जल-जंगल-जमीन से भरा पीलीभीत जिला कई बातों के लिए स्पेशल है- जैसे बाघ, बांसुरी, बासमती चावल. वहीं राजनीति की बात करें तो यहां 3 दशकों से अधिक समय से गांधी परिवार राज कर रहा है या यूं कहे कि राजनीति में इस जिले को उस समय पहचान मिली, जब गांधी परिवार ने यहां दस्तक दी. पीलीभीत की सीमाएं उत्तरखंड और नेपाल से सटी हैं. गोमती नदी का उद्गम स्थल भी यही है.
पीली+भीत.. पीली का मतलब पीला रंग व भीत का मतलब दीवार यानी पीली रंग की दीवार. यहां एक लंबी पीली दीवार थी, जिसके नाम पर पीलीभीत नाम चलन में आया. 1879 में बरेली मंडल से अलग करके इसे नया जिला बनाया गया था. यहां के पूरनपुर क्षेत्र को मिनी पंजाब भी कहा जाता है. यहां के सिख किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे थे. जिले में 5 तहसील पीलीभीत, बीसलपुर, पूरनपुर, कलीनगर, अमरिया है.
सामाजित-आर्थिक तानाबाना
पीलीभीत जिले की कुल आबादी लगभग 23 लाख 45 हजार है. यहां हिन्दू 75 फीसदी, मुस्लिम 25 फीसदी और सिख 5 फीसदी के पास पास हैं. यहां लोध, राजपूत, पासी, कुर्मी वोटरों की संख्या अधिक है. पीलीभीत की अर्थव्यवस्था कृषि पर टिकी है. यहां गन्ना, धान, गेहूं मुख्यता पैदा किया जाता है. बांसुरी, बीड़ी, चटाई, फर्नीचर का व्यापार भी किया जाता है. यहां की आर्थिक स्थिति को सुधारने में यहां के पर्यटन क्षेत्रों का भी अहम योगदान है. पीलीभीत टाइगर रिज़र्व घूमने के लिये देश विदेश से पर्यटक आते है. वन सम्पदा भी यहां की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है.
राजनीतिक इतिहास
पूरनपुर सीट: वैसे तो इस सीट का लंबा राजनीतिक इतिहास है, लेकिन 1991 के बाद यह सीट काफी चर्चा में आई थी. 1991 में राममंदिर लहर में प्रमोद कुमार (मुन्नू) बीजेपी से जीते. राम मंदिर मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के साथ-साथ प्रमोद कुमार पर भी रासुका लगाई गई थी. 1993 में मेनका गांधी ने इस सीट पर अपने भाई वीएम सिंह को जनता दल पार्टी से उतारा और वह विधायक बने. 1996 में सपा के गोपाल कृष्ण जीत कर आए. 2002 में डॉ. विनोद तिवारी तीसरी बार जीते. इस बार वह बीजेपी से लड़े और जीत कर सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री बने. 2007 में अरशद खान बसपा से जीत कर आए. 2012 में सीट आरक्षित हो गई. इस बार सपा से पीतमराम जीते. पीतमराम ने बीजेपी के बाबू राम पासवान को चुनाव में हराया. वहीं 2017 में बीजेपी से फिर बाबूराम ने बदला लेते हुए पीतमराम को हराया.
बरखेड़ा सीट: यह सीट साल 1967 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई. 1967 में इस सीट के लिए पहली दफा विधानसभा चुनाव हुआ और जनसंघ के किशोरी लाल जीते. जनसंघ के किशोरी लाल 1967 के साथ ही 1969 और 1974 में भी विजयी रहे. 1977 में किशोरी लाल ने जीत का चौका लगाया, लेकिन इस बार पार्टी थी जनता दल.
