scorecardresearch
 

Unchahar Assembly Seat: राममंदिर आंदोलन हो या मोदी लहर, ऊंचाहार में नहीं खिला कमल

ऊंचाहार विधानसभा सीट पर 2012 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें सपा से मनोज पांडेय, स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य को मात देकर विधायक बने और अखिलेश सरकार में मंत्री बने.

Advertisement
X
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सपा के मनोज पांडेय यहां से लगातार दूसरी बार विधायक
  • इस सीट पर सबसे ज्यादा आबादी दलित मतदाताओं की

गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली जिले की ऊंचाहार विधानसभा सीट (183) लखनऊ और इलाहाबाद के मध्य में स्थिति है. राममंदिर आंदोलन हो या फिर मोदी लहर, यहां किसी का सियासी असर नहीं दिखा. ऊंचाहार यूपी की उन चुनिंदा विधानसभा सीटों में से एक है, जहां बीजेपी आजतक कमल नहीं खिल सकी. सपा से मनोज पांडेय लगातार दूसरी बार विधायक हैं. 2022 के चुनावी संग्राम में बीजेपी ऊंचाहार सीट पर काबिज होने को बेताब है जबकि सपा यहां से जीत की हैट्रिक लगाने की कवायद में है. वहीं, बसपा और कांग्रेस यहां वापसी के लिए बेताब हैं.

Advertisement

गंगा नदी के तटीय इलाके पर बसा ऊंचाहार एक समय मुस्तफाबाद कस्बे के नाम से जाना जाता था. यहां का पोस्ट ऑफिस और प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय आज भी मुस्तफाबाद की याद दिलाते हैं जबकि बाकी चीजें ऊंचाहार से पहचानी जा रही हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 115 किलोमीटर जबकि इलाहाबाद से 85 किलोमीटर की दूरी पर ऊंचाहार विधानसभा सीट स्थित है. आसपास के शहरों लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद से ऊंचाहार सड़कों और रेल लाइन से अच्छे से जुड़ा हुआ है.

ऊंचाहार रायबरेली के जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यहां अवधी और हिंदी भाषा बोली जाती है. ऊंचाहार एक्सप्रेस के नाम से प्रयागराज से चंडीगढ़ के बीच ट्रेन चलती है. इतना ही नहीं ऊंचाहार में नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) प्लांट स्थिति है. ऊंचाहार का यह पावर प्लांट देश के तमाम राज्यों को बिजली सप्लाई देता है, पर खुद बिजली की किल्लतों से जूझता रहता है.

Advertisement

राजनीतिक पृष्ठभूमि

ऊंचाहार का इलाका पहले डलमऊ विधानसभा सीट के अंतर्गत था, लेकिन साल 2008 में परिसीमन के बाद डलमऊ का नाम खत्म हो गया. डलमऊ का कुछ हिस्सा सरेनी विधानसभा सीट में चला गया और बाकी हिस्से को मिलाकर इस सीट को ऊंचाहार विधानसभा का नाम दे दिया गया. ऊंचाहार सीट पर अभी तक दो बार 2012 और 2017 में चुनाव हुए हैं. दोनों बार यहां से सपा उम्मीदवार के तौर पर मनोज पांडेय ने जीत दर्ज की है जबकि योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य मामूली वोटों से दो बार से हारे हैं.

आजादी के बाद करीब दो दशक तक उंचाहार का इलाका सलोन विधानसभा सीट का हिस्सा हुआ करती थी. 1952 से 1969 तक ऊंचाहार के लोगों ने सलोन विधानसभा सीट के लिए वोट किया. इस दौरान सलोन में सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है. 1971 के परिसीमन के बाद ऊंचाहार का इलाका सलोन सीट से काटकर डलमऊ विधानसभा सीट में शामिल कर दिया गया है.

हालांकि, डलमऊ विधानसभा सीट पहले से ही वजूद में थी, जहां 1991 तक कांग्रेस का कब्जा रहा और पहली बार उसे 1993 में हार का मुंह देखना पड़ा है. ऊंचाहार के शामिल होने के बाद डलमऊ विधानसभा सीट पर पहली बार 1974 में विधानसभा चुनाव हुआ और मुन्नू लाल द्विवेदी विधायक चुने गए. इसके बाद 1977 में दोबारा द्विवेदी विधायक बने. इसके बाद कांग्रेस ने मुन्नूलाल द्विवेदी की जगह कुंवर हरिनारायण सिंह पर दांव लगाया.

Advertisement

कांग्रेस से कुंवर हरिनारायण सिंह सबसे ज्यादा चार बार विधायक रहे. हरिनारायण सिंह कभी भी डलमऊ विधानसभा सीट से चुनाव नहीं हारे. कुंवर हरिनारायण सिंह के निधन के बाद 1993 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा. 1993 में सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर गजाधर सिंह विधायक बने. इसके बाद लंबे समय से चुनावी मात खा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा का दामन थामा.

स्वामी प्रसाद मौर्य 1996 में पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और मायावती सरकार में मंत्री बने. इस सीट से पहले ओबीसी विधायक ही नहीं बल्कि मंत्री बनने वाले पहले नेता बने. इसके बाद वो 2002 चुनाव में दोबारा विधायक चुने गए. इसके बाद साल 2007 के विधानसभा चुनाव में कुंवर हरिनारायण सिंह के बेटे अजय पाल सिंह कांग्रेस से चुनावी मैदान में उतरे और स्वामी प्रसाद मौर्य को मात देकर कांग्रेस की वापसी कराई. इसके बाद यह सीट डलमऊ से ऊंचाहार में बदल गई.

