उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों ने अपने सियासी अभियान भी तेज कर दिए हैं. लखीमपुर हिंसा से कांग्रेस को सियासी संजीवनी मिली तो प्रियंका गांधी सूबे में चिमटा गाड़ कर बैठ गईं हैं. 2022 के चुनाव की फाइट से बाहर नजर आ रही कांग्रेस को प्रियंका फ्रंटफुट पर लाने में जुटी हैं. ऐसे में यूपी की सियासी फिजा भी बदलती हुई नजर आ रही है.
लखीमपुर की घटना के बाद वारणसी में प्रियंका गांधी के सियासी तेवर और कांग्रेस की 'किसान न्याय रैली' में उमड़ी भीड़ से सिर्फ सत्तारुढ़ बीजेपी की ही नहीं बल्कि विपक्षी दल भी अपने-अपने नफा और नुकसान तौलने में जुट गए हैं. यही वजह है कि अभी तक बड़े दलों के साथ गठबंधन के लिए इंकार करने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव का दिल बदल रहा है और अब वो बीजेपी को चुनावी मात देने के लिए गठबंधन के लिए भी तैयार नजर आ रहे हैं.
प्रियंका पूर्वांचल तो अखिलेश पश्चिम यूपी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी रविवार को जिस समय वाराणसी से पूर्वांचल में चुनावी हुंकार भर रही थीं उसी दौरान पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहारनपुर के तीतरो से पश्चिम यूपी को साधने की कवायद में जुटे थे. अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी को हराने के लिए आवश्यकता पड़ी तो पार्टी गठबंधन भी करेगी, लेकिन गठबंधन अपनी शर्तों पर होगा और पार्टी कार्यकर्ताओं का ध्यान रखा जाएगा.
अखिलेश यादव ने सहारनपुर में पश्चिमी यूपी की राजनीति की धुरी किसानों की नब्ज पर हाथ रखते हुए कहा कि यह चुनाव देश का और आपके भविष्य का है. 2019 के लोकसभा चुनाव की दुहाई देते हुए सपा प्रमुख ने कहा कि बीजेपी को रोकने के लिए पहले भी गठबंधन किया था, जिसका सियासी जोखिम उठाना पड़ा और घाटा भी स्वीकार किया है. इसके बाद आज भी हम कह रहे हैं कि यह हमारी और समाजवादियों की जिम्मेदारी है कि बीजेपी को हर हाल में रोकने का काम करेंगे.
चमत्कारी गठबंधन की दिलाई याद
सपा प्रमुख ने 2018 के कैराना उपचुनाव का जिक्र करते हुए कहा मुझे याद है जब हम कैराना का चुनाव जीते थे आपने और हमने आरएलडी ने मिलकर के चुनाव जीतने का काम किया था. हमने अपना प्रत्याशी उन्हें (आरएलडी) दे दिया और उनके चुनाव चिन्ह पर लड़े. उस वक्त बीजेपी वालों ने कहा था कि यह कौन सा गठबंधन है तो हमने कहा था यह चमत्कारी गठबंधन है. याद करो कैराना में सपा-आरएलडी गठबंधन को जीत मिली थी.
अखिलेश यादव ने सहारनपुर में लोगों को बीजेपी से सावधान करते हुए कहा कि यूपी के 2022 विधानसभा चुनाव जीतने के लिए यह लोग कुछ भी कर सकते हैं. ऐसे में हम भी बीजेपी को रोकने के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं. हम एलायंस भी बनायेंगे और अपने लोगों का सम्मान भी बचाने का काम करेंगे. हालांकि, अखिलेश यादव ने गठबंधन के लिए किसी पार्टी का नाम नहीं लिया. सपा प्रमुख के इस बयान के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं.
जयंत नहीं खोल रहे गठबंधन पर पत्ते
दरअसल, लखीमपुर खीरी की घटना के बाद सूबे में सियासी माहौल में तेजी से बदलाव आया है, जिसके चलते विपक्षी दलों के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है. आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने गुरुवार को अपने दादा पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली हापुड़ नूरपुर से जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है. इस दौरान अखिलेश के साथ गठबंधन के सवाल पर जयंत ने कहा कि सपा से गठबंधन 2022 की बात है, उस बात को अब 2022 में ही करेंगे.
