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सिराथू: सपा के दांव में फंस गए केशव प्रसाद मौर्य, पल्लवी पटेल से हारे

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में सबसे हॉट सीट कौशांबी की सिराथू है, जहां से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य चुनावी मैदान में उतरे. केशव के खिलाफ सपा ने पल्लवी पटेल को उतारा तो बसपा से मुंसब अली उस्मानी के आने से मुकाबला रोचक हो गया. सिराथू के सियासी समीकरण को देखते हुए माना जा रहा था कि अगर कुर्मी वोट सपा के पक्ष में एकजुट हुआ तो केशव की सियासी राह मुश्किल हो जाएगी.

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पल्लवी पटेल और केशव प्रसाद मौर्य
पल्लवी पटेल और केशव प्रसाद मौर्य
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सिराथू सीट पर पांचवें में चरण में मतदान होना है
  • सिराथू सीट पर कुर्मी समुदाय का वोटर काफी अहम
  • केशव के खिलाफ विपक्ष का जबरदस्त चक्रव्यूह

यूपी चुनाव में सिराथू विधानसभा सीट कभी बसपा का मजबूत गढ़ हुआ करती थी, लेकिन 2012 में केशव प्रसाद मौर्य यहां से पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रहे थे. इसके बाद से बीजेपी का ही यहां पर कब्जा रहा. सिराथू में पांच साल में कराए विकास कार्य के दम पर केशव मौर्य के जीतने के दावे किए जा रहे थे, लेकिन जातीय समीकरण को देखते हुए सपा ने जिस तरह से पल्लवी पटेल को उतारा उससे मुकाबला दिलचस्प हो गया. इसी सीट पर बसपा से मुंसब अली उस्मानी ने ताल ठोंक दी. 

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देर शाम आने वाले नतीजों ने चौंका दिया है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सपा की पल्लवी पटेल से 7337 वोट से परास्त हुए हैं. यहां बीजेपी के एजेंट रिकाउंटिंग की मांग को लेकर हंगामा कर रहे थे. ईवीएम में गड़बड़ी के कारण मतगणना भी रोकी गयी. गौरतलब है कि पल्लवी पटेल खुद को कौशांबी की बहू बताती हैं, क्योंकि उनके पति पंकज निरंजन इसी जिले के निवासी हैं. केशव प्रसाद मौर्य की जन्मभूमि कौशांबी है. ऐसे में सिराथू का मुकाबला बहू बनाम बेटा का हो गया. सिराथू सीट पर बीजेपी और सपा दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी. जिसमें केशव को हार हुई.

केशव के खिलाफ अनुप्रिया की बड़ी बहन

सिराथू विधानसभा सीट पर सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरीं पल्लवी पटेल केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बड़ी बहन हैं. अनुप्रिया पटेल बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही हैं तो पल्लवी पटेल सपा के साथ हैं. पल्‍लवी पटेल के पक्ष में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव से लेकर राज्यसभा सदस्य जया बच्चन तक प्रचार कर चुकी हैं. वहीं, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं ने केशव प्रसाद के पक्ष में रैली की है. इतना ही नहीं, पल्लवी पटेल के खिलाफ उनकी बड़ी बहन अनुप्रिया पटेल भी केशव को जिताने के लिए सिराथू सीट पर प्रचार किया है.

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सिराथू सीट केशव प्रसाद मौर्य की पारंपरिक सीट रही है. केशव बीजेपी के बड़े ओबीसी नेताओं में से एक माने जाते हैं और पार्टी के ओबीसी चेहरा हैं. उन्हें चुनावी समर में उतारकर पार्टी ओबीसी वोट बैंक को साधने की कवायद में रही, लेकिन सपा ने भी उनके खिलाफ कुर्मी कार्ड खेलकर मुकाबले का रोचक बना दिया. और जीत अपने नाम की. 

