उत्तर प्रदेश की सियासत में किस्मत आजमाने उतरे असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर का भागीदारी संकल्प मोर्चा लगातार बड़े-बड़े दावे कर रहा है. लेकिन, बुधवार शाम लखनऊ में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव के विक्रमादित्य मार्ग स्थित निवास पर ओवैसी, राजभर और चंद्रशेखर बीच हुई बैठक ने एक नई सियासी हवा दे दी है. चार छोटे दलों के चार बड़े नेता मिलकर योगी के खिलाफ दो-दो हाथ करने के लिए महागठबंधन बना रहे हैं या फिर सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर दबाव बनाने की रणनीति है?
शिवपाल के घर जुटे ये नेता
शिवपाल यादव के साथ बुधवार को असदुद्दीन ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर और भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद के बीच हुई बैठक को सियासी तौर पर काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि पहली बार चारों दलों के नेता एक साथ मिले. इससे पहले अलग-अलग नेताओं के बीच मुलाकातें हो रही थीं. ऐसे में सवाल उठता है कि यह भागीदारी मोर्चा सूबे में बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस के बाद पांचवां फ्रंट के रूप में सामने आ रहा, जो छोटे-छोटे दलों का महागठबंधन बनता जा रहा है.
दरअसल, भागीदारी संकल्प मोर्चा के नेताओं की बीच हुई मीटिंग से एक दिन पहले ही शिवपाल यादव ने इटावा में सपा को अपना आखिरी अल्टीमेटम दे दिया है. उन्होंने साफ तौर पर अखिलेश यादव को कह दिया है कि 11 अक्टूबर तक गठबंधन पर रुख साफ करें नहीं तो वो अपनी सियासी राह अलग तलाशेंगे. शिवपाल 12 अक्टूबर को मथुरा और वृंदावन से चुनावी शंखनाद करने का भी ऐलान भी कर चुके हैं.
योगी के खिलाफ कोई बड़ा मोर्चा नहीं
यूपी की सियासत में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ कोई बड़ा एक मोर्चा बनता हुआ दिखाई नहीं दे रहा. बीएसपी इस बार किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं कर रही जबकि सपा ने छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है. वहीं, कांग्रेस को कोई पार्टी साथ नहीं ले रही, जिसके चलते अपने दम पर चुनावी किस्मत आजमा रही है.
ओवैसी से सपा-बसपा बना रही दूरी
बीएसपी, सपा और कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि यूपी में असदुद्दीन ओवैसी के साथ किसी तरह का कोई गठबंधन नहीं करेंगे. वहीं, ओमप्रकाश राजभर, शिवपाल यादव और चंद्रशेखर आजाद तीनों ही सपा से गठबंधन चाहते हैं, पर अखिलेश यादव इन तीनों से गठबंधन अपनी शर्तों पर करना चाहते हैं. सपा इन तीनों नेताओं को उनके राजनैतिक हैसियत के हिसाब से एडजस्ट करना चाहती है जबकि इन तीनों नेताओं की सीटों की मांग काफी ज्यादा है.
आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद पश्चिम यूपी की ज्यादातर दलित सीटें चाहते हैं तो ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल की राजभर बहुल सीटों की डिमांड कर रहे हैं. ऐसे ही शिवपाल यादव सपा के गढ़ इटावा, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, एटा और औरैया जिलों में अच्छी खासी सीटें चाहते हैं. साथ ही वो अपने सभी नेताओं के लिए भी सपा में सम्मानित स्थान चाहते हैं.
सपा के लिए 2022 का चुनाव करो या मरो
वहीं, 2022 का विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के लिए किसी जीने मरने से कम नहीं है. 2017 और 2019 में करारी मात खा चुके हैं, जिसके चलते इस बार सपा की साख दांव पर है. अखिलेश यादव किसी तरह के दबाव में सियासत नहीं करना चाहते बल्कि उनकी रणनीति है कि विपक्षी नेता जब थक जाएं तब गठबंधन के लिए खुद उनके पास आएं. ऐसे में वो अपनी शर्तों पर उनके साथ समझौता करेंगे.
अखिलेश यादव के सियासी तेवर को देखते हुए छोटे दल मिलकर बड़ी ताकत बनने की जुगत में हैं. ऐसे में अब पांचवें मोर्च की बात सूबे में चल निकली है, जिसमें छोटे दलों के बड़े नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियों और अपने सियासी आधार के हिसाब से चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है.
26 को छोटे दल दिखाएंगे बड़ी ताकत
यूपी के सियासी रण में भागीदारी मोर्चे को बड़ा करने की कवायद ओवैसी और राजभर काफी समय से कर रहे हैं. सूबे में 26 अक्टूबर को एक बड़ी रैली प्लान कर रहे हैं, उस रैली में सभी छोटे दलों या सियासत के वह बड़े नाम जो मुख्यधारा से बाहर हैं उन्हें जोड़ने की कवायद हो रही है. ऐसे में यह लोग सपा और बसपा को 26 अक्टूबर की रैली में अपना आखिरी प्रस्ताव भेज सकते हैं.
बहरहाल, चार सियासी दलों के बड़े नेता आपस में मिलने के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि गठबंधन से कहीं ज्यादा इनकी कोशिश सपा पर दबाव बनाने की है ताकि अखिलेश उन्हें अपने गठबंधन में एडजस्ट कर सकें. ऐसे में अगर सपा इन छोटे दलों को साथ नहीं मिलाती तो पांचवें फ्रंट के तौर छोटे दल मिलकर उभरेंगे.