जयंत के बयान से साफ है कि सपा के साथ गठबंधन पर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं बल्कि सूबे में गठबंधन के अपने विकल्प को खुला रखना चाहते हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि आरएलडी को उसके मनमुताबिक सीटें सपा नहीं दे रही है और कांग्रेस भी गठबंधन के लिए हाथ बढ़ रही है. ऐसे में सूबे के बदलते सियासी माहौल में अखिलेश यादव भी अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं और बिना किसी विपक्षी पार्टी का नाम लिए गठबंधन करने का ऐलान कर रहे हैं.
प्रियंका से कांग्रेस को मिली संजीवनी
वहीं, उत्तर प्रदेश में तीन दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस में नई जान डालने के लिए जुटी प्रियंका गांधी गरीब कमजोर की आवाज बनने की कवायद में जुटी हैं. वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि प्रियंका गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की तेवर के साथ इन दिनों यूपी डेरा जमा रखा है, जिससे राजनीतिक समीकरण बदलने लगे हैं. प्रियंका बीजेपी के हर हमले को सियासी हथियार बनाकर जवाबी हमला कर रही है.
वह कहते हैं कि प्रियंका को मालूम है कि यूपी में उनकी ताकत कम है, लेकिन झाड़ू की ताकत वे जानती हैं. इसीलिए सीएम योगी के झाड़ू वाले बयान को लेकर प्रियंका ने बड़ा मुद्दा बना दिया. वो लखनऊ की दलित बस्ती में झाड़ु लगाने पहुंच गईं और कहा इसे सीएम योगी छोटा काम बता रहे हैं. देश भर की महिलाएं यह करती हैं. हमारे दलित भाई, सफाई कर्मचारी करते हैं.
शकील अख्तर ने कहा कि प्रियंका को यह पता है कि एक झाड़ू पूरा घर आंगन साफ कर देती है और दो तीन लोग मिल जाएं तो पूरी गली मोहल्ला साफ हो जाता है. प्रियंका उन्हीं दो तीन लोगों के सामने आने का इंतजार कर रही हैं. यूपी में कोई दल अकेले दम पर आज बीजेपी को मात नहीं दे सकता है. ऐसे में विपक्षी मिलकर चुनावी मैदान में उतरता है तो तस्वीर बदल सकती है. इसी कड़ी में अखिलेश के बयान को लिया जाना चाहिए.
अखिलेश की रैली के मायने
अखिलेश यादव की सहारनपुर में की गई जनसभा कई मायने में अहम मानी जा रही है, क्योंकि सपा की तरफ से पश्चिम यूपी में विधानसभा चुनाव का आगाज भी हुआ है. जनसभा के माध्यम से सपा प्रमुख ने सियासी समीकरण साधने के साथ ही कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को लेकर किसानों को लामबंद करने का भी प्रयास किया. अखिलेश पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, भाकियू के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत और चौधरी यशपाल सिंह का जिक्र कर भावनात्मक रूप से लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश भी करते नजर आए.
अखिलेश यादव की चुनाव से पहले पश्चिमी यूपी में यह पहली जनसभा थी. इस लिहाज से यहां होने वाली जनसभा सहारनपुर के साथ ही शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत और बिजनौर के भी सियासी समीकरण साधने के लिए अहम मानी जा रही है. हालांकि, पश्चिम यूपी में सपा का कोर वोटर यादव नहीं है. वहीं, मुस्लिम वोटर पश्चिम यूपी में पिछले तीन चुनाव से जाट से अलग होकर देख चुका है कि वो अपने दम पर बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं है.
जाटों पर निर्भर करेगा मुस्लिमों का मिजाज
2022 के चुनाव में पश्चिम यूपी के मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न जाट समाज के मिजाज पर निर्भर करेगा. इसकी प्रमुख वजह यह है कि कृषि कानून के विरोध में किसान आंदोलन से मुस्लिम-जाट साथ आए हैं. ऐसे में जाट वोट चुनाव में बीजेपी के खिलाफ जिस पार्टी के साथ जाएगा, उसी के साथ मुस्लिमों के भी जाने की संभावना है. पश्चिम यूपी में सपा ही नहीं कांग्रेस, बसपा और आरएलडी की नजर भी मुस्लिम वोटर पर है. इसीलिए अखिलेश यादव अब बीजेपी को मात देने के लिए गठबंधन करने की बात करने लगे हैं. हालांकि, अब देखना होगा कि सपा किसके साथ हाथ मिलाकर बीजेपी से दो-दो हाथ करेगी.