scorecardresearch
 

Pilibhit Assembly Seat: सपा के गढ़ में सीट बचा पाएगी बीजेपी?

पीलीभीत विधानसभा सीट से साल 2017 में सपा के हाजी रियाज जीत का चौका नहीं लगा सके. बीजेपी के संजय सिंह गंगवार ने लगातार चौथी विजय तलाश रहे हाजी रियाज को शिकस्त दे दी.

Advertisement
X
यूपी Assembly Election 2022 फाजिलनगर विधानसभा सीट
यूपी Assembly Election 2022 फाजिलनगर विधानसभा सीट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हाजी रियाज अहमद का गढ़ रही है पीलीभीत सीट
  • सपा में हैं विधानसभा चुनाव में टिकट के कई दावेदार 

उत्तर प्रदेश की पीलीभीत विधानसभा सीट बांसुरी उद्योग के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इस बांसुरी नगरी का नाम पीलीभीत कैसे पड़ा, इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. पुराने लोगों ने बताया कि इस शहर का नाम पीलीभीत यहां की पीली मिट्टी के कारण रखा गया. पीली का मतलब पीला और भीत का मतलब मिट्टी की दीवार, पीली मिट्टी की दीवार. लोगों का कहना है कि यहां एक बहुत लंबी पीली मिट्टी की दीवार थी इसलिए पीलीभीत नाम चलन में आया.

Advertisement

पीलीभीत, बरेली जिले का हिस्सा था. साल 1879 में पीलीभीत जिला बना. जिला गठन के बाद इसका मुख्यालय और मुख्य शहर पीलीभीत हो गया. पीलीभीत की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. शहर की सीमा एक तरफ उत्तराखंड राज्य से जुड़ी है तो दूसरी तरफ बरेली से. पीलीभीत के बाघ भी देश-विदेश में अलग पहचान रखते हैं. इसलिए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पूरे शहर में बांसुरी, गन्ना और बाघ के प्रतीक लगे हैं जो शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. धार्मिक दृष्टिकोण से बात करें तो ये सभी धर्म के लिए विशेष शहर है. शहर में मुस्लिमों की आस्था का केंद्र पवित्र तीर्थ स्थल हजरत शाहजी मोहम्मद शेर मियां की दरगाह है जहां देश-विदेश से मुस्लिम आते हैं. 450 साल से भी ज्यादा पुराना गौरी शंकर मंदिर है तो वह गुरुद्वारा भी जहां गुरु गोविंद सिंह ने विश्राम किया था.

Advertisement

ये भी पढ़ें- Saharanpur Nagar Assembly Seat: कई मायनों में है खास, BJP को वापसी की आस

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे पूर्व मंत्री मरहूम हाजी रियाज अहमद का गढ़ कहीं जाने वाली शहर विधानसभा सीट से इस बार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा समाजवादी पार्टी में टिकट के दावेदार हैं. सपा के टिकट को लेकर घमासान मचा है. अब तक करीब डेढ़ दर्जन प्रत्याशी टिकट के लिए आवेदन कर चुके हैं. दूसरी ओर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में भी प्रत्याशियों की संख्या बढ रही है. शहर विधायक संजय सिंह गंगवार के साथ ही पूर्व जिला अध्यक्ष राकेश गुप्ता और सत्य पाल गंगवार के नाम भी बीजेपी से टिकट के दावेदारों की सूची में हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

पीलीभीत विधानसभा सीट को पहला विधायक दूसरे विधानसभा चुनाव में मिला यानी सन 1957 में. तब कांग्रेस के निरंजन सिंह जीते थे. 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस के ही रामरूप सिंह विधायक बने. इसके बाद 1967 में जनसंघ के बाबूराम विधायक बन गए. 1969 में फिर कांग्रेस ने वापसी की और अली अजहर विधायक बने. साल 1974 में भारतीय क्रांति दल और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर धीरेंद्र सहाय निर्वाचित हुए. 1980 में कांग्रेस (ई) ने वापसी की और विधायक बने चरणजीत सिंह. 1985 में भी कांग्रेस का बोलबाला रहा और सैयद अली अशर्फी विधायक बने.

