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Siddharth Nagar: 2017 विधानसभा चुनाव में यहां सभी 5 सीटें NDA ने जीती थीं, 2022 में बीजेपी और सपा के बीच मुकाबला

23 दिसम्बर 1988 को सिद्धार्थनगर जिला बना. इसमें 5 विधानसभाएं बनाई गईं. इन्हें शोहरतगढ़, कपिलवस्तु, बांसी, डुमरियागंज, इटवा विधानसभा के नाम से जाना जाता है. जिले के अस्तित्व में आने के बाद अब तक 8 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इस जिले में एक संसदीय सीट है, जिसे डुमरियागंज संसदीय क्षेत्र के नाम जाना जाता है.

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सिद्धार्थनगर जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं
सिद्धार्थनगर जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं

सिद्धार्थनगर जिला उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े 8 जनपदों में से एक है. इसकी उत्तरी सीमा नेपाल से लगी है, जबकि दक्षिणी सीमा बस्ती जिले से, पूर्वी सीमा महाराजगंज जिले से और पश्चिमी सीमा बलरामपुर जिले से लगी है. दुनियाभर में ये जिला महात्मा गौतम बुद्ध की क्रीड़ा स्थली के रूप में जाना जाता है. साथ ही पांडवो द्वारा स्थापित महाभारत कालीन पल्टा देवी मंदिर भी यही स्थित है. 1988 में बस्ती जिले के उत्तर के भूभाग को काटकर सिद्धार्थनगर जिला बनाया गया. यहां कोई बड़ी इंड्रस्टी नहीं है, जिसकी वजह से जीवन यापन के लिए यहां के लोग महानगरों की ओर पलायन करते हैं. जीविका का मुख्य साधन कृषि है. प्रतिवर्ष यहां के लोग बाढ़ की विभीषिका का सामना करते हैं.  

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राजनीतिक पृष्ठभूमि:-

23 दिसम्बर 1988 को सिद्धार्थनगर जिला बना. इसमें 5 विधानसभाएं बनाई गईं. इन्हें शोहरतगढ़, कपिलवस्तु, बांसी, डुमरियागंज, इटवा विधानसभा के नाम से जाना जाता है. जिले के अस्तित्व में आने के बाद अब तक 8 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इस जिले में एक संसदीय सीट है, जिसे डुमरियागंज संसदीय क्षेत्र के नाम जाना जाता है. यहां से बीजेपी के जगदम्बिका पाल बर्तमान सांसद है. 2017 विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने 5 में से 4 सीटें जीती थीं. वहीं, शोहरतगढ़ सीट बीजेपी के सहयोगी दल से अपना दल के अमर सिंह चौधरी ने जीत दर्ज की थी. यहां की कपिलवस्तु विधानसभा आरक्षित श्रेणी की सीट है. हॉल ही में यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा की, साथ ही प्रदेश में नए बने 9 मेडिकल कॉलेजों का वर्चुअल लोकार्पण किया.

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आगामी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर नेताओ के दलबदल का सिलसिला भी शुरू हो चुका है. बीजेपी के 3 नेता बसपा में शामिल हो चुके हैं और डुमरियागंज, इटवा और शोहरतगढ़ सीट से ताल ठोक रहे हैं. खास बात यह है कि बीएसपी ने बीते चुनाव में इन सीटों पर दूसरे स्थान पर रहने वाले अपने मुस्लिम नेताओं को दरकिनार कर दो ब्राह्मण और एक ठाकुर जाति प्रत्याशी बनाने का ऐलान किया. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी और सपा के बीच मुख्य मुकाबला देखा जा रहा है. 

5 में से दो सीटें मुस्लिम बाहुल्य, एक पर बजता है ओबीसी का डंका

जिले की मतदाताओं की बात करे तो कुल 18,92,949 वोटर हैं. इनमें 1020029 पुरुष और 872735 महिला मतदाता व 185 अन्य मतदाता हैं. सभी सीटों पर जातिगत और धार्मिक समीकरण अलग अलग हैं. अगर डुमरियागंज और शोहरतगढ़ सीट की बात करें तो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं, जोकि किसी भी प्रत्याशी को जीतने हारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वहीं कपिलवस्तु विधानसभा आरक्षित श्रेणी की शीट हैं, लेकिन लगभग 28 % ओबीसी वोट हैं, यही वोट किसी भी प्रत्याशी की हार जीत तय करते हैं. बांसी सीट की बात करें तो यहां के लोग अपने राजा जय प्रताप सिंह पर काफी विश्वास करते हैं. इसी वजह से वह यहां से 7 बार विधायक चुने जा चुके हैं. इटावा सीट की बात करें तो यहां से सपा के कद्दावर नेता माता प्रसाद पांडेय चुनाव लड़ते हैं, बीते चुनाव में बीजेपी के सतीश द्विवेदी ने इन्हे हराकर यह सीट बीजेपी के खाते में डाल दी थी. यहां मुस्लिम और ओबीसी वोटर लगभग बराबर संख्या में हैं. ऐसे में किसी भी उम्मीदवार की हार जीत के फैसले में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है.  

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2017 का जनादेश

 2017 के जनादेश की बात करें तो जिले की सभी 5 विधानसभाओं में बीजेपी और बीजेपी के सहयोगी दल ने जीत दर्ज की थी. शोहरतगढ़ ,सीट से अमर सिंह चौधरी (अपना दल ) ने बसपा के जमील सिद्धिकी को 22124 वोटों से हराया था. कपिलवस्तु से श्यामधनी राही (बीजेपी) ने सपा के विजय पासवान को 38154 मतों से हराकर जीत दर्ज की थी. बांसी सीट से जय प्रताप सिंह (बीजेपी) ने सपा के लाल जी यादव को 18942 मतों से हराकर जीत दर्ज की, इटवा से सतीश द्विवेदी (बीजेपी ) ने बसपा के अरसद खुर्शीद को 10208 मतों से हराकर जीत दर्ज की ,डुमरियागंज से राघवेंद्र प्रताप सिंह (बीजेपी ) ने बसपा की सैय्यदा खातून को 227 मतों से  हराकर जीत दर्ज की. इस तरह शोहरतगढ़ ,इटवा और डुमरियागंज में बीएसपी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे. वहीं कपिलवस्तु सीट एवं बांसी सीट पर सपा के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे. 

जिले की मुख्य समस्याएं

जिले की मुख्य समस्याओं की बात करें तो यहां के लोग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं. जिले में कोई भी बड़ी इंड्रस्ट्री नहीं है. जिससे यहां के लोग रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन करते हैं. यहां हर साल राप्ती नदी, बूढ़ी राप्ती नदी, कुरा नदी, बाणगंगा और बरसाती नालो में बाढ़ आती है, जिससे कई क्षेत्रों में फसलें खराब हो जाती हैं. साथ ही नदी किनारे बसे गाव के लोगों को बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ता है. 2017 के बाद जिले की मुख्य सड़कें बनीं, लेकिन अन्य सड़को की हालत बेहद खराब है. पहले बिजली में लो बोल्टेज की समस्या काफी थी, लेकिन 2017 के बाद इसमें काफी सुधार हुआ है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहले जिला अस्पताल व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ही थे, लेकिन 2021 में यहां पंडित माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कालेज की स्थापना के बाद इस क्षेत्र में बेहतरी की उम्मीद जगी है. कुल मिलाकर आगामी चुनाव में भी विकास ही मुख्य मुद्दा रहेगा.

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