यूपी के जालौन जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं. इन तीन सीटों में से एक विधानसभा सीट है उरई. उरई, जालौन जिले का मुख्यालय भी है और राजनीति के सारे समीकरण यहीं से तय होते हैं. जिला मुख्यालय होने के कारण यहां की आबादी सबसे ज्यादा है. इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो यहां कई ऐतिहासिक विरासतें हैं. उरई को प्राचीन काल में उद्दालक के नाम से जाना जाता था. इस नगरी को राजा माहिल की नगरी कहा जाता है.
उरई, अंग्रेजों के शासन काल में एक गांव हुआ करता था. अंग्रेजों ने व्यापार के उद्देश्य से उरई को छावनी में तब्दील किया. रेलवे ट्रैक होने की वजह से अंग्रेजों को व्यापार में सुविधा रहती थी. तकरीबन एक हजार साल पहले चंदेलकालीन शासन में राजा माहिल परिहार की राजधानी उरई हुआ करती थी. इसका प्रमाण वर्तमान में माहिल तालाब के रूप में मौजूद है.
ये भी पढ़ें- Kushinagar Assembly Seat: 1996 से है इस सीट पर BJP का कब्जा, 2022 में क्या होगा?
मुख्यालय होने की वजह से यहां सभी सरकारी ऑफिस है साथ ही प्राचीन मंदिर और दरगाह भी. उरई रेलवे स्टेशन के रसगुल्ले प्रसिद्ध हैं और इनकी ख्याति बॉलीवुड तक है. इसके साथ ही राजनीति की कई बड़ी हस्तियों के साथ देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी भी उरई के रसगुल्ले के प्रशंसक थे. जालौन जिले की उरई विधानसभा सीट क्षेत्रफल के लिहाज से जिले की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
उरई विधानसभा सीट के राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट 1952 के विधानसभा चुनाव से अस्तित्व में है. तब इसका नाम उरई-जालौन विधानसभा सीट हुआ करता था. नए परिसीमन के बाद साल 2012 के चुनाव में कोंच (सुरक्षित) विधानसभा सीट का अस्तित्व खत्म होने के बाद ये सीट आरक्षित हो गई. इस सीट से सबसे अधिक चार बार कांग्रेस पार्टी के पंडित चतुर्भुज शर्मा यहां से विधायक निर्वाचित हुए.
ये भी पढ़ें- Sultanpur Assembly Seat: मंदिर आंदोलन के बाद बन गया बीजेपी का गढ़, 2022 में क्या होगा?
उरई विधानसभा सीट के आरक्षित होने के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार दयाशंकर वर्मा विधानसभा पहुंचे. सपा के दयाशंकर ने बसपा के सतेंद्र प्रताप को सात हजार से अधिक वोट के अंतर से हराया था. सपा के लिए इस सीट से 2012 की जीत, पहली जीत थी. उरई विधानसभा क्षेत्र से आने वाले कद्दावर नेताओं में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह का नाम भी शामिल है. सपा के पूर्व प्रदेश सचिव प्रदीप दीक्षित और पूर्व विधायक विनोद चतुर्वेदी की गिनती भी उरई के कद्दावर नेताओं में होती है.
2017 का जनादेश
उरई विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने गौरीशंकर वर्मा को टिकट दिया था. गौरीशंकर वर्मा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के महेंद्र सिंह कठेरिया को करीब 80 हजार वोट के अंतर से हरा दिया था. गौरीशंकर को 1 लाख 40 हजार 485 वोट मिले थे. दूसरे स्थान पर रहे सपा के महेंद्र को 61 हजार 606 वोट मिले थे.
सामाजिक समीकरण
उरई विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में अनुमानों के मुताबिक अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता है. इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, वैश्य और पिछड़े वर्ग के मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं. मुस्लिम और क्षत्रिय मतदाता भी इस सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
उरई विधानसभा सीट से विधायक गौरीशंकर वर्मा क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने का दावा करते हैं. बीजेपी नेताओं का भी दावा है कि जितना काम गौरीशंकर के विधायक रहते हुआ है, उतना कार्य पहले कभी नहीं हुआ. हालांकि, विरोधी दलों के नेता और लोग कह रहे हैं कि इलाके की समस्याएं जस का तस हैं.