सूबे की राजधानी से सटे सीतापुर जिले को राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद अहम माना जाता हैं. इस जिले में जहां नैमिषारण्य और मिश्रिख जैसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं तो वहीं दूसरी ओर यह जिला देश-विदेश में पसंद की जाने वाली दरियों के निर्माण का केंद्र भी कहा जाता है. सीतापुर का आंख अस्पताल और प्लाईवुड फैक्ट्री भी इस जिले की पहचान हैं. पदमश्री और पद्मभूषण से सम्मानित डॉक्टर महेश प्रसाद मेहरे की ओर से स्थापित इस अस्पताल में राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक आ चुके हैं.
सीतापुर का आंख अस्पताल एशिया में स्थान रखता है. शहर और आसपास के इलाके सीतापुर सदर विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. सीतापुर से निकले कई नेताओं ने केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारों तक में प्रतिनिधित्व किया. राजनीतिक लिहाज से सीतापुर जिला महत्वपूर्ण स्थान रखता है. सीतापुर सदर विधानसभा सीट काफी समय तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की झोली में रही है. सीतापुर सदर सीट पर मौजूदा समय में भी बीजेपी का कब्जा है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
सीतापुर सदर विधानसभा सीट से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके राजेंद्र कुमार गुप्ता लगातार छह बार विधायक रहे थे. राजेंद्र कुमार गुप्ता कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त समेत कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे. समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे राधेश्याम जायसवाल ने अपने राजनीतिक गुरू राजेंद्र कुमार गुप्ता के विजय रथ को रोक दिया था. बीजेपी ने राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले राजेंद्र गुप्ता को बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का उपाध्यक्ष भी बनाया, उन्हें सक्रिय किए रखा लेकिन वे अपने जीवनकाल में सपा से ये सीट छीन न सके.
2017 का जनादेश
सीतापुर सदर विधानसभा सीट से सपा के राधेश्याम जायसवाल लगातार चार बार विधायक रहे. चार बार के विधायक सपा के दिग्गज राधेश्याम को बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे राकेश राठौर ने पराजित कर दिया. राकेश राठौर अपने तेवर के लिए जाने जाते हैं. राकेश राठौर इससे पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन तब उन्हें शिकस्त खानी पड़ी थी.
सामाजिक ताना-बाना
सीतापुर सदर विधानसभा सीट पर अनुमान के मुताबिक करीब सात लाख वोटर हैं. 2008 में हुए नए परिसीमन के बाद खैराबाद नगरपालिका क्षेत्र के जुड़ जाने से सीट के समीकरण में बदलाव हुआ है. सीतापुर सद विधानसभा क्षेत्र में दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है. मुस्लिम वोटर भी निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
सत्ताधारी दल का विधायक होने के बावजूद राकेश राठौर कई समस्याओं का निराकरण करा पाने में असफल रहे हैं. विधायक का दावा है कि उन्होंने प्रयास जरूर किए लेकिन परिणाम नकारात्मक ही रहे. सदर विधायक राकेश राठौर ने अपने कार्यकाल में सरायन नदी के उद्धार के लिए बीड़ा उठाया और अपने निजी खर्च पर नदी को नया स्वरुप दिया भी. विधायक के तेवर यहां भी बाधक बने और सरायन के उद्धार का कार्य भी पूरा नहीं हो सका. सपा की सरकार में बने शहर के नेशनल हाईवे पर स्थित ट्रॉमा सेंटर के संचालन के लिए भी उन्होंने सरकार को कई पत्र लिखे लेकिन वह भी अब तक सफेद हाथी की तरह जस का तस खड़ा है.
शहर से लेकर गांव तक की सड़कें खस्ताहाल हैं. बालिकाओं की शिक्षा के लिए जो डिग्री कॉलेज सपा सरकार में बनना शुरू हुआ था, वह भी अब तक शुरू नहीं हो सका है. पिछले दिनों राकेश राठौर की अखिलेश यादव से मुलाकात की तस्वीर भी कुछ दिनों पहले सामने आई थी. बीजेपी के लोग भी दबी जुबान ये कह रहे हैं कि राकेश को फिर से टिकट मिलेगा, इसकी संभावना कम है. वहीं, पूर्व विधायक राधेश्याम जायसवाल ने अपने कार्यकाल के विकास कार्य गिनवाए और भविष्य की योजनाएं भी बताईं. राधेश्याम जायसवाल ने आरोप लगाया कि सपा सरकार की कई परियोजनाएं बीजेपी की सरकार में शुरू नहीं हो सकी हैं.