उंचाहार विधानसभा सीट पर 2012 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें सपा से मनोज पांडेय, स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य को मात देकर विधायक बने और अखिलेश सरकार में मंत्री बने. सपा के मनोज पांडेय को 61930 वोट मिले जबकि बसपा प्रत्याशी उत्कृष्ट मौर्य को 59348. कांग्रेस के अजय पाल सिंह तीसरे और बीजेपी के रमेश मौर्या चौथे नंबर पर रहे. इसके बाद 2017 में मनोज पांडेय दोबारा विधायक चुने गए.

Advertisement

सामाजिक ताना-बाना

2011 के आंकड़ों के अनुसार ऊंचाहार विधानसभा सीट पर कुल मतदाता 3,24,885 है, जिसमें 51.5 फीसदी पुरुष हैं, जबकि 48.5 फीसदी महिलाएं हैं. यहां जातीय समीकरण के लिहाज से देंखे तो सबसे ज्यादा आबादी दलित मतदाता है, खासकर पासी समुदाय के. अनुमान के मुताबिक यहां करीब 75 हजार पासी समुदाय के वोटर हैं. इसके बाद करीब 50 हजार यादव, 45 हजार मौर्या, 30 हजार ब्राह्मण, 26 हजार राजपूत, 28 हजार मुस्लिम, 25 हजार चमार, 12 हजार लोध, 10 हजार कुर्मी सहित करीब 50 हजार अन्य ओबीसी जातियां हैं.

2017 का जनादेश

2017 के विधानसभा चुनाव में ऊंचाहार सीट पर कुल 13 प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन मुकाबला सपा और बीजेपी के बीच रहा. ऊंचहार सीट पर कुल 325371 मतदाता थे, जिनमें से 207088 लोगों ने वोटिंग की. इस तरह से 63.64 फीसदी मतदान रहा था. सपा उम्मीदवार मनोज पांडेय को 59103 (28.89%) फीसदी वोट मिले जबकि बीजेपी के उत्कृष्ट मौर्य के 57169 (27.95%) वोट मिले थे. इस तरह से सपा को महज करीब 2000 वोटों से जीत मिली. यहां बसपा प्रत्याशी विवेक विक्रम सिंह ने 45356 (22.17%) वोट हासिल किए और कांग्रेस प्रत्याशी अजय पाल सिंह को 34274 (16.75%) वोट मिले.

विधायक का रिपोर्ट कार्ड

ऊंचाहार विधानसभा सीट से विधायक मनोज कुमार पांडेय का जन्म 15 अप्रैल 1968 को हुआ. उनके पिता का नाम डॉ. रमाकांत पांडेय है. उन्होंने रायबरेली के फिरोजगांधी कॉलेज से स्नातक किया और बाद सामाजिक विज्ञान में पीएचडी की. 1993 में सपा के युवजन सभा के प्रदेश महामंत्री बने, लेकिन बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया. साल 2000 में बीजेपी के टिकट पर पहली बार रायबरेली नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए, लेकिन 2005 में सपा में वापसी कर गए. इसके बाद वे 2007 में सुल्तानपुर से लंभुआ सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़े, पर जीत नहीं सके. फिर उन्होंने ऊंचाहार सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया और लगतार दूसरी बार विधायक हैं.

Advertisement

राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय रहते हैं, जिसके चलते क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है. इतना ही नहीं यहां जातीय समीकरण भी उनके पक्ष में है. मंत्री रहते हुए मनोज पांडेय ने क्षेत्र में बिजली के 5 सब स्टेशन बनवाए और 5 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बने हैं. हालांकि, आय से आधिक संपत्ति मामले में मनोज पांडेय खिलाफ जांच चल रही है और उनके खिलाफ रायबरेली में अवैध असलहा रखने और अपहरण समेत कई मुकदमे दर्ज हैं. ब्राह्मण नेता के तौर पर अपनी पहचान जिले में बनाई है, जिसके चलते क्षेत्र के ब्राह्मण समुदाय के बीच उनकी मजबूत पकड़ है.
 

विविध

मनोज पांडेय का राजनीतिक उभार उनके भाई राकेश पांडेय की हत्या के बाद हुआ. राकेश पांडेय की हत्या का आरोप रायबरेली के सदर विधायक रहे अखिलेश सिंह के ऊपर लगा था, जिसके चलते जिले की सियासत ब्राह्मण बनाम राजपूत के बीच हो गई थी. राकेश पांडेय हत्याकांड का सियासी लाभ मनोज पांडेय को मिला. आय से आधिक संपत्ति मामले में पूर्व मंत्री के ऊपर आरोप हैं कि उनके नाम पर रायबरेली, लखनऊ समेत अन्य जिलों में कई बेनामी संपत्तियां हैं. विधानसभा सत्र के दौरान मनोज पांडेय की कुर्सी के नीचे पीईटीएन विस्फोटक पाउडर मिलने से हड़कंप मच गया था, जिसके बाद उनसे पूछताछ भी हुई थी. 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement