scorecardresearch
 

Tirwa Assembly Seat: तिर्वा विधानसभा सीट पर कभी भी जीत नहीं रही है आसान

इस सीट पर किसी एक दल का कभी कब्‍जा नहीं रहा. हर बार विधानसभा चुनाव में यहां की जनता नई राजनीतिक पार्टी को मौका देती है. पहले विधानसभा चुनाव 1962 से 1967 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के होरीलाल विधायक रहे. 1969 में कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी रामरतन पांडेय के खाते में जीत गई थी.

Advertisement
X
यूपी Assembly Election 2022 तिर्वा विधानसभा सीट
यूपी Assembly Election 2022 तिर्वा विधानसभा सीट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पहला विधानसभा चुनाव 1962 में हुआ था
  • प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस, जनसंघ जीत दर्ज कर चुकी हैं

कन्नौज जिले के तिर्वा विधानसभा कभी तिर्वा रियासत के आखिरी राजा रहे राजा दुर्गा नारायण सिंह की विरासत की पहचान रही है. आज के दौर की बात करें तो यह विधानसभा राजनीतिक गलियारों में अपना एक अहम स्थान रखती है. यहां सभी बड़ी पार्टियों ने समय समय पर अपना परचम लहराया है. चाहे वह कांग्रेस हो बसपा हो या भाजपा और सपा. वर्तमान में यह सीट भाजपा के खाते में है और मोदी लहर के चलते 2017 में कैलाश राजपूत ने सपा के विजय बहादुर पाल को हराया था. यह विधानसभा जिला औरैया और कानपुर देहात बॉर्डर से जुड़ी हुई है.

Advertisement


राजनीतिक पृष्ठभूमि
कन्नौज जिले की तिर्वा विधानसभा (Tirwa Assembly Seat) पर किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा है. इस सीट पर पहला विधानसभा चुनाव 1962 में हुआ था. यहां 1962 से 1967 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के होरीलाल विधायक रहे. 1969 में कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी रामरतन पांडेय जीत हासिल की. 1974 में जनसंघ पार्टी से धर्मपाल ने अपना परचम लहराया. 1977 में जेएनपी से रामबक्श वर्मा, 1980 में कांग्रेस से कुंवर योगेंद्र सिंह, 1985 में जनता दल से रामनंदनी वर्मा ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद वर्ष 1991 से 1993 तक जनता पार्टी व सपा से अरविंद प्रताप सिंह विधायक रहे. वहीं 1996 में इस सीट पर बीजेपी के कैलाश राजपूत ने जीत हासिल की थी. 2002 में सपा से विजय बहादुर पाल ने चुनाव जीता. 2007 में कैलाश राजपूत ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 2012 में सपा के विजय बहादुर पाल ने बसपा प्रत्याशी कैलाश राजपूत को हराकर दोबारा जीत दर्ज की.

Advertisement

हालांकि कन्नौज जिले की तिर्वा विधानसभा-197 सीट पर किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा है. तिर्वा विधानसभा-197 सीट पर पहला विधानसभा चुनाव वर्ष 1962 में हुआ था. इस सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस, जनसंघ, जेएनपी, सपा, बसपा, बीजेपी पार्टियां अपना परचम लहरा चुकीं हैं.इस सीट पर वर्ष 1962 से 1967 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के होरी लाल विधायक रहे. उसके बाद वर्ष 1969 में कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी रामरतन पांडेय जीत हासिल की. इसके बाद 1974 में जनसंघ पार्टी से धर्मपाल ने अपना परचम लहराया. इसी क्रम में वर्ष 1977 में जेएनपी से रामबक्श वर्मा, 1980 में कांग्रेस से कुंवर योगेंद्र सिंह, 1985 में जनता दल से रामनंदनी वर्मा ने जीत दर्ज की थी.

इसके बाद वर्ष 1991 से 1993 तक जनता पार्टी व सपा से अरविंद प्रताप सिंह विधायक रहे. वर्ष 1996 में इस सीट पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया. जिसमें बीजेपी के कैलाश राजपूत जीत हासिल की थी. वर्ष 2002 में सपा से विजय बहादुर पाल ने चुनाव जीता. उसके बाद वर्ष 2007 में कैलाश राजपूत ने बसपा से टिकट लेकर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. वर्ष 2012 में सपा के विजय बहादुर पाल ने अपने प्रतिद्धंदी बीएसपी प्रत्याशी कैलाश राजपूत को हराकर जीत दर्ज की. चुनावी आंकड़े तिर्वा विधानसभा-197 सीट का प्रादेशिक राजनीति की पटल पर काफी अहम स्थान है. इस सीट पर किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा है. 

Advertisement

2017 का जनादेश
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी के कैलाश सिंह 100426 वोटों के साथ विजयी हुए थे, जबकि समाजवादी पार्टी के विजय बहादुर 76217 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर थे. बसपा के विजय सिंह ने 32036 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर कब्जा जमाया था. 2012 के चुनाव में इस सीट पर सपा की दबदबा देखने को मिला था. 2012 में सपा के विजय बहादुर 78391 वोटों के साथ विजयी हुए थे. वहीं दूसरे नंबर पर बसपा के कैलाश सिंह ने 45899 वोट और तीसरे नंबर पर बीजेपी के प्रत्याशी ने कब्जा जमाया था.

सामाजिक ताना-बाना
कन्नौज की तिर्वा विधानसभा में भी पिछड़ों का बोलबाला है. यहां करीब 21 -21 फीसदी वोटों के साथ यादव और लोधी बराबरी पर है. साल 2007 में लोधी, दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों की बदौलत बसपा के टिकट पर कैलाश राजपूत विधायक बने थे. 2012 में उन्हें सपा के विजय बहादुर पाल ने यादव, पाल और मुस्लिम वोट की बदौलत बुरी तरह हराया. 2017 में सपा यादव, पाल और मुस्लिम गठजोड़ व तिर्वा में कराए गये सबसे ज्यादा विकास कार्यों की बदौलत यहां अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी, लेकिन स्वर्गीय कल्याण सिंह के कहने पर बसपा छोड़कर भाजपा से टिकट पाने वाले कैलाश राजपूत ने सपा से यह सीट छीन ली. सपा प्रत्याशी विजय बहादुर पाल का अंदर ही अंदर हो रहे विरोध का भी फायदा यहां भाजपा को मिला था. 2022 के विधान सभा चुनाव में यहां सपा, भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होने के आसार हैं.

Advertisement

विधायक का रिपोर्ट कार्ड
कैलाश सिंह राजनीतिक किस्मत के धनी हैं. यही कारण है कि वह हमेशा सत्ता पक्ष के विधायक रहे हैं. 1996 में भाजपा से, 2007 में बसपा से और 2017 में भाजपा से विधायक चुने गए. हर बार उनकी पार्टी सत्ता में आई.

 

Advertisement
Advertisement