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UP election: क्या परशुराम का फरसा उठाकर ब्राह्मणों को रिझा पाएंगे अखिलेश यादव?

अखिलेश यादव (Akhilesh yadav) ने एक हाथ में भगवान परशुराम का फरसा तो दूसरे हाथ में भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र को लेकर ब्राह्मण समाज से सपा की सरकार बनाने का आह्वान किया. साथ ही पूर्वांचल के ठाकुर बाहुबलियों (UP bahubali) के नाम लिए बगैर इशारों-इशारों में बीजेपी की योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करने से भी वो नहीं चूके.

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव
सपा प्रमुख अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूप में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीतिक बिसात
  • ठाकुर माफियाओं के बहाने बीजेपी को घेर रही सपा
  • पूर्वांचल में बीजेपी के लिए बढ़ा सकती चुनावी मुश्किल

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से नाराज माने जा रहे ब्राह्मणों को सपा प्रमुख अखिलेश यादव साधने में जुट गए हैं. ऐसे में राजधानी लखनऊ के गोसाईगंज क्षेत्र में लगाई गई भगवान परशुराम मूर्ति और 68 फीट उंचे फरसे का अखिलेश ने रविवार को अनावरण किया. इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्होंने परशुराम की पूजा अर्चना की और आशीर्वाद लेकर चुनावी बिगुल फूंका. 

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अखिलेश यादव ने एक हाथ में भगवान परशुराम का फरसा तो दूसरे हाथ में भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र को लेकर ब्राह्मण समाज से सपा की सरकार बनाने का आह्वान किया. साथ ही पूर्वांचल के ठाकुर बाहुबलियों के नाम लिए बगैर इशारों-इशारों में बीजेपी की योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करने से भी वो नहीं चूके. भगवान परशुराम के बहाने अखिलेश जिस तरह से सूबे में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की सियासी बिसात बिछा रहे हैं, उससे बीजेपी कैसे पार पाएगी? 

अखिलेश ने परशुराम की मूर्ती का अनावरण किया

भगवान परशुराम की मूर्ति का अनावरण करने के बाद अखिलेश ने ब्राह्मण समाज से कहा है कि सूबे में सपा की सरकार आने पर भगवान परशुराम जयंती की छुट्टी फिर बहाल की जाएगी, जिसे बीजेपी ने सरकार में आते ही खत्म कर दिया था. साथ ही उन्होंने कहा कि ब्राह्मण समाज भगवान परशुराम को पूजता है. इतिहास गवाह है कि ब्राह्मण समाज जिस पार्टी के साथ रहता है, उसकी सरकार बनती है और इस बार ब्राह्मणों ने तय कर लिया है कि समाजवादी पार्टी के साथ रहना है और सरकार बनानी है, तो हमारी सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता. 

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भगवान परशुराम की मूर्ती के सामने अखिलेश यादव

भगवान परशुराम की मूर्ति की स्थापना और मंदिर के सामने फरसा लगवाने वाले सपा के नेता व पूर्व विधायक संतोष पाण्डेय ने कहा कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भगवान परशुराम के दर्शन करने यहां पहुंचे. ब्राह्मण समाज के साथ प्रदेश के सभी समाज बहुत खुश हैं कि लखनऊ में भगवान परशुराम का दिव्य मंदिर बना है. ऐसे में निश्चित तौर पर यूपी का ब्राह्मण समाज 2022 के चुनाव में सपा के पक्ष में एक तरफा वोट करेगा, क्योंकि बीजेपी ने ब्राह्मणों को ठगने का काम किया है. 

बीजेपी को अखिलेश ने किन माफियाओं के बहाने घेरा?

वहीं, अखिलेश यादव भगवान परशुराम के बहाने ब्राह्मण को सियासी हवा देने से भी नहीं चूके. उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा अगर अपराधी और माफिया किसी पार्टी में हैं तो बीजेपी में हैं. हमारे बाबा मुख्यमंत्री अभी तक माफियाओं की सूची जारी नहीं कर पाए. अखिलेश ने आजतक से कहा कि मेरा सवाल ये है कि माफियाओं की लिस्ट क्यूं नहीं जारी हो रही? 

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि बनारस, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर का माफिया कौन है? भदोही से लेकर सोनभद्र और गाजीपुर तक कौन माफिया है और सरकार न तो उनकी लिस्ट जारी कर रही है और न ही उन पर कोई कार्रवाई. यही वजह है कि उत्तर-प्रदेश के कई ऐसी घटनाओं को मैं गिना सकता हूं, जिसमें सरकार और प्रशासन से कोई न्याय नहीं मिला. 