1980 में कांग्रेस (आई) के बाबू राम, 1985-1991 और 1993 में बीजेपी के किशन लाल, 1989 में निर्दलीय सन्नू लाल, 1996 और 2002 में सपा के पीतम राम, 2007 में बीजेपी के सुखलाल जीते. 2012 में इस विधानसभा सीट से फिर सपा के उम्मीदवार को जीत मिली. बरखेड़ा विधानसभा सीट से सपा के हेमराज वर्मा जीते और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री भी बने. 2017 में बीजेपी के टिकट पर उतरे किशन लाल राजपूत ने निवर्तमान विधायक सपा के हेमराज वर्मा को करीब 58 हजार वोट के बड़े अंतर से हरा दिया था. वह भी तब, जब 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार रहे स्वामी प्रवक्तानंद ने बगावत कर राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) से चुनाव लड़ा था. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर उतरे जिले के सबसे बड़े सर्जन डॉक्टर शैलेंद्र गंगवार तीसरे स्थान पर रहे थे.
पीलीभीत सीट: इस सीट का लंबा राजनीतिक इतिहास है, लेकिन 1989 में संजय गांधी के करीब रहे रियाज अहमद के निर्दलीय विधायक बनने के बाद यह सीट चर्चा में आई. इसके बाद 1991 में बीजेपी से बीके गुप्ता जीते, 1993 में भी बीके गुप्ता ही विधायक बने. 1996 में बीजेपी से राज राय सिंह विधायक बने. इसके बाद 2002, 2007, 2012 तीनों विधानसभा चुनाव सपा से हाजी रियाज अहमद लड़े और जीते. 2017 में बीजेपी के संजय सिंह गंगवार ने लगातार चौथी बार हाजी रियाज को विधायक बनने से रोक दिया और मौजूदा समय में विधायक हैं.
बीसलपुर सीट: 1991 और 1993 के चुनाव में बीजेपी से राम शरण वर्मा जीते. उसके बाद बहुजन समाज पार्टी से मायावती का आशीर्वाद लेकर 1996 में अनीश अहमद फूल बाबू मैदान में उतरे और विधायक बने. 2002 में भी बसपा से अनीश अहमद उर्फ फूल बाबू ने चुनाव लड़ा और विधायक बने. 2007 में भी फूल बाबू बीएसपी से उतरे और जीते. 2012 और 2017 में बीजेपी के टिकट पर रामशरण वर्मा जीते.
सभी सीटों की समीकरण
पीलीभीत सीट: मौजूदा समय में बीजेपी के संजय सिंह गंगवार विधायक हैं. इस सीट पर कुर्मी वोटरों की संख्या अच्छी-खासी है. यहां कुर्मी वोट करीब 70 हजार के आसपास है. वहीं मुस्लमी वोट 1 लाख 40 हजार के आसपास है. ऐसे में मुस्लिम और कुर्मी वोटर ही चुनाव की जीत-हार तय करते हैं. यहां सपा और बीजेपी में ही हमेशा टक्कर रहती है.
बरखेड़ा सीट: यहां से बीजेपी के किशन लाल राजपूत विधयाक हैं, जिन्होंने बीजेपी को बरेली मंडल में सबसे जीत दिलाई थी. यह विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है. इस बार भी यहां टक्कर बीजेपी और सपा के बीच रहेगी. बरखेड़ा में मुस्लिम 50 हजार के आसपास है. वहीं लोध, किसान राजपूत 1 लाख 10 हजार हैं.
बीसलपुर सीट: मौजूदा समय में इस सीट से बीजेपी के रामशरण वर्मा विधायक हैं. यहां पार्टी की नहीं, दो प्रत्याशियों में लड़ाई होती है. राम शरण वर्मा और अनीश अहमद उर्फ फूल बाबू में जोरदार टक्कर होती रही है. यहां मुस्लिम 65 हजार, कुर्मी 45 हजार, कश्यप 28 हजार के आसपास हैं.
पूरनपुर सीट: इस सीट से बीजेपी के बाबू राम पासवान विधायक हैं. इस सीट पर पासी वोट 70 हजार के आसपास है. इसके अलावा इस सीट पर मुस्लिम वोट भी 70 हजार के आसपास है. इस सीट पर बीजेपी और सपा के बीच टक्कर हो सकती है.