उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के साथ सोफे पर बैठे आई तस्वीर पर सूबे की सियासत गर्मा गई है. भागवत-मुलायम की यह तस्वीर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के घर एक शादी कार्यक्रम की है, जिसे लेकर उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने सपा पर तंज कसा तो उत्तर प्रदेश बीजेपी ने अपने ऑफिशियल अकाउंट से तस्वीर को ट्वीट कर कहा कि तस्वीर बहुत कुछ बोलती है.
देश की सियासी हस्तियां सामाजिक कार्यक्रमों और अन्य जगहों पर अनौपचारिक तौर पर मिलती-जुलती रहती हैं, लेकिन कुछ मुलाकातों के सुर्खियां बनने में देर नहीं लगती. सोमवार को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की नातिन निहारिका के विवाह समारोह का कार्यक्रम था, जिसमें तमाम राजनीतिक हस्तियां शामिल हुई थीं. इसी कार्यक्रम में सपा संरक्षक मुलायम सिंह और संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात हुई. तस्वीर में दोनों नेता एक ही सोफे पर बैठे नजर आ रहे हैं.
भागवत-मुलायम की फोटो को यूपी बीजेपी ने ट्वीट करते लिखा है कि तस्वीर बहुत कुछ बोलती है. इस तस्वीर को सबसे पहले बीजेपी के राजस्थान से सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने ट्वीट किया था और उन्होंने लिखा था कि संघ प्रमुख का आशीर्वाद लिया है. ऐसे में सवाल उठता कि एक निजी कार्यक्रम में शिष्टाचार मुलाकात की तस्वीर को बीजेपी ट्वीट कर क्या सियासी संदेश देना चाहती है.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने मुलायम सिंह यादव और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच मुलाकात की तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि 'नई सपा' में 'स' का मतलब संघवाद है. जाहिर है इस तस्वीर के बहाने कांग्रेस ने सपा पर निशाना साधने और सपा को कठघरे में खड़ा करने की कवायद की है.
सोफे पर बैठ कर क्या बात हो रही थी?
बीजेपी के द्वारा भागवत-मुलायम की मुलाकात की तस्वीर के ट्वीट पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का देखने का तरीका अलग है, एक दूसरी तस्वीर देखी जिसमें नेताजी से कांग्रेस के सहयोगी दल NCP के नेता आशीर्वाद ले रहे हैं. सोफे पर बैठ कर क्या बात हो रही, वो कांग्रेस को कैसे पता. नेताजी ने शायद उन्हें बता दिया है कि बीजेपी का सफाया होना यूपी से तय है. नेताजी ने भागवत जी को यह भी बताया होगा की बाबा जा रहे हैं.
सपा प्रवक्ता सुनील साजन ने कहा कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में अपनी हार देखकर बीजेपी पूरी तरह से हताश और निराश है. ऐसे में बीजेपी राजनीतिक शिष्टाचार और मर्यादा भी भूल गई है. निजी कार्यक्रम, संसद और विधानसभा सदन में सियासी हस्तियां एक दूसरे से मिलती-जुलती रहती हैं, लेकिन उस पर सियासत नहीं होती है. बीजेपी चुनाव के लिए इस हद तक गिर गई है कि उपराष्ट्रपति के घर के कार्यक्रम की तस्वीर को लेकर राजनीति कर रही है.
सुनील साजन ने कहा कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के घर पर एक कार्यक्रम के दौरान नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से संघ प्रमुख मोहन भागवत मिलने खुद आए थे. ऐसे में नेताजी की संघ प्रमुख से मुलाकात की तस्वीर को बीजेपी ने ट्वीट कर उत्तर प्रदेश के असल मुद्दों से लोगों भटकना चाहती है, लेकिन सूबे की जनता सब समझ रही है.
सपा प्रवक्ता ने कहा कि बीजेपी कोई जतन कर ले, लेकिन सूबे की जनता बहकावे में नहीं आने वाली है. बीजेपी को राजनीतिक शिष्टाचार और मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए. चुनाव तो आते जाते रहेंगे, लेकिन राजनीतिक गरिमा और शिष्टाचार खत्म हो जाएगा तो फिर क्या रह जाएगा. सपा प्रवक्ता मनोज काका ने भी कहा कि कुछ मुलाकातें शिष्टाचार के लिए भी होती हैं, पर बीजेपी कहां समझेगी. बीजेपी हर चीज को राजनीतिक चश्मे से ही देख पाती है.
क्या सेकुलर वोटों को जोड़ने की कवायद है?
राजनीतिक विश्लेषकों और उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि बीजेपी ने 2022 के चुनाव के सियासी फायदे के लिहाज से विपक्षी पार्टियां मुलायम सिंह यादव और मोहन भागवत की तस्वीर को ट्वीट कर रही है, क्योंकि दोनों एक दूसरे के वैचारिक विरोधी हैं. कांग्रेस और बीजेपी ने मुलायम-भागवत को एक साथ दिखाकर अपने-अपने राजनीतिक समीकरण साधना चाहती हैं.
सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि कांग्रेस इस बहाने मुस्लिम वोटों और सेकुलर वोटों के सियासी संदेश देकर उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहती है. वहीं, बीजेपी ने संघ प्रमुख-मुलायम सिंह को एक साथ दिखाकर सूबे में बीजेपी विरोधी वोटों को बंटवारा करना चाहती है, क्योंकि अभी तक सूबे में बीजेपी विरोधी वोट एकजुट और सपा के साथ खड़ा दिख रहा है.
वह बतातें है कि यूपी चुनाव में अभी तक बसपा, AIMIM से लेकर कांग्रेस और दूसरे दलों की तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार और बीजेपी विरोधी वोट फिलहाल बिखराव होता नहीं दिख रहा है. इसीलिए बीजेपी ने जानबूझकर और रणनीति के तहत एक निजी कार्यक्रम के दौरान की शिष्टाचार मुलाकात की तस्वीर को ट्वीट. इस तस्वीर के जरिए बीजेपी ने भले ही सिर्फ यह बात लिखी हो कि तस्वीर बहुत कुछ बोलती है, लेकिन इसके पीछे उसके सियासी मकसद को साफ समझा जा सकता है.