उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में लग गई हैं. समाजवादी पार्टी (सपा) भी 12 अक्टूबर से अपनी रथयात्रा की शुरुआत कर रही है, लेकिन सपा की इस रथयात्रा को चुनौती उनकी ही पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) लोहिया बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव देने वाले हैं.
दरअसल, प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने 12 अक्टूबर से अपनी सामाजिक परिवर्तन यात्रा निकालने का फैसला किया था. इससे पहले शिवपाल ने अपने भतीजे और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को अल्टीमेटम दिया था कि 11 अक्टूबर तक हमारे गठबंधन पर फैसला कर लें, नहीं तो हम 12 अक्टूबर से मैदान में निकल पड़ेंगे.
शिवपाल सिंह यादव के इस अल्टीमेटम पर अखिलेश यादव ने बड़ा दांव चल दिया है. अखिलेश यादव ने मंगलवार को ऐलान कर दिया कि वह 12 अक्टूबर से अपनी रथयात्रा की शुरुआत कर देंगे. अखिलेश के इस ऐलान से साफ हो गया कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के आंगन से अब 12 अक्टूबर को दो रथ निकलेंगे.
गठबंधन की सभी कोशिशें अभी तक नाकाम
शिवपाल सिंह यादव हर मंच से कह चुके हैं कि वह समाजवादी पार्टी से गठबंधन करना चाहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव की ओर से बात अटकी है. अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि शिवपाल को एडजस्ट किया जाएगा. बीते दिनों मुलायम सिंह यादव ने भी अखिलेश और शिवपाल को एक मंच पर लाने की कोशिश की, लेकिन बात अभी तक बन नहीं पाई है.
अखिलेश पर भारी न पड़ जाए शिवपाल की रथयात्रा
2016 में मुलायम कुनबे की लड़ाई सड़क पर आ गई थी. इसके बाद अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव सियासी तौर पर अलग हो गए थे, हालांकि 2017 में शिवपाल सिंह ने जसवंतनगर का चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा, लेकिन उनके करीबियों को टिकट नहीं मिला. इसका खामियाजा सपा को उठाना पड़ा और सपा महज 47 सीटों पर सिमट गई.
इसके बाद शिवपाल सिंह यादव ने अपनी पार्टी प्रसपा का गठन किया और 2019 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर अपने प्रत्याशी को उतारा. इसका खामियाजा सपा को उठाना पड़ा और कई सीटें सपा के हाथ से खिसक गई. इसमें फिरोजाबाद की सीट सबसे अहम है, जहां प्रसपा को 91 हजार वोट मिले थे और सपा 28 हजार वोटों से चुनाव हार गई थी.
अखिलेश-शिवपाल के लिए करो-मरो की स्थिति
बसपा के साथ गठबंधन के बाद भी 2019 के चुनाव में सपा महज 5 सीटें जीत पाई और बदायूं, फिरोजाबाद, कन्नौज, इटावा की सीटें गंवा दी थी, जिसे सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. इससे पहले विधानसभा चुनाव में 47 सीटों पर सिमट गई. यानी लगातार दो चुनावों में सपा का प्रदर्शन खराब रहा. ऐसे में 2022 का चुनाव सपा के लिए करो-मरो की स्थिति वाला है. अखिलेश के सामने सपा को फिर से सत्ता में लाने की चुनौती है तो शिवपाल के सामने सियासी जमीन बचाने की.
शिवपाल सिंह यादव की कोशिश सपा के साथ गठबंधन की है, लेकिन अखिलेश यादव की ओर से अभी तक कोई संकेत नहीं मिल रहा है. जैसे ही अखिलेश ने भी 12 अक्टूबर को रथयात्रा निकालने का ऐलान किया तो शिवपाल सिंह यादव उन्हें फोन और मैसेज करने लगे, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया.
शिवपाल ने कौरवों-पांडवों का किया जिक्र
मंगलवार को इटावा में शिवपाल सिंह यादव ने कहा, 'अब तो युद्ध ही होना है क्योंकि द्रोणाचार्य और भीष्म को कोई नहीं मार सकता था, पांडवों ने तो 5 गांव मांगे थे और पूरा राज्य कौरवों के लिए छोड़ दिया था, उसी तरह मैंने भी अपने साथियों के लिए सम्मान मांगा था, लेकिन अब मैं इंतजार करते-करते थक गया हूं, आज भी मैंने फोन किया था, मैसेज किया था, बात कर लो, बात करना जरूरी है, भाजपा को हटाना भी जरूरी है लेकिन अभी तक कोई बात नहीं हुई.'
किन जिलों में सपा का खेल बिगाड़ सकते हैं शिवपाल
शिवपाल सिंह यादव को मुलायम कुनबे का सबसे बड़ा जमीनी नेता माना जाता है. यूपी के हर जिले में उनके समर्थकों की लंबी संख्या है. यही वजह है कि जब शिवपाल ने अपनी पार्टी बनाई तो सपा के कई नेता उसमें शामिल हो गए थे. अब अगर शिवपाल सिंह यादव एक बार फिर सपा से अलग होकर चुनाव लड़ते हैं तो इसका बड़ा नुकसान अखिलेश को होगा.
शिवपाल यादव की पकड़ इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, बदायूं, संभल, कन्नौज, फर्रुखाबाद और कानपुर देहात में है. इसके अलावा आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर और बलिया में शिवपाल सिंह यादव के बड़ी संख्या में समर्थक है. प्रसपा अगर अपने टिकट पर इन जिलों में प्रत्याशी उतारती है तो सपा का बेस वोट (यादव) बंट सकता है.
प्रसपा ने कहा- याचना नहीं अब रण होगा
अखिलेश यादव के 12 अक्टूबर को ही रथयात्रा निकालने के ऐलान से प्रसपा नाराज है. प्रसपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता अनीता मिश्रा ने आजतक डिजिटल से बात करते हुए कहा, 'हमारी सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा 12 अक्टूबर से प्रस्तावित है, इसके बावजूद अखिलेश जी ने ठीक उसी 12 अक्टूबर को अपनी रथयात्रा को घोषणा कर के पुनः नीच दिखाने की कोशिश की.
अनीता मिश्रा ने कहा कि इस कृत्य से उनका दम्भ झलकता है, शिवपाल जी ने बार-बार एकता की बात करते हुए बीजेपी सरकार के खिलाफ एक पुख्ता जनमत तैयार करने की कोशिश की है, परन्तु ऐसा होता हुआ दिखता नहीं है, हम पूरे दमखम के साथ 2022 के चुनाव में जाएंगे, अब परिणाम चाहे जो भी हो, आज की परिस्थितियां महाभारत के पहले की घटना बरबस ही याद दिलाती है, याचना नहीं अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा... तय है कि रण महा भीषण होगा.
मथुरा से शुरू होगी शिवपाल की रथयात्रा
शिवपाल सिंह यादव की रथयात्रा की शुरुआत 12 अक्टूबर को मथुरा से होगी. 6 चरणों में निकलने वाली यह रथयात्रा आगरा, इटावा, कानपुर देहात, झांसी, महोबा, फतेहपुर, प्रयागराज, लखनऊ, बरेली, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, अलीगढ़, एटा, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर, बलिया, आजमगढ़, लखीमपुर, जौनपुर, वाराणसी और मिर्जापुर जिलों में जाएगी.