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यूपी में मायावती के दो सिपहसलार, क्या लगाएंगे बसपा की नैया पार?

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने में करीब 6 महीने बचे हैं. सूबे की सत्ता में एक बार फिर वापसी के लिए मायावती ने बसपा के खोए हुए राजनीतिक जनाधार को वापस लाने के लिए मजबूत सिपहसलारों को चुनावी रण मोर्चे पर लगा दिया है और खुद लखनऊ में रहकर सियासी बिसात बिछाने में जुटी हैं. 

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सतीश चंद्र मिश्रा और मायावती
सतीश चंद्र मिश्रा और मायावती
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मायावती 2022 के चुनाव के लिए हुईं सक्रिय
  • सतीश चंद्र मिश्रा के कंधों पर ब्राह्मणों का जिम्मा
  • भीम राजभर को OBC सम्मेलन के लिए लगाया

साल 2019 लोकसभा चुनावों के बाद से नजरों से लगभग ओझल रहने वाली बसपा प्रमुख मायावती सियासी तौर पर फिर से सक्रिय हो गई हैं, जब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने में करीब 6 महीने बचे हैं. सूबे की सत्ता में एक बार फिर वापसी के लिए मायावती ने बसपा के खोए हुए राजनीतिक जनाधार को वापस लाने के लिए मजबूत सिपहसलारों को चुनावी रण मोर्चे पर लगा दिया है और खुद लखनऊ में रहकर सियासी बिसात बिछाने में जुटी हैं. 

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बसपा में फिलहाल मायावती के अलावा कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है. बसपा के पुराने और मजबूत नेता मायावती के रवैये की वजह से पार्टी छोड़ चुके हैं या फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. इसके चलते बीएसपी में जनाधार वाले चुनिंदा नेता ही बचे हैं, जिनके सहारे 2022 की चुनावी जंग मायावती फतह करना चाहती हैं. विधानसभा चुनाव की लड़ाई में अभी तक कमजोर मानी जा रही मायावती ने सतीश मिश्रा को आगे कर ब्राह्मण कार्ड चला तो प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर के जरिए ओबीसी सम्मेलन शुरू कर अपने सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने में जुट गई हैं. 

मायावती साल 2007 की तरह ब्राह्मणों के सहारे सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होना चाहती हैं. यूपी के ब्राह्मण समुदाय को साधने के लिए मायावती ने बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को जिम्मेदारी सौंप रखी है. सतीश चंद्र मिश्रा ब्राह्मण सम्मेलन के दो चरण के तीन दर्जन जिलों का दौरा कर चुके हैं और अब तीसरे चरण के 16 जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन शुरू कर दिए हैं. 

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सतीश चंद्र मिश्रा ने ब्राह्मण सम्मेलन का आगाज अयोध्या में रामलला के दर्शन से किया था, जिसके बाद अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर, प्रयागराज, कौशांबी, अमेठी, प्रतापगढ़, रायबरेली में कार्यक्रम किया. इसके बाद दूसरा चरण एक अगस्त से मथुरा के वृंदावन से शुरू किया था. जिसके तहत आगरा, फिरोजाबाद, कासगंज, एटा, अलीगढ़, हाथरस, शाहजहांपुर, बरेली, बदायूं, लखीमपुरखीरी, सीतापुर, गाजियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, अमरोहा, मुरादाबाद सहित 18 जिलों का दौरा किया. 

बसपा महासचिव अभी तक सूबे में 50 से ज्यादा ब्राह्मण सम्मेलन को संबोधित कर चुके हैं. सतीश मिश्रा एक दिन में कम से कम दो ब्राह्मण सम्मेलन के कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. यूपी के सभी 75 जिलों में जाने का कार्यक्रम बना रखा है. सतीश चंद्र मिश्रा ब्राह्मण सम्मलेन के दौरान मायावती सरकार में उनके कार्यों को गिनाने के साथ-साथ 2022 में दलित-ब्राह्मण समीकरण को मजबूत करने की अपील कर रहे हैं. इतना ही नहीं वो ब्राह्मण समाज को यह भी बता रहे हैं कि बीजेपी सरकार में उनके साथ कैसे व्यवहार किए गए हैं. 

सतीश चंद्र मिश्रा ब्राह्मण सम्मेलन के दौरान दूसरे दलों के ब्राह्मण नेताओं को बसपा में शामिल भी करा रहे हैं. अंबेडकरनगर में पवन पांडेय की बसपा में वापसी हो गई है. ऐसे ही प्रतापगढ़ के रानीगंज में पूर्व विधायक रामशिरोमणि शुक्ला बसपा में शामिल हो गए हैं. इसी तरह से वो जहां भी कार्यक्रम कर रहे हैं और पूर्व विधायक या नेता को पार्टी की सदस्यता दिलाकर माहौल बनाने का काम कर रहे हैं. ब्राह्मण सम्मेलन से मायावती खुश हैं. इस बात को कई बार खुल कर कह चुकी हैं. 

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मायावती इस बार के चुनाव में नए सियासी फॉर्मूले को तैयार कर रही है, उसके लिहाज से ओबीसी को प्राथमिकता देने की रणनीति है. ओबीसी समुदाय को साधने के लिए मायावती ने बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को लगा रहा है. ब्राह्मण सम्मेलन की तर्ज पर बसपा का ओबीसी सम्मेलन भी अयोध्या से शुरू हुआ है. इसके जरिए बसपा ने ओबीसी की अतिपिछड़ी जातियों को जोड़ने की रणनीति बनाई है.  

बसपा का प्रदेश के हर जिले में कम से कम एक से दो ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देने का भी प्लान है. यूपी में तमाम ओबीसी जातियां हैं, उन पर बसपा की दांव खेलने की रणनीति है. सूबे में करीब 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी मतदाता हैं, जो सियासी तौर पर निर्णायक भूमिका में हैं. बीजेपी का फोकस भी इन्हीं ओबीसी जातियों पर है, जिनके सहारे 2017 में वापसी की. यही वजह है कि बसपा इन्हीं ओबीसी जातियों को अपने पाले में लाकर सूबे की सत्ता में वापसी की जुगत में लगी है. 

मायावती अपने सिपहसलारों के जरिए जातीय समीकरण सेट करने में जुटी हैं तो खुद लखनऊ में डेरा जमाकर यह बताने की कोशिश में हैं कि बीजेपी के खिलाफ वही एकमात्र विकल्प हैं. इसीलिए वो बीजेपी के साथ-साथ सपा-कांग्रेस को लेकर ज्यादा मुखर हैं ताकि अपने आप को प्रमुख विपक्ष के तौर पर साबित कर सकें. मायावती अपने मतदाताओं को बताने की कोशिश में हैं कि सपा की अब कोई अहमियत नहीं है. इसी के साथ वो यह भी साबित करने में जुटी हैं कि यूपी में हम ही बीजेपी के प्रमुख विरोधी हैं.

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