीटों में होती है. मुस्लिम वोटरों के साथ ही चौहान, सैनी और दलित वोटर भी इस सीट पर निर्णायक स्थिति में हैं. यादव और जाट वोटर भी चुनाव का रुख तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
नूरपुर विधानसभा सीट से विधायक नईमुल हसन स्योहारा कस्बे के रहने वाले हैं और इनकी शुरुआती पढ़ाई भी स्थानीय स्तर पर ही हुई है. छात्रसंघ से राजनीतिक सफर का आगाज करने वाले नईमुल हसन साल 2000 में दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे थे.इनकी गिनती अखिलेश यादव के करीबी नेताओं में होती है.