Advertisement

ये भी पढ़ें- Lakhimpur Kheri Assembly Seat: मोदी लहर में बीजेपी के खाते में गई सीट, सपा से है मुकाबला

साल 1989 में संजय गांधी के करीबी रहे रियाज अहमद निर्दलीय विधायक बने. 1991 में बीजेपी से बीके गुप्ता निर्वाचित हुए. साल 1993 में भी बीके गुप्ता, साल 1996 में बीजेपी के राज राय सिंह, साल 2002 से 2012 तक तीन विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर हाजी रियाज अहमद ने चुनाव लड़ा और विजयी भी रहे.

2017 का जनादेश

पीलीभीत विधानसभा सीट से साल 2017 में सपा के हाजी रियाज जीत का चौका नहीं लगा सके. बीजेपी के संजय सिंह गंगवार ने लगातार चौथी विजय तलाश रहे हाजी रियाज को शिकस्त दे दी. साल 2022 में संजय सिंह गंगवार इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने की कोशिश में हैं वहीं सपा खोई सीट पाने के लिए पूरा जोर लगा रही है. हालांकि, पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा. इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी को अपनी पहली जीत की तलाश है.

सामाजिक ताना-बाना

पीलीभीत विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य सीट है. अनुमानों के मुताबिक पीलीभीत विधानसभा क्षेत्र में करीब चार लाख वोटर्स हैं. इनमें 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. इस क्षेत्र में हाजी रियाज अहमद का दबदबा था लेकिन कोरोना काल में उनका इंतकाल हो गया. हाजी रियाज की बेटी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रूकैया आरिफ का भी कोरोना के कारण निधन हो गया था. अब रियाज के पुत्र शाने अली और दामाद मोहम्मद आरिफ में विरासत की जंग चल रही है. पुराने नेताओं की बात करें तो गांधी परिवार से आने वाली मेनका गांधी और वरुण गांधी की यहां की सियासत पर मजबूत पकड़ है.

Advertisement

विधायक का रिपोर्ट कार्ड

बीजेपी विधायक 46 साल के संजय सिंह गंगवार ने लखीमपुर से बीएससी तक की पढ़ाई की है. संजय सिंह गंगवार के दो छोटे भाई हैं. विधायक से छोटे विजय सिंह गंगवार व्यवसाय करते हैं और विधायक का पूरा काम भी देखते हैं. वहीं सबसे छोटे भाई अजय सिंह गंगवार इस बार निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित हुए हैं. विधायक के पिता बाबूराम गंगवार मझौला चीनी मिल में कर्मचारी थे. संजय गंगवार BSNL और रेलवे में ठेकेदारी करते थे. ठेकेदारी के काम के सिलसिले में नेताओ में मिलना जुलना शुरू हुआ और 2005 में मरौरी से ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित होकर सियासी पारी का आगाज किया. तेज तर्रार छवि के चलते जिले और मंडल के बड़े नेताओं में अच्छी पैठ बना ली और 2012 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर पीलीभीत सीट से विधानसभा चुनाव लड़ गए लेकिन हार मिली. गंगवार इसके बाद बीजेपी में शामिल हो गए और 2017 का चुनाव कमल निशान पर लड़ा और इसबार विजय मिली.

ये भी पढ़ें- Naraini Assembly Seat: सभी पार्टियों को मिला मौका फिर भी विकास के लिए तरस रहा क्षेत्र

संजय सिंह गंगवार की अपनी बिरादरी कुर्मी बिरादरी पर अच्छी पकड़ है. कुर्मी बिरादरी के मतदाताओं की तादाद भी यहां अच्छी संख्या में है. उन्होंने चार साल में 5 करोड़ 11 लाख 75 रुपये की विधायक निधि में से साढ़े चार करोड़ रुपये के खर्च का हिसाब सार्वजनिक कर दिया है. विधायक मेडिकल कॉलेज की स्थापना, खमीरा फैक्ट्री के निर्माण को अपनी उपलब्धि बता रहे हैं.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement