उत्तर प्रदेश में ढाई दशक से प्रतापगढ़ की सियासत को अपने हिसाब से चला रहे निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के सामने इस बार अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की चुनौती है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में राजा भैया को न तो सपा का समर्थन होगा और न ही बीजेपी का वॉकओवर. ऐसे में राजा भैया को खुद के साथ-साथ अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी है. यही वजह है कि राजा भैया को भगवान श्रीराम की याद आयी है.
राजा भैया मंगलवार से जनसेवा संकल्प यात्रा शुरू कर रहे हैं, जिसे 2022 के चुनावी अभियान के तौर पर देखा जा रहा है. वो बुधवार को कुंडा के अपने बेती आवास से अयोध्या के लिए रवाना होंगे. राजा भैया प्रतागढ़ शहर होते हुए सुल्तानपुर और फिर अयोध्या में रामलला का दर्शन करेंगे. इसके बाद वो प्रदेश में जनसेवा संकल्प यात्रा के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं और अपने समर्थकों में उत्साह भरेंगे.
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया ने नब्बे के दशक में सियासत में कदम रखा था, लेकिन वो पहली बार अपने समर्थकों के संग अयोध्या में रामलला के दर्शन के साथ अपनी चुनावी शंखनाद कर रहे हैं. राजा भैया ने बताया कि अयोध्या से रामलला और हनुमानगढ़ी में दर्शन पूजन के बाद प्रदेशव्यापी यात्रा का शुभारंभ होगा. उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम में अटूट निष्ठा है. अपने जीवन में जो काम किया प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद लेकर किया. इसलिए हम अयोध्या जा रहे है.
1993 में पहली बार विधायक बने थे रघुराज प्रताप सिंह
रघुराज प्रताप सिंह 1993 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए. इसके बाद से सपा और बीजेपी के सहयोग से मंत्री बनते रहे. सूबे में बीजेपी के कल्याण सिंह से लेकर राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में मंत्री रहे तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री काल में सत्ता में बन रहे. ऐसे में पहले बीजेपी और फिर बाद सपा कुंडा में उन्हें समर्थन देकर वॉकओवर देती रही, जिससे राजा भैया आसानी से कुंडा से जीतते रहे हैं.
साल 2018 में अखिलेश यादव के साथ राजा भैया के रिश्ते बिगड़ गए. इसके बाद राजा भइया ने जनसत्ता दल नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली. 2019 लोकसभा के चुनाव में पार्टी से दो सीटों कौशांबी और प्रतापगढ़ सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका था. इसके बाद कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी के सहयोग से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं और अब 2022 के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं.
राजा भैया के सामने सपा बनी बड़ी चुनौती
यूपी में बीजेपी की सत्ता में आने और अखिलेश यादव के साथ राजा भैया के रिश्ते बिगड़ने के साथ प्रतापगढ़ की सियासत भी बदल रही है. राजा भैया के कुंडा और बाबागंज क्षेत्र में यादव समुदाय का बोलबाला है. राजा भैया ने यादव, पासी और ठाकुर वोटरों के सहारे सियासी दबदबा कायम रखा था, लेकिन बसपा छोड़कर सपा में आए पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज और राजा के कभी करीबी रहे गुलशन यादव और छविनाथ यादव उनके धुर विरोधी हो गए हैं. वहीं, बीजेपी ने भी राजा भैया के विरोधी शिव प्रकाश मिश्र सेनानी और पूर्व सांसद रत्ना सिंह को अपने खेमे में मिला रखा है.
राजा भैया को कुंडा में सपा नेताओं की इस तिकड़ी से लगातार चुनौती मिल रही है. पहले कुंडा नगर पंचायत के चुनाव में गुलशन यादव ने राजा भैया के समर्थक को सियासी मात दी थी. अखिलेश ने छविनाथ को प्रतापगढ़ का सपा जिलाध्यक्ष बना रखा है. इसके बाद से कुंडा को लेकर इंद्रजीत सरोज और अखिलेश यादव खुद नजर बनाए हुए हैं. पिछले दिनों बिना किसी प्रोटोकॉल के सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव गुलशन यादव के घर गए थे, जो कुंडा में चर्चा का विषय बन गया था.
SP के टिकट पर कुंडा से लड़ सकते हैं गुलशन यादव
माना जा रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर गुलशन कुंडा सीट से राजा भैया के खिलाफ ताल ठोक सकते हैं. बीजेपी भी राजा के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है जबकि बसपा से उनके छत्तीस के आंकड़े रहे हैं. ऐसे में राजा को इस बार कुंडा में ही कड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा.
राजा भैया ने कहा कि जनसता दल किसी भी राजनीतिक दल में विलय नहीं करेगा बल्कि गठबंधन हो सकता है. गठबंधन के लिए अभी थोड़ा इंतजार करिए, सब आपके सामने होगा. उन्होंने कहा कि जनसेवा संकल्प यात्रा के जरिए हम जनता के बीच जाकर अपनी पार्टी को मजबूत बनाने के लिए जनता का आशीर्वाद लेंगे. खुद को उन्होंने रामभक्त बताया और कहा इसीलिए रामलला के दर्शन के बाद जनसेवा संकल्प यात्रा के साथ पूरे प्रदेश जाएंगे.
राजा भैया ने कुंडा से आयोध्या के लिए जो यात्रा का रास्ता चुना है, वो प्रतापगढ़, सुल्तानपुर होते हुए अयोध्या पहुंचेंगे. ये तीनों जिला ठाकुर समाज के वर्चस्व वाले माने जाते हैं, यहां की सियासत में ठाकुर समुदाय के नेताओं की दबदबा है. इन्हीं इलाके में राजा भैया के समर्थकों की बड़ी संख्या है. हालांकि, यूपी में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ठाकुर समुदाय का झुकाव बीजेपी में एकतरफा हुआ है, लेकिन राजा भैया के चुनावी मैदान में उतरने से कई सीटों पर सियासी चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं.