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कृषि कानून रद्द: PM मोदी के ऐलान के बाद कितने बदलेंगे पश्चिमी UP के सियासी समीकरण

किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वापसी की राह में सबसे बड़ी मुश्किलें खड़ी कर रहा था. ऐसे में पीएम मोदी ने अब तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर बीजेपी की वापसी के रास्ते से सिर्फ रोड़े ही नहीं हटाए बल्कि पश्चिम यूपी में विपक्षी दलों की रणनीति पर गहरी चोट की है. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कृषि कानून को पीएम मोदी ने वापस ले लिया
  • पश्चिम यूपी में बीजेपी की राह आसान होगी
  • मोदी ने विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे को छीना

किसान आंदोलन बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में चिंता का सबब बना हुआ था. खासकर पश्चिम यूपी वाले इलाके में सियासी समीकरण गड़बड़ा रहा था, जिसके सहारे बीजेपी यूपी में अपनी जड़े जमाने और 2017 में सत्ता का वनवास को खत्म करने में सफल रही थी. ऐसे में किसान आंदोलन सूबे में बीजेपी के वापसी की राह में सबसे बड़ी मुश्किलें खड़ी कर रहा था. ऐसे में पीएम मोदी ने अब तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर बीजेपी की वापसी के रास्ते से सिर्फ रोड़े ही नहीं हटाए बल्कि पश्चिम यूपी में विपक्षी दलों की रणनीति पर गहरी चोट की है. 

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कृषि कानून पीएम ने लिया वापस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को गुरु नानक जयंती के मौके पर कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला लिया. देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी ने देशवासियों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया और कहा कि उनकी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई होगी, जिसकी वजह से कुछ किसानों को उनकी सरकार समझा नहीं पाई. ऐसे में कानून को वापस ले रहे हैं और अगले महीने संसद के शीतकालीन सत्र में तीनों कृषि कानून को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. साथ ही पीएम ने एक साल से ज्यादा समय से कृषि कानूनों को विरोध कर रहे किसानों से आंदोलन को खत्म करने की अपील की. 

किसान आंदोलन बीजेपी की चुनौती

कृषि कानून को लेकर एक साल से ज्यादा समय से किसान दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे में किसानों के हक में पीएम मोदी ने यूपी चुनाव से ठीक पहले कृषि कानून वापस लेने का फैसला कर बड़ा सियासी दांव चल दिया है. हालांकि, कानून लेने का फैसला मोदी सरकार ने ऐसे ही नहीं लिया बल्कि 2022 चुनाव में किसान आंदोलन पश्चिम यूपी में बड़ा मुद्दा बनता नजर आ रहा था. किसान नेताओं ने विधानसभा चुनाव में वोट से बीजेपी को चोट देने की तैयारी कर रखी थी. 

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किसान आंदोलन के असर पश्चिम यूपी

यूपी में किसान आंदोलन का प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी दिख रहा है. इसकी कई वजहें थी कि एक तो इस इलाके में ज्यादातर गन्ना किसान हैं और कृषि कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलन में बढ़ चढ़कर शामिल हुए थे. किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाली भारतीय किसान यूनियन पश्चिम यूपी में ज्यादा प्रभावी है. आंदोलन का चेहरा राकेश टिकैत इसी संगठन से हैं.  

नरेश टिकैत लगातार पश्चिम यूपी के तमाम जिलों से लेकर पूरे प्रदेश में महापंचायत कर बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे थे. भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय लोकदल को समर्थन हासिल है. किसान आंदोलन से पश्चिमी यूपी के सामाजिक समीकरण भी काफ़ी बदल गए हैं. साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद छिन्न-भिन्न हुई जाट और मुस्लिम एकता को किसान आंदोलन ने एक बार फिर मजबूत किया. 

बीजेपी का पश्चिम में बिगड़ रहा समीकरण

यूपी में किसान आंदोलन बीजेपी की सत्ता में वापसी की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई थी. जाट समुदाय के लेकर गुर्जर, सैनी जैसी तमाम किसान जातियां कृषि कानून के वजह से बीजेपी से नाराज मानी जा रही हैं. ये पश्चिम यूपी की वो जातियां है, जिनके सहारे बीजेपी पिछले तीन चुनावों में यानी साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव और साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में बड़ी जीत हासिल की. 

