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वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस लोकसभा से चुनाव लड़ते वक्त इसलिए सुर्खियों में आए थे, क्योंकि उन्होंने अपना बचपन चाय बेचकर गुजारा था. तभी से उनको चाय वाला पीएम भी कहा जाने लगा और आज यही चाय वाला प्रधानमंत्री अपने संसदीय क्षेत्र की एक मशहूर चाय की दुकान 'पप्पू की अड़ी' पर पहुंचकर किसी आम इंसान की तरह बैठकर एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार चाय पी. इस दुकान की दूसरी पीढ़ी बुजुर्ग विश्वनाथ सिंह 'पप्पू' अस्वस्थता की वजह से दुकान पर तो नहीं आ सके, लेकिन आजतक से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि 2019 से किया जा रहा है इंतजार आज जाकर खत्म हुआ है और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है. दुकान पर मौजूद पप्पू के बेटे के मुताबिक चाय के बदले पीएम मोदी से आशीर्वाद मिला और चाय के पैसे केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने चुकाया.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने दो दिवसीय चुनावी दौरे की शुरुआत शहर के मलदहिया इलाके में स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति पर माल्यार्पण से की. इसके बाद लगभग 3 किलोमीटर का रोड शो विश्वनाथ धाम पर आकर खत्म हुआ और पीएम मोदी ने विधिवत बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन किया. अगले तय कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बगैर रोड शो के कार में सवार होकर लंका इलाके में स्थित बीएचयू गेट के बाहर पंडित मदन मोहन मालवीय की मूर्ति पर पहुंचकर माल्यार्पण किया. इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि सभी चौंक गए.
लकड़ी की मेज पर बैठकर पीएम मोदी ने पी चाय
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोनारपुरा और भदैनी का इलाका क्रॉस करते हुए जैसे ही अपने काफिले के साथ आगे बढ़े. थोड़ी देर में ही काफिला अस्सी इलाके में स्थित मशहूर चाय की दुकान 'पप्पू चाय की अड़ी' पर रूक गया. फिर क्या था वहां पहले से मौजूद केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत किया और फिर पीएम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाय की दुकान में पहुंचकर किसी आम इंसान की तरह वहां मौजूद अन्य चाय के अड़ीबाजों के साथ लकड़ी की मेज पर बैठकर चाय पी.
मशहूर चाय की दुकान जिस शख्स के नाम पर पड़ा है, वे हैं विश्वनाथ सिंह 'पप्पू. अस्वस्थता के चलते पप्पू सिंह दुकान पर नहीं थे, लेकिन उनके चारों बेटे दुकान पर मौजूद थे. विश्वनाथ सिंह के बेटे अशोक सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग 15 मिनट उनकी दुकान पर थे और एक दो बार नहीं बल्कि 3 बार चाय पी. पहली चाय खत्म होने के बाद उन्होंने दोबारा मांग कर चाय पी और तीसरी चाय उन्होंने उस वक्त पी जब वे जाने लगे थे. अशोक सिंह ने बताया कि 15 मिनट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी दुकान के बारे में उनसे जानकारी ली और विश्वनाथ कॉरिडोर की भी चर्चा सभी से करते रहे.
वहीं आजतक से खास बातचीत में 70 साल के विश्वनाथ सिंह 'पप्पू' ने टेलीफोन के जरिए बताया कि आज जाकर 3 साल लंबा इंतजार खत्म हुआ, जब पीएम मोदी ने उनकी दुकान पर चाय पी. पप्पू सिंह ने बताया कि उनकी मुलाकात 2019 में प्रधानमंत्री के वाराणसी आगमन पर कैंसर अस्पताल के उद्घाटन के समय हुई थी. उन्होंने बताया कि एक चायवाले प्रधानमंत्री ने दूसरे चायवाले की दुकान पर चाय पी है, ये मेरे लिए गर्व और खुशी की बात है. उन्होंने बताया कि वे अस्वस्थ होने के चलते दुकान नहीं जा पाते. उनका दूसरे नंबर वाला बेटा मनोज चाय की दुकान संभालता है.
दरअसल, विश्वनाथ सिंह को प्यार से लोग पप्पू कहते हैं. इसलिए विश्वनाथ नाम के आगे पप्पू लगाने लगे. फिर उनके दुकान का नाम भी पप्पू की अड़ी हो गया. वे बताते हैं कि उनके पिता मिलिट्री से छुट्टी लेकर 1948 में आए थे और फिर वापस नहीं गए. उन्होंने ही शहर के अस्सी इलाके में चाय की दुकान खोल ली. वे बताते हैं कि 1948-1975 तक पिताजी ने दुकान संभाली. फिर 1975-2011 तक उन्होंने दुकान संभाली. अब तीसरी पीढ़ी दुकान चला रही है. उनके रहते उनकी चाय की दुकान पर जार्ज फर्नांडिस तक ने बनारस की मीडिया से पत्रकार वार्ता की है. उनके अलावा कलराज मिश्रा खुद तीन बार दुकान पर बैठकर चाय पी चुके हैं.