सिराथू में पहली बार केशव ने खिलाया कमल

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सिराथू के ही रहने वाले हैं. यहां की जनता ने 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पहली बार जिताकर विधानसभा भेजा था और 2014 में फूलपुर से सांसद बन गए थे. इसके बाद 2017 में बीजेपी ने उनकी अगुआई में चुनाव जीता तो सूबे में डिप्टी सीएम बने और बाद में एमएलसी बन गए थे. 2022 के चुनाव में एक बार फिर से उन्हें सिराथू से से प्रत्याशी बनाया गया.

केशव के खिलाफ बीएसपी ने यहां से मुंसब अली उस्मानी को उम्मीदवार बनाया. सिराथू में ओबीसी में कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी से पटेल बिरादरी की नेता आनंद पटेल दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने पल्लवी पटेल को प्रत्याशी बना दिया. यह सपा की कुर्मी वोटों में सेंधमारी करने की कोशिश साबित हुई. सपा यहां एम-वाई फैक्टर के साथ ही उसमे कुर्मियों को जोड़कर केशव के सामने मजबूत चुनौती पेश किया.

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सिराथू बसपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था

कौशांबी की सिराथू सीट 2012 के चुनाव से पहले अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. यहां 1993 से 2007 तक बीएसपी ने लगातार चार बार जीत दर्ज की थी. बसपा के जीत में इंद्रजीत सरोज की अहम भूमिका भी थी. 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य वर्ग के लिए हो गई, जिसके बाद बीजेपी से केशव मौर्य 2012 में विधायक बने. इससे पहले यहां बीजेपी और समाजवादी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था. 

सिराथू में अगर जातीय समीकरणों की बात की जाए तो यहां 3 लाख 80 हजार 839 वोटर हैं. इनमें से 19 फीसदी सामान्य जाति के, 33 फीसदी दलित, 13 फीसदी मुस्लिम और करीब 34 फीसदी पिछड़े वर्ग से हैं. पिछड़ों में कुर्मी समाज के वोटर यहां निर्णायक भूमिका में हैं.

सिराथू में इंद्रजीत सरोज का सियासी प्रभाव

हालांकि, बदले हुए सियासी समीकरण कद्दावर दलित नेता इंद्रजीत सरोज बसपा छोड़कर सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं. उनके साथ बसपा के जिला अध्यक्ष रह चुके आनंद पटेल भी सपा में शामिल हो चुके हैं. पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के करीबी आनंद पटेल सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने पल्लवी पटेल को टिकट दे दिया. 

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राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कौशांबी में विकास के तमाम काम कराए जाने और सियासी और सामाजिक समीकरण साधने के बावजूद इस बार केशव प्रसाद मौर्य के लिए सिराथू की डगर आसान नहीं थी. सिराथू में पिछले कुछ चुनाव में जाति के साथ ही धार्मिक आधार पर भी वोटों का ध्रुवीकरण देखने को मिला. केशव खुद को सिराथू का बेटा बताकर चुनाव मैदान में उतरे तो पल्लवी पटेल खुद को कुर्मी समाज की बेटी बता कर चुनावी जंग में उतर गयीं. 

दलित वोटर सिराथू में निर्णायक 

बीजेपी ने कुर्मी समुदाय के मौजूदा विधायक शीतला पटेल का टिकट काटकर केशव मौर्य को उम्मीदवार बनाया. सपा ने इसीलिए पल्लवी पटेल को उतारकर कुर्मी बिरादरी का टिकट देने को मुद्दा बनाती रही. हालांकि, शीतला पटेल सिराथू में सक्रिय रहते हुए केशव मौर्य और बीजेपी के लिए वोट मांगते नजर आए. पहले भी माना जा रहा था कि इस चुनाव में यहां दलित वोटर निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं. 

केशव प्रसाद मौर्य के सामने पल्लवी पटेल के उतरने से सिराथू सीट पर सभी की निगाहें टिकी हुई थीं. यहां 30 फीसदी से ज्यादा दलित वोटरों का रुख काफी अहम साबित हुआ. ऐसे में इस इलाके में इंद्रजीत सरोज की पकड़ जिस तरह से दलित वोटों पर है. इंद्रजीत सरोज लगातार पल्लवी पटेल के पक्ष में वोट मांगते दिखे. जो कि केशव मौर्य के लिए काफी चुनौती भी साबित हुआ.

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