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यूपी चुनाव: छोटे दलों से गठबंधन पर अड़े अखिलेश के लिए सिरदर्द बनी सीटों की बड़ी डिमांड

अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन का फॉर्मूला आजमा रहे हैं. बीजेपी के नक्शेकदम पर चलते हुए अखिलेश ने भले ही जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव मौर्य के महान दल के साथ चुनाव लड़ने के लिए हाथ मिला लिया हो, लेकिन सपा अपने सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अभी तक तय नहीं कर सकी?

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जयंत चौधरी और अखिलेश यादव
जयंत चौधरी और अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • किसान आंदोलन से आरएलडी की बढ़ी ताकत
  • आरएलडी 65 से 70 सीटों की डिमांड कर रही
  • महान दल और जनवादी पार्टी का बेहतर तालमेल

उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और बसपा के साथ हाथ मिलकर अपना सियासी हश्र देख चुके सपा प्रमुख अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन का फॉर्मूला आजमा रहे हैं. बीजेपी के नक्शेकदम पर चलते हुए अखिलेश ने भले ही जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव देव मौर्य के महान दल के साथ चुनाव लड़ने के लिए हाथ मिला लिया हो, लेकिन सपा अपने सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अभी तक तय नहीं कर सकी है.

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कृषि कानून विरोधी किसान आंदोलन से आरएलडी को सियासी संजीवनी मिल गई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी की स्थिति मजबूत होती देख दूसरे दलों के नेताओं का रुख भी अब जंयत चौधरी की तरफ होने लगा है. किसान आंदोलन के बाद से करीब एक दर्जन से ज्यादा बड़े नेता आरएलडी की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं. आरएलडी की बढ़ी सियासी ताकत से जयंत चौधरी के हौसले काफी बुलंद हैं, जिसके चलते उनकी बार्गेनिंग पोजिशन भी बढ़ गई है.

नहीं तय हुआ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला

आरएलडी पश्चिम यूपी में अच्छी खासी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. आरएलडी-सपा साथ मिलकर 2022 में चुनाव लड़ने की तैयारी में है, लेकिन अभी तक दोनों दलों की बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हुआ है. सूत्रों की मानें तो आरएलडी ने 65 से 70 विधानसभा सीटों की डिमांड कर रही है, जिस पर सपा अभी तक सहमत नहीं है. इतना ही नहीं आधा दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं, जहां सपा और आरएलडी दोनों ही पार्टी दावेदारी से पेच फंसा हुआ है. 

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लोकसभा चुनाव 2019 में आएलडी को महज तीन सीटें सपा-बसपा ने दी थी. ऐसे में सपा 2022 के विधानसभा चुनाव में 20 से 22 सीटें ही देने के मूड में है, जिस पर आरएलडी राजी है. जयंत चौधरी ने दूसरे दलों के नेताओं को बड़ी संख्या में पार्टी में शामिल कर लिया है, वो सब टिकट के दावेदारी कर रहे हैं. यही वजह है कि आरएलडी ने सपा के सामने अपनी डिमांड बढ़ा दी है. 

सूत्रों की मानें तो जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव को अपनी दावेदारी वाली सीटों की लिस्ट भेज दी है, उनमें बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, बिजनौर, मथुरा, हाथरस, बुलंदशहर, अमरोहा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, नोएडा और आगरा जिले की विधानसभा सीटें शामिल हैं. यह पश्चिम यूपी का वह इलाका है, जहां जाट और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं.  

वहीं, अमरोहा की नौगावां सादात, मथुरा की मांट, बागपत की बड़ौत, मेरठ की सिवालखास, सरधना, मुरादाबाद की काठ और मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट ऐसी हैं, जहां सपा और आरएलडी के बीच पेच फंसा हुआ है. इसकी वजह यह है कि अखिलेश यहां पर अपने चहेते नेताओं को चुनाव लड़ना चाहते हैं जबकि जयंत अपने करीबी नेताओं को चुनाव लड़ने की तैयारी में है. 