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साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 110 में से केवल 38 सीटें हासिल की थीं और साल 2017 में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 88 तक पहुंच गई थी. इसकी एक बहुत बड़ी वजह साल 2013 के बाद जाटों का बीजेपी की तरफ़ झुकाव रहा. बीजेपी 2017 के चुनाव में पश्चिम यूपी के दम पर 15 साल से चले आ रहे सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही थी.

विपक्ष के मुद्दे की निकली हवा

किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम यूपी स्थितियां काफी बदल गई थी. किसान आंदोलन के बीच यूपी में पंचायत चुनाव हुए थे, जिसमें बीजेपी को सत्ता में रहते हुए राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था. किसान आंदोलन के चलते पश्चिम यूपी में बीजेपी नेताओं के गांव में एंट्री करने पर विरोध हो रहे थे. बीजेपी तमाम जतन के बाद भी यूपी में किसानों के बीच अपने पुराने विश्वास को स्थापित नहीं कर पा रही थी. 

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी और बसपा सुप्रीमो मायावती तक किसानों के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने में जुटे थे. वहीं, बीजेपी यूपी की सत्ता को अपने हाथों से किसी भी सूरत में जाने नहीं देना चाहती थी. ऐसे में बीजेपी किसान आंदोलन की काट की तलाश में रही थी. जाट समुदाय के लेकर गुर्जर, सैनी जैसी तमाम किसान जातियां कृषि कानून के वजह से बीजेपी से पूरी तरह नाराज मानी जा रही थी. ये पश्चिम यूपी की वो जातियां है, जो बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. 

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सपा-आरएलडी गठबंधन का क्या होगा

बीजेपी 2017 के चुनाव में पश्चिम यूपी की इन्हीं तमाम ओबीसी जातियों के दम पर 15 साल से चले आ रहे सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही थी. लेकिन, कृषि कानून के खिलाफ शुरू हुआ किसान आंदोलन पश्चिम यूपी में बीजेपी के सियासी समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा था. हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में बीजेपी को किसान आंदोलन के चलते पश्चिम यूपी में राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा था. 

किसान आंदोलन के दम पर जयंत चौधरी 2022 के चुनाव में सपा के साथ मिलकर बीजेपी को मात देने की कवायद में जुटे थे. वहीं, बीजेपी यूपी की सत्ता को अपने हाथों से किसी भी सूरत में जाने नहीं देना चाहती थी. ऐसे में बीजेपी किसान आंदोलन के मद्देनजर नुकसान को भांपते हुए ही मोदी सरकार ने 2022 के चुनाव से ठीक पहले तीनों कानून को वापस लेने का ऐलान कर दिया ताकि किसानों की नाराजगी को दूर कर पश्चिम यूपी में बीजेपी के किले को मजबूत किया जा सके. 

अखिलेश-प्रियंका ने सरकार को घेरा

पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून को वापस लेने का फैसला कर यूपी में चुनाव से पहले विपक्ष के हाथों से सबसे बड़े मुद्दे को छीन लिया था, जिसके दम पर वो 2022 के चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का सपना संजोय हुए थे. यही वजह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि बीजपी की नजर किसानों के हितों पर नहीं है बल्कि वोटों पर है. इसीलिए चुनाव से ठीक पहले कानून वापस लेने का फैसला किया, लेकिन चुनाव के बाद दोबारा से कृषि कानून को लेकर आ जाएगी. वहीं, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने पीएम मोदी के द्वारा कृषि कानून के वापस लेने के फैसले को किसान की जीत बताया और कहा कि हम सब की है और देश की जीत है. 

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कांग्रेस महासचिव प्रिंयका गांधी ने ने कहा कि पीएम मोदी को क्यों माफ़ी मांगनी पड़ी. देश और प्रदेश के लोग जानते है ये चुनाव के कारण सरकार को कानून वापस लेना पड़ा है. किसानों को आतंकवादी और गुंडा कहा जा रहा था. इनके रुख पर भरोसा करना मुश्किल और अब चुनाव से पहले माफ़ी मांगी जा रही है, लेकिन किसान मांफ नहीं करेंगे. वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि सरकार को यह फैसला बहुत पहले ले लेना चाहिए था. एमएसपी को लेकर भी सरकार फैसला करे इस आंदोलन के दौरान किसान शहीद हुए हैं, उन्हें केंद्र सरकार आर्थिक मदद और नौकरी दे. 

 

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