scorecardresearch
 

Sambhal district politics: समाजवादी पार्टी को सूट करती रही है संभल जिले की सियासत

Sambhal district politics: संभल जिले की सियासत में शफीकुर्रहमान बर्क का दबदबा रहा है. इनके अलावा यहां से सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह भी संभल जिले से निर्वाचित हो चुके हैं.

Advertisement
X
संभल की राजनीति में रहा है सपा का कब्जा
संभल की राजनीति में रहा है सपा का कब्जा

पश्चिमी यूपी का संभल जिला प्रदेश की सियासत का केंद्र बिंदु रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव तक इस इलाके का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. यहां की राजनीति में शफीकुर्रहमान बर्क का दशकों से दबदबा रहा है, जो आज भी कायम है. 

Advertisement

डॉन कहे जाने वाले डीपी यादव भी संभल की राजनीति में हाथ आजमा चुके हैं. इनके अलावा सपा के रामगोपाल यादव व जावेद अली खान भी यहां से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. 

जिले की राजनीति में समाजवादी पार्टी का वर्चस्व रहा है. 2011 में मायावती सरकार के दौरान इस जिले का गठन किया था. मायावती ने संभल जिले का नाम बदलकर भीम नगर कर दिया था, जो बाद में चुनावी मुद्दा भी बना था. 

संभल जिले की विधानसभा सीटें

संभल जिले में चार विधानसभा सीटें हैं- गुन्नौर, असमोली, संभल और चंदौसी (अनुसूचित जाति). 2017 के विधानसभा चुनाव में इन चार सीटों में 2 पर सपा ने जीत दर्ज की थी. यानी बीजेपी की लहर के बावजूद यहां सपा ने बराबर की टक्कर दी थी. बीजेपी ने भी दो सीटों पर जीत दर्ज की थी.

Advertisement

संभल जिले में करीब 40 फीसदी मुसलमान वोटर है, जबकि शेष हिंदू वोटर है. यहां कुछ इलाकों में यादव भी प्रभावशाली है. मुस्लिमों में खासकर तुर्क समाज का वर्चस्व है और सांसद शफीकुर्रहमान बर्क इसी समाज से आते हैं. 
                   
संभल तहसील की बात की जाय तो यहां 78 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इसका असर ये रहा है कि सपा यहां चुनाव में मजबूत स्थिति में रही है. हालांकि, 2014 में मोदी लहर में पहली बार संभल में बीजेपी के सत्यपाल सैनी सांसद बने. वहीं, संभल विधानसभा सीट की बात की जाए तो 1978 में जनसंघ के टिकट पर महेश गुप्ता और 1992 में बीजेपी के टिकट पर सत्य प्रकाश गुप्ता ने ही जीत दर्ज की है. तब से संभल विधानसभा सीट पर सपा का ही कब्जा रहा है. 

चंदौसी- इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है. 2017 में भाजपा की गुलाब देवी यहां से जीती थीं. वो राज्यमंत्री भी बनाई गईं. 2007 में बसपा की लहर में ये सीट बसपा के पास रही जबकि 2012 में सपा के पास रही. 2017 में गुलाब देवी ने कांग्रेस प्रत्याशी विमलेश कुमारी को हराया था. गठबंधन में यहा सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. ये सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और गुलाब देवी धोबी समाज से आती हैं. 
चंदौसी नगर अधिक मंदिरों के कारण मिनी वृंदावन कहलाता है. उत्तर भारत का प्रसिद्ध गणेश चौथ मेला और यहां की मेंथा इंडस्ट्रीज की विश्व में पहचान है. 

Advertisement

असमोली- इस सीट का गठन वर्ष 2012 में हुआ था, उससे पहले यह बहजोई सीट कहलाती थी. पहली बार समाजवादी की पिंकी यादव इस सीट से ‌‌विधायक चुनी गईं. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी पिंकी यादव विजयी रहीं. पिंकी यादव ने भाजपा के नरेंद्र सिंह को हराया था. यह सीट मुस्लिम व यादव बाहुल्य है. दोनों मिलाकर 50 प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं. इसका लाभ सपा प्रत्याशी को मिलता रहा है. पिंकी यादव के दादा बिशन सिंह बहजोई भी इलाके से विधायक व मंत्री रह चुके हैं. वो सांसद भी रहे. 

संभल- आजादी के बाद से ही ये सीट है.1974 के बाद से इस सीट पर शफीकुर्रहमान बर्क और नबाव इकबाल महमूद का कब्जा रहा है. 2017 के चुनाव में सपा विधायक इकबाल महमूद ने भाजपा के डॉ. अरविंद गुप्ता को हराया था. शफीकुर्रहमान यहां से चार बार विधायक रहे हैं और इकबाल महमूद 6 बार विधायक बने. दोनों ही नेता सपा की राजनीति करते रहे हैं. हालांकि, 2017 में शफीकुर्रहमान ने अपने बेटे जियाउर्रहमान को सपा से टिकट नहीं मिलने पर AIMIM से लड़ा दिया था.  जिया को भाजपा से भी ज्यादा वोट मिले थे और दूसरे नंबर पर रहे थे. संभल सीट पर 1993 में भाजपा जीती थी, उसके बाद से इस सीट पर सपा का ही कब्जा है.

Advertisement

गुन्नौर- ये सीट पहले बदायूं जिले का हिस्सा थी. 2011 में जब संभल जिला बना तो इस इलाके को संभल में जोड़ दिया दिया. यह सीट सपा की मानी जाती है. 2003 के उपचुनाव के बाद लगातार सपा का कब्जा रहा है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अजीत सिंह उर्फ राजू यादव ने बड़ा उलटफेर किया और सपा के पूर्व विधायक रामखिलाड़ी यादव को हराया. इससे पहले 2003 से 2012 तक यहां सपा का कब्जा रहा. खास बात यह है कि 2004 उपचुनाव व 2007 में सपा संरक्षक मुलायम‌ सिंह यादव भी इस सीट से निर्वाचित हुए थे. इस सीट पर यादव वोटर काफी हैं. 


 

Advertisement
Advertisement