इसके अलावा आरएलडी बिजनौर जिले की तीन सीटों पर दावेदारी की है, जिनमें नाटौर, चांदपुर और बिजनौर सदर है, जिसमें सपा सिर्फ बिजनौर सीट पर राजी है. ऐसे ही बागपत जिले की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है जबकि सपा बड़ौत सीट पर दावेदारी कर रही है. ऐसे ही हाथरस और मथुरा जिले की सीट को लेकर भी दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है. 

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आरएलडी की पश्चिम यूपी में बढ़ती सियासी ताकत और जयंत चौधरी की डिमांड ने सपा चिंता में डाल दिया है. पश्चिम यूपी में सपा का कोर वोटबैंक यादव बहुत ज्यादा नहीं है और सिर्फ मुस्लिम वोटों पर ही उसका आधार टिका हुआ है. आरएलडी नेताओं का तर्क है कि सपा अगर आरएलडी को उसके ताकत के लिहाज से पश्चिम यूपी में ज्यादा सीटें नहीं देगी तो बीजेपी को हराना मुश्किल होगा, क्योंकि जाट वोटर के सिंबल को नहीं बल्कि आरएलडी के निशान को पंसद करता है.

वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव पश्चिम यूपी में भविष्य की राजनीति को लेकर भी नफा-नुकसान तौलने में जुटे हैं कि कहीं मुस्लिम वोट खिसकर आरएलडी का कोर वोटबैंक न बन जाए. ऐसे में वो अपना सियासी आधार को बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए अपने कई नेताओं को आरएलडी के टिकट पर भी चुनाव लड़ाने पर विचार-विमर्श चल रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि सपा और आरएलडी के बीच सीट शेयरिंग को लेकर एक समिति बनाने का कदम उठा जा सकता है.

दस सीटों पर चुनाव लड़ सकता है 'महान दल'

सपा के दूसरे सहयोगी जनवादी पार्टी और महान दल के बीच आरएलडी की तरह सीट बंटवारे का पेच नहीं है. महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने aajtak.in से बताया कि वो यूपी की दस सीटों के अंदर चुनाव लड़ेंगे, जिस पर सपा के साथ तालमेल बन गया. कुशीनगर, मिर्जापुर, अंबेडकरनगर, जौलान, मुरादाबाद, लखीमपुर, बदायूं, बरेली, कासगंज, मैनपुरी में हमारा सियासी आधार है. 

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हालांकि, उन्होंने बताया कि अभी यह तय नहीं कि हम सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे या फिर अपने निशान पर. यह बात जरूर है कि हम अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे. ऐसे में हमें अगर सपा के चुनाव निशान पर भी अपने उम्मीदवार उतारने पड़े तो हम पीछे नहीं हटेंगे. इसी तरह से सपा के दूसरे सहयोगी जनवादी पार्टी के अध्यक्ष संजय चौहान भी पूरी तरह से अखिलेश यादव को सीएम बनने के लिए अपनी ताकत लगा रहे हैं.  

पूर्वांचल के 10 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र में चौहान बिरादरी (नोनिया) निर्णायक भूमिका में है. इन्हें गोलबंद करने के लिए जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट)  अध्यक्ष डॉ. संजय सिंह चौहान भाजपा हटाओ, प्रदेश बचाओ जनवादी जनक्रांति यात्रा निकाल रहे हैं. संजय सिंह चौहान जातीय अस्मिता को मुद्दा बनाकर ही सियासी डगर पर निकले हैं. उनका दावा है कि मऊ जिले की सभी विधानसभा क्षेत्र में उनकी जाति के 50 हजार अधिक वोटर हैं जबकि गाजीपुर के जखनियां में करीब 70 हजार वोटर हैं. इसी तरह बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली व बहराइच में भी बड़ी संख्या में उनकी बिरादरी है पूरे प्रदेश में नोनिया आबादी 1.26 फीसदी है. 

यूपी में अखिलेश यादव ने भले ही संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव देव मोर्य के महान दल के साथ तालमेल बेहतर बना रखा हो और पूर्वांचल से लेकर रुहेलखंड में अपने को मजूबत मान रहे हों. लेकिन, आरएलडी के साथ जिस तरह से सीट शेयरिंग को लेकर पेच फंसा हुआ है, उसे सुलझाए बिना पश्चिम यूपी में बीजेपी के सियासी मात देना अखिलेश के लिए आसान नहीं होगा? 

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