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पूर्वांचल के इन माफियाओं पर खड़े हो रहे सवाल

दरअसल, अखिलेश यादव परशुराम की मूर्ती अनावरण के बाद पूर्वांचल के जिन माफिया और बाहुबली के तरफ इशारा कर बीजेपी को कठघरे में खड़े कर रहे हैं. वो सभी माफिया एक जाति विशेष से आते हैं. हालांकि, अखिलेश ने इनका न तो नाम लिया और न ही जाति का जिक्र किया, लेकिन इशारों-इशारों में संकेत जरूर दे गए. अखिलेश से पहले भी पूर्वांचल के कई सपा नेता व उनके सहयोगी भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भी इन्हीं माफियाओं और बाहुबलियों को लेकर बीजेपी और योगी सरकार को घेरने में जुटे हैं. 

सपा प्रवक्ता मनोज सिंह धूपचंदी ने आजतक पंचायत कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सबसे बड़ा जातिवादी बताते हुए कहा था कि दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के घर पर तो बुल्डोजर चलते हैं, लेकिन योगी की जाति वाले माफियाओं पर बुल्डोजर नहीं चलते हैं? यूपी के टॉप माफिया आज सारे के सारे बीजेपी में हैं. इसीलिए सीएम योगी यूपी के माफियाओं की लिस्ट नहीं जारी कर रहे हैं. जौनपुर, मिर्जापुर, चंदौली और गाजीपुर से लेकर बनारस तक देख लीजिए कौन सी जाति के माफिया हैं. योगी अपने जाति वाले इन माफियाओं के घरों पर बुल्डोजर नहीं चलवाते हैं. 

ब्रजेश सिंह से लेकर विनीत सिंह तक निशाने पर 

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मनोज धूपचंदी ने गाजीपुर में बाहुबली नेता चंचल सिंह का तो बकायदा नाम लेकर बताया था कि योगी सरकार ने सिर्फ इसीलिए उनके खिलाफ एक्शन नहीं लिया, क्योंकि वो उनकी जाति से आते हैं. अखिलेश यादव का इशारा भी गाजीपुर के इसी चंचल सिंह की ओर था तो जौनपुर के माफिया का संकेत धनजंय सिंह पर था, जिस पर कई बड़े आरोप होने के बाद भी योगी सरकार ने किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की है. 

वहीं, वाराणसी के माफिया का इशारा ब्रजेश सिंह की तरफ था. ऐसे ही मिर्जापुर और भदोही के माफिया को विनीत सिंह से जोड़कर देखा जा रहा है. प्रतापगढ़ में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया तो अयोध्या में अभय सिंह हैं. पूर्वांचल के यह सभी माफिया ठाकुर समाज से आते हैं, जिन पर विजय मिश्रा, मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे बाहुबलियों की तुलना में योगी सरकार ने कोई कड़ा कदम नहीं उठाया है. 

योगी सरकार क्यों नहीं जारी कर माफियाओं की लिस्ट?

सीएम योगी आदित्यनाथ भी ठाकुर समाज से आते हैं. इसीलिए विपक्षी पार्टियां खासकर सपा ने अब 2022 के चुनाव को देखते हुए इन माफियाओं के बहाने बीजेपी और योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. साथ ही इशारों-इशारों में यह भी बता रही है कि योगी सरकार में ठाकुर माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है. अखिलेश ने कहा कि आप आंकड़े उठाकर निकाल लो और अखबारों में पढ़िए अगर आज कहीं खुले में माफिया घूम रहे हैं तो वह भारतीय जनता पार्टी की देन है. 

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पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की सियासत जगजाहिर है. ऐसे में योगी और बीजेपी को घेरने के लिए सपा और उनके सहयोगी दल इसे ही सबसे बड़े सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. माना जा सकता है कि इससे अखिलेश यादव ब्राह्मण वोट बैंक पर फोकस कर रहे हैं, क्योंकि यूपी में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण आबादी है. ब्राह्मणों को साधकर पूर्वांचल में यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण, राजभर और अतिपिछड़ी जातियों के सहारे सत्ता में वापसी करने का प्लान है.

यूपी की सियासत में ब्राह्मण की संख्या ठाकुर समाज के वोटों से ज्यादा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समुदाय ने बीजेपी को एकमुश्त होकर वोट दिए थे, लेकिन सत्ता में आने पर पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को सीएम की कुर्सी सौंप दी थी. ऐसे में अब 2022 के चुनाव से ठीक पहले ब्राह्मण को साधने के लिए सपा से लेकर बसपा तक जुटी हैं तो बीजेपी भी उन्हें अपने साथ जोड़े रखने की कवायद में एक कमेटी गठित की है.  ऐसे में देखना है कि ठाकुर बनाम ब्राह्मण की राजनीति में क्या सियासी फायदा किसे मिलता है? 

 

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