विश्वनाथ सिंह ने बताया कि BHU में मनोज सिन्हा छात्र जीवन में आते रहते थे. भदैनी पर ही डाॅक्टर महेंद्रनाथ पांडेय रहते थे. वे भी अक्सर आते-जाते चाय पीते थे. बिहार के मंत्री लालमणी मिश्रा भी शाम को चाय पीने आते थे. उन्होंने बताया कि उनकी चाय की अड़ी पर सभी लोग अपनी बात रखते हैं. तू-तू मैं-मैं भी होती है, लेकिन कभी हाथापाई की नौबत नहीं आई. BHU छात्रसंघ के जीतने भी अध्यक्ष हुए उनका आना-जाना होता था. राजनीति में समाजवादी विचारधारा के लोग अक्सर उनकी चाय की दुकान पर आते थे. लेखक काशीनाथ सिंह की किताब 'देख तमाशा लकड़ी का' में उनकी दुकान का खास तौर पर जिक्र है. उनकी चाय की दुकान पर ही मोहल्ला अस्सी को भी काशीनाथ सिंह ने लिखा जिस पर फिल्म भी बनी.
चाय दुकान के फेमस होने का कारण भी बताया...
उन्होंने आगे बताया कि उनके चाय की दुकान को मशहूर होने के पीछे वजह उनके यहां की ताजा चाय है. एक प्याली चाय भी उनके यहां तुरंत तैयार करके मिलती है, जबकि अन्य चाय की दुकानों पर केतली में रखकर चाय बेचते हैं. उनके यहां चाय को बनाने की खास विधि उनके पिता मिलिट्री से लेकर आए थे. कई लोगों ने काॅपी भी किया, लेकिन सफल नहीं हो सके. उन्होंने बताया कि अब चाय की दुकान तीसरी पीढ़ी चला रही है, लेकिन चौथी पीढ़ी की कोई उम्मीद नहीं लग रही है. पढ़ने वाले बच्चे चाय बेचने में रुचि नहीं रखते हैं. वे चाहते है कि कोई एक लड़का उनकी पुरानी चाय की दुकान जरूर चलाए. पप्पू ने बताया कि उनकी चाय की दुकान पर केजरीवाल उनकी पूरी टीम आकर चाय पीती थी. राहुल गांधी भी रोड शो के दौरान उनकी दुकान पर चाय पी चुके हैं. वे चाहते थे कि एक बार मोदीजी भी अपने रोड शो के दौरान उनकी दुकान पर रूककर चाय पी लें, अब ये हसरत भी पूरी हो गई है.
आपको बता दें कि बीएचयू के नजदीक 7 दशक से भी पुरानी पप्पू चाय की अड़ी पर BHU के प्रोफेसर, पत्रकार, लेखन, कवि, छात्र, साहित्यकार और एक आम इंसान भी जुटकर चाय की चुस्कियों के साथ तर्क-वितर्क करते दिख जाएंगे. इस बारे में और जानकारी देते हुए बीएचयू के प्रोफेसर रामाज्ञा शशिधर ने बताया कि 'पप्पू की अड़ी' पूर्वी उत्तर-प्रदेश और बिहार की संसद है. यहां विचारों का लोकतंत्र है. इस अड़ी पर ज्यादा से ज्यादा बौद्धिक लोग बैठते हैं. इस अड़ी पर काशीनाथ सिंह ने काशी का अस्सी लिखी और मोहल्ला अस्सी फिल्म भी बनी. कोलकाता में ऐसी अड़ियों को अड्डा कहा जाता है. जिस तरह से गांव में चौपाल लगा करते थे, उसी का विकसित रूप अड़ी है. सुदामा पांडेय 'धूमिल' ने संसद से सड़क नाम से किताब इसी अड़ी को केंद्रित करते हुए लिखी.
BHU के ही दूसरे प्रोफेसर देवव्रत चौबे बताते हैं कि 'पप्पू की अड़ी' पर सपा और भाजपा के लोग ही ज्यादा आते थे. यहां राजनैतिक के अलावा संगीतकार, लेखक और साहित्यकार भी आते हैं. वहीं वरिष्ठ पत्रकार बृजेश बताते हैं कि उनके पिता पहले पप्पू की अड़ी पर चाय पीने आते थे और उनको बहस देखकर जिज्ञासा होती थी. उस वक्त सामाजिक क्रांति के जनक यहां आते थे. पप्पू चाय की अड़ी पर चाय बनाने की अलग शैली में प्रेम और बनारस का रस घुलकर मिलता है और उसी दौरान विचारों की क्रांति जन्म लेती है. यह अड़ी मानवता की भी एक मिसाल है. वहीं BHU के रिसर्च के स्टूडेंट और समाजसेवी मनीष बताते हैं कि अन्य अड़ी से विचारों का मनभेद होता है, लेकिन इस अड़ी पर मतभेद होता है. अगर कुछ सीखना है तो इसी अड़ी पर नि:शुल्क सीख सकते हैं.
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