उत्तर प्रदेश में सवा चार साल पहले सत्ता गंवाने वाले समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अब अगले साल होने वाले चुनाव में वापसी के लिए बेताब हैं. सपा सूबे तमाम छोटे दलों के साथ मिलकर 2022 के चुनावी मैदान में उतरने की प्लान बनाया है. इसी कड़ी में अखिलेश अपने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया. जबकि इससे पहले तक वह अपने चाचा को एडजस्ट करने और पार्टी के विलय का प्रस्ताव दे रहे थे, जिस पर शिवपाल राजी नहीं थे. ऐसे में माना जा रहा है कि सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए अखिलेश ने शिवपाल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का मन बनाया है.
पूर्व मुख्यमंत्री सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को आजतक से खास बातचीत में साफ कर दिया कि यूपी में अगले साल होने वाले चुनाव में कांग्रेस और बीएसपी के साथ गठबंधन नहीं करेगी बल्कि छोटी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव को लेकर कहा कि सपा उनकी पार्टी को भी साथ लेकर चलेगी और हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे.
शिवपाल से अखिलेश करेंगे गठबंधन
अखिलेश से पूछा गया कि क्या चाचा शिवपाल को चुनाव से पहले साथ लाने की कोशिश हो रही है? क्या उनकी पार्टी भी साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी? इस पर अखिलेश ने जवाब देते हुए कहा, 'शिवपाल यादव की जसवंतनगर सीट पर सपा चुनाव नहीं लड़ेगी. इसके अलावा अगर उनके साथ और कोई है जो राजनीतिक परिस्थितियों के साथ कहीं लड़ सकता है तो सपा विचार करेगी. प्रदेश के जितने भी छोटे दल हैं उनको साथ लेकर सपा चलेगी. उनका (शिवपाल) भी दल है. उस दल को भी साथ लेगी.'
इसके बाद जब अखिलेश से पूछा गया कि शिवपाल से गठबंधन होगा या सपा में वापस आ जाएंगे. इस पर अखिलेश ने साफ कहा कि उनकी पार्टी के साथ गठबंधन ही होगा. परिवार में तो पहले से ही हैं. अखिलेश ने पहली बार शिवपाल की पार्टी के साथ गठबंधन करने की बात सार्वजनिक तौर पर कही है.
इससे पहले तक सपा प्रमुख सिर्फ जसवंत नगर सीट शिवपाल के लिए छोड़ने की बात कर रहे थे और सत्ता में आने पर उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने का प्रस्ताव दे रहे थे. सपा की इस पेशकश को शिवपाल यादव ने ठुकरा दिया था, लेकिन सपा के साथ गठबंधन की उम्मीद को नहीं छोड़ा था.
पंचायत चुनाव में चाचा-भतीजे आए करीब
उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इटावा में 'यादव परिवार' की प्रतिष्ठा बचाने के लिए अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव ने अघोषित रूप से तालमेल कर लिया था. बीजेपी ने सपा के गढ़ इटावा जिले की सभी 24 जिला पंचायत सदस्य की सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, सांसद से लेकर विधायक तक ने यहां प्रचार किया था और पूरा जोर लगाया था, लेकिन शिवपाल-अखिलेश के अंदरूनी गठजोड़ के चलते बीजेपी यहां महज एक सीट ही जीत सकी. सपा ने 9 सपा, 8 प्रसपा, 1 बसपा, 1 बीजेपी से और 5 निर्दलीय जीते हैं.
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इटावा जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए भी शिवपाल यादव ने सपा प्रत्याशी अभिषेक यादव उर्फ अंशुल को समर्थन दे रखा था. यह समीकरण पूरे यादव बेल्ट में देखने को मिला है. परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए साथ आकर चाचा-भतीजा बीजेपी को काफी हद तक रोकने में कामयाब रहे. माना जाता है कि इसी तालमेल को यूं ही जारी रखने के लिए 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने अपना चाचा शिवपाल यादव के साथ गठबंधन करने का फैसला किया है.
मुलायम कुनबे में कैसे छिड़ी वर्चस्व की जंग
बता दें कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह कुनबे में वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी. इसके बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर अपना एकछत्र राज कायम कर लिया था. अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गहरी खाई हो गई थी. हालांकि, मुलायम सिंह यादव सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दोनों नेताओं के बीच सुलह की कई कोशिशें कीं, लेकिन सफलता नहीं मिली. परिवार की कलह का खामियाजा सपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा. अखिलेश को सत्ता गवांनी पड़ी और पार्टी भी टूट गई. इस तरह से मुलायम की पार्टी और परिवार दोनों ही बंट गए.
लोकसभा चुनाव में सपा की करारी हार
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ समाजवादी मोर्चे का गठन किया और फिर कुछ दिनों के बाद उन्होंने अपने मोर्चे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में तब्दील कर दिया. लोकसभा चुनाव 2019 में शिवपाल यादव ने भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद सीट से मैदान में उतर गए. यहां सपा कार्यकर्ता दो धड़ों में बंट गए, जिसके चलते चाचा-भतीजे दोनों को चुनावी मात खानी पड़ी.
शिवपाल भले ही चुनाव नहीं जीते, लेकिन फिरोजाबाद, इटावा, कन्नौज और बदाऊं जैसी परंपरागत सीट पर बसपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी सपा हार गई. मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह यादव बहुत मामूली वोटों से जीत सके. 2019 के चुनाव में सपा महज पांच सीटें ही मिली.
शिवपाल सपा से अलग होकर फेल रहे
वहीं, शिवपाल यादव भी सपा से अलग होनेके बाद बहुत बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके हैं. पिछले साल हुए उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामीण विकास बैंकों के चुनाव में शिवपाल के समर्थकों को बीजेपी के हाथों करारी मात खानी पड़ी. 1991 से अब तक सहकारिता के क्षेत्र में सपा और खासकर 'यादव परिवार' का एकाधिकार रहा है. यहां तक कि मायावती के दौर में भी सहकारी ग्रामीण विकास बैंक पूरी तरीके से यादव परिवार के कंट्रोल में ही रहा, लेकिन बीजेपी ने शिवपाल यादव के तिलिस्म तोड़कर कब्जा जमा लिया. शिवपाल सिंह यादव ग्रामीण विकास बैंक के सभापति रहे हैं, लेकिन अब बीजेपी का कब्जा हो गया है.
2017 के विधानसभा, 2019 के लोकसभा और कॉपरेटिव के चुनाव के बाद शिवपाल और अखिलेश के सामने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की चुनौती है. ऐसे में अब दोनों नेता एक बार फिर साथ आकर अपनी खोई हुई सियासी जमीन को दोबारा से पाना चाहते हैं, जिसके लिए शिवपाल कई बार सार्वजनिक रूप से सपा के साथ गठबंधन करने की बात करते रहे हैं और अब अखिलेश ने भी ऐलान करके साफ कर दिया है कि 2022 का चुनाव चाचा-भतीजे एक साथ चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. हालांकि, यह जोड़ी कितना सफल होती है यह तो वक्त ही